शनिवार, 8 मई 2010

एक ओर सच्चाई आशाराम बापू की.....

अपनी मनचाही में जो लगता है,


एक जन्म नहीं एक करोड़ जन्म ले ले और बड़े गुरु भी मिल जायें

तो भी मुक्ति नहीं मिलेगी।


मेरी हो सो जल जाय, तेरी हो सो रह जाय।

इससे हमको बड़ा फायदा हुआ।

बाल बढ़ जाते तो हम गुरुजी को चिट्ठी लिखते कि 'दाढ़ी-बाल बढ़ गये हैं,

मुँडन करूँ या छँटाई करूँ, जो आज्ञा....।'

गुरु जी कभी कहीं, कभी कहीं...

खत घूमता-फिरता जाता और फिर गुरुजी के इर्द-गिर्द

कृपानाथ लोग रहते थे कि 'आशारामजी का खत काहे को देना जल्दी से !'

तो कभी खत पहुँचे, कभी न पहुँचे, फिर भी कभी-कभी पहुँचके,

घूम फिर कर उतर आता कि छँटाई करा दो

तो हम छँटाई कराते, मुंडन कराते।

हमने मान रखा था कि हम समर्पित हैं

तो ये दाढ़ी-बाल हमारे बाप की चीज नहीं हैं, गुरुजी की चीज हैं।

गुरुजी की आज्ञा जब तक नहीं आती थी

तब तक हम छँटाई नहीं कराते थे।

बस, गुरुजी को कहेंगे वही....

तो मन के चंगुल से बचने में मुझे तो बहुत फायदा हुआ,

फटाक से फायदा हुआ।

आप लोग अपने मन की करवाने के लिए बापू के पास आते हैं
– यह कर दो, ऐसा कर दो, ऐसा ध्यान लग जाय....
' ईमानदारी से बोलो। मन की होती रही

तो 10000 जन्म बीत जायें पिया नहीं मिलेगा,

और सब मिल-मिल के मिट जायेंगे अपन कंगले रह जायेंगे !

अपने मन की हो तब भी वाह-वाह और नहीं हुई

तो दुगनी वाह-वाह कि तेरे मन की हुई वाह.... !

और यह भी बिल्कुल वैज्ञानिक बात है कि

सब अपने मन की होती नही, जितनी होती है वह सब भाती नहीं

और जो भाती हैं वह टिकती नहीं, इसमें संशय है क्या ?

तो फिर काहे को कंगले बनो, चलो कर दो आहुति...

जाने दो, जब टिकने वाली नहीं है तो अभी से भगवान के गले पड़ोः
'महाराज ! तेरी हो।' यह बहुत सुन्दर तरीका है बहुत ऊँची चीज पाने का !

सत्संग से जो भला होता है उसका वर्णन नहीं हो सकता।

सत्संग कर्ता का जितना उपकार मानो, उतना कम है।

जो सत्संग देने वाले संत का उपकार नहीं मानते

या उनमें दोषदर्शन करते हैं, उनको बड़ा भारी पाप लगता है।

उनकी बुद्धि मारी जाती है, कुंठित हो जाती है विकृत हो जाती है।

रब रूसे तो मत खसे। परमात्मा रूठता है तो मति मारी जाती है।

फिर कल्याणकर्ता में भी दोषदर्शन हो जायेगा।

BAPUJI K SATSANG PARVACHAN SE....

HARIOM .........

KAMAL.HIRANI
DUBAI

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