बुधवार, 19 मई 2010

झूमे देश-विदेश है .....







1.गुरु ही ब्रह्मा ,गुरु ही विष्णु ,गुरु ही देव-महेश है
रूप दिखे मानव सा उनका, पर सचमुच वे ईश है

2.कृपा मिले जिसको सदगुरू की,पाना नही कुछ शेष है
पाकर कृपा प्रसादी गुरु की ,साधक बने गणेश है

3.सेवा करता मात-पिता की,ज्यो वो उमा महेश है
हिन् भाव मिट जाये स्वत ही,चिंता रहे न लेश है
रूप दिखे मानव सा उनका, पर सचमुच वे ईश है

4.मंगलमय सब होने लगता,बदल जाये परिवेश है..
गमनागमन का क्रम है छुटे,व्यापे राग न द्वेष है
रूप दिखे मानव सा उनका, पर सचमुच वे ईश है

5.लगा जिसे गुरु-भक्ति का चस्का,दूर न उससे ईश है
होने लगते चमत्कार है,मिलती कृपा विशेष है
रूप दिखे मानव सा उनका, पर सचमुच वे ईश है

6.ताली बजा कराते कीर्तन,झूमे देश-विदेश है
है जीना उसी का जीना,जिस पर गुरु-आशीष है

रूप दिखे मानव सा उनका, पर सचमुच वे ईश है ....

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