शुक्रवार, 17 मई 2013

खुद खाने में मजा नहीं जो दुसरो को खिलाने में है.. ॥हरी ॐ॥

खुद खाने में मजा नहीं जो दुसरो को खिलाने में है.. ॥हरी ॐ॥ 

एक गाव मे एक सेठ रहता था उसके पास किसी चीज की कमी नही थी 

बड़ा सा महल रहने को धन से तिजोरिया भरी पड़ी थी 

सुख सुविधा के लिए बहुत से नौकर चाकर थे

पर इतना होने के बाद भी सेठ को चैन नही था

उसके मन मे सदैव अशांति बनी रहती थी

और शांति की तलाश किया करता था

इसी बीच एक जिन उसे पता चला की गाँव मे कोई संत पधारे है

जो लोगों का हाथों हाथ इलाज करते है

और बहुत पहुँचे हुए है तो एक दिन सेठ संत के पास पहुँच गया

और संत को अपने मन की व्यथा उनके सामने कही

महात्मा ने कहा वत्स तुम्हारे पास सब कुछ है

इसी को लेकर तुम चिंतित रहते हो

और यही तुम्हारी अशांति का कारण है

उसी समय एक चिड़िया आई

और सामने की मुंडेर पर बैठकर आनंद से चहचहाने लगी

संत ने उसे लक्ष्य करके अपनी बात को जारी रखा और कहाँ

इस नन्हे पंछी को देखो इसके पास क्या है

न घर है न खाने पीने का ठिकाना

पर इसे चिंता नही जो जन्म देता है

वही रहने का ठौर देता है

और पेट भरने को खाना शांति अर्जन मे नही विसर्जन मे है

संचय मे नही त्याग मे है

तिजोरिया दूसरों का भाग छीनकर भरी जाती है

काम अशांति के करते है और शांति की चाह रखते है

तुमने परिग्रह के पिंजरे मे खुद को कैद कर रखा है

चैन बंधन मे नही बंधन से मुक्ति मे है

यदि मन की शांति चाहते हो तो अपने धन को लोक कल्याण मे लगाओ

सेठ को बात समझ आ गई

और उसने अपनी संचयी वृत्ति को त्याग लोकहित के कार्य करने का संकल्प लिया| -


pujya sant shri asharam ji bapuji