सोमवार, 26 अप्रैल 2010

माँ मर गयी..............

३ अप्रैल २००९ को मेरी माँ ,जिनकी उम्र ५४ साल है,

को शरीर के बाये भाग मैं लकवा मर गया ,

चेन्नई ,जमशेदपुर आदि कई जगहों पर उनका इलाज कराया पर कुछ लाभ नही हुआ,

इलाज के दौरान १३ अप्रैल को डोक्टोरो ने तो जवाब ही दे दिया....

की अब माता जी ठीक नही होंगी .......

और कुछ ही घंटो की मेहमान है ......

हम सब बहुत घबरा गए

टाटा स्टील फैक्ट्री की सबसे बड़ी डॉक्टर राहुल रॉय ने तो माँ को मृत घोषित कर

अपने लेटरपेड़ पैर लिख के दे दिया की यह मर चुकी है

वह कागज आज भी मेरे पास है

मेने पूज्य बापूजी से २००१ मैं दीक्षा ली थी ,मुझे माँ की ऐसी दुरवस्था में मर्त्यु से बहुत ही छतपथात हुई

मेने श्रधा पूर्वक पूज्य बापूजी से प्रार्थना की और बापूजी की तस्वीर माँ क सिरहाने रख दी

तीन दिन तक हम मृत माँ के शरीर को रखे बापूजी से प्रार्थना करते रहे...

तीसरे दिन रात 9.30 को माँ के शरीर मैं चेतना पुन: लोट आई....

और माँ अचानक जीवित हो गयी...यह देख कर हम दंग रह गए..


तब मुझे श्री आशारामायण की ये पंक्ति याद आई ...


मृत गाय दिया जीवन दाना........

तब से लोगो ने पहचाना...


जिन बापूजी ने मृत गाय को जीवन दाना दिया था यह उन्ही की करुना कृपा है....


हमने माँ के जीवित होने की बात उन डोक्टोरो को बताई जिन्होंने ये "मर चुकी है" लिखित मैं दिया था


तो वे आश्चर्य चकित हो गए और तुरंत ही अपने लेटर पेड़ पे लिखा हुआ काट दिया ...और बोले ...


हमे भी पूज्य बापूजी का लोकेट दीजिये....


फिर मुझे यह पंक्ति स्फुरित हुई ........


मृत माँ दिया जीवन दाना .....

तब डॉक्टरो ने अचरज माना ...


इस घटना को कुछ महीने हो गए ... और मेरी माँ अब एकदम ठीक है ...


कोई तकलीफ नही है यह सब मेरे बापूजी की कृपा से ही हुआ....


ब्रहम ज्ञानी गुरु की शक्ति का,उनके सामर्थ्य का वर्णन कौन कर सकता है ..

सोनिया,जमशेदपुर ,झारखण्ड, फ़ोन : ०६५७ -६५४०९२७


मेरे बापूजी की लीला हे निराली जिसे जाने कोई कोई.....


वाह बापू वाह.....


जय हो..........

हरिओम ........

कमल हिरानी,दुबई

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

कमला एकादशी २४-२५ अप्रैल २०१०

अर्जुन ने कहा: हे भगवन् ! अब आप अधिक (लौंद/ मल/ पुरुषोत्तम) मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बतायें, उसका नाम क्या है तथा व्रत की विधि क्या है? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है और इसके व्रत से क्या फल मिलता है?

श्रीकृष्ण बोले : हे पार्थ ! अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है, उसका नाम ‘पद्मिनी’ है ।
इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है । यह अनेक पापों को नष्ट करनेवाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करनेवाली है । इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरु करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए । उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए । स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसीसे प्रार्थना करनी चाहिए: ‘हे मृत्तिके ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ । तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो । समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करनेवाली, तुम मुझे शुद्ध करो । ब्रह्मा के थूक से पैदा होनेवाली ! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो । हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये ।’

इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेघ, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए । उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें ।
भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए । अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए । यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए । रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए

पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए । इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है । इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है । एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है ।

इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए । इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं । हे पार्थ ! मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया ।

अब जो ‘पद्मिनी एकादशी’ का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके हैं, उनकी कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो । यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी : एक समय कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया । उसे मुनि पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया । इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा : ‘हे महाराज ! उस मायावी रावण को, जिसने समस्त देवताओं सहित इन्द्र को जीत लिया, कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता, सो आप मुझे समझाइये

इस पर पुलस्त्यजी बोले : ‘हे नारदजी ! पहले कृतवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा को सौ स्त्रियाँ थीं, उसमें से किसीको भी राज्यभार सँभालनेवाला योग्य पुत्र नहीं था । तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे । जिस प्रकार दु:खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था । अन्त में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया । उसकी स्त्री भी (हरिश्चन्द्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारों को त्यागकर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गयी । उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त न हो सकी । राजा के शरीर में केवल हड्डियाँ रह गयीं । यह देखकर प्रमदा ने विनयसहित महासती अनसूया से पूछा: मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये, परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो । इसका क्या कारण है?
इस पर अनसूया बोली कि अधिक (लौंद/मल ) मास में जो कि छत्तीस महीने बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती है । इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘परमा’ है । उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे ।

इसके पश्चात् अनसूयाजी ने व्रत की विधि बतलायी । रानी ने अनसूया की बतलायी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया । इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान माँगने के लिए कहा ।

रानी ने कहा : आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये ।
प्रमदा का वचन सुनकरभगवान विष्णु बोले : ‘हे प्रमदे ! मल मास (लौंद) मुझे बहुत प्रिय है । उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है । इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ ।’ इतना कहकर भगवान विष्णु राजा से बोले: ‘हे राजेन्द्र ! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो । क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है ।’

भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा बोला : ‘हे भगवन् ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये ।’ भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । उसके बाद वे दोनों अपने राज्य को वापस आ गये । उन्हींके यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे । वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे । इन्होंने रावण को जीत लिया था । यह सब ‘पद्मिनी’ के व्रत का प्रभाव था । इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये ।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैंने अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा है । जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह विष्णुलोक को जाता है ।

श्री आशारामायण पाठ का चमत्कार

भुखार के मारे मेने छोटे बेटे को हॉस्पिटल मैं भारती करवाया.......

दुसरे दिन उसकी हालत गंबीर थी....... वो सास भी नही ले पा रहा था ..........

डॉक्टर ने सास की मशीन लगा दी..........

पर फिर भी कोई फायदा नही हुआ............

डॉक्टर ने साफ़ मना कर दिया.....

मेने अपनी माँ को ये बात बताई तो माँ बोली तू चिंता मत कर ....ये बेटा बापूजी के आशीर्वाद से हुआ है

श्री आशारामायण पाठ शुरू कर १०८ पाठ होते ही बच्चा ठीक हो जायेगा..........

फिर मेने हॉस्पिटल मैं और मेरी पत्नी ने घर पे आशारामायण का पाठ शुरू कर दिया........

तीन दिन मैं आशारामायण पाठ पुरे हो गए......... और बेटा अपने आप होश मैं आ गया....

अब बेटा एकदम ठीक है.........

पूज्य बापू जी की जितनी महिमा गाउन उतनी कम है ......

मेरे पास लफ्ज नही है बोलने को......


बस .........मन मैं नाम तेरा रहे .....मुख पे रहे सुगीत.....

हमको इतना दीजिये, रहे चरण मैं प्रीत ..........

सुनील ऐ वृंदा शेवाले .....न्यू पनवेल (पश्चिम) जिला थाना ( महा).....

देखा चमत्कार मेरे बापूजी का ................

वाह बापू वाह ...........

एक बार जरुर कर के देखना आशारामायण का पाठ..............

फिर आपको यकीन होगा की बापूजी की केसी लीला है......

हरिओम............

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

बापूजी की सचाई (आत्मसाक्षात्कार क्या है?2)

जब मैं अनुष्टान करता नर्मदा किनारे तो मंत्र की पुरी संख्या नही होती

तब तक कभी रात्रि के 11 बजते तो कभी 12……

और भी देर हो जाती नियम पुरा करने में

तो सोना भी देर से हो जाता…

जवानी थी, 22 साल की उमर थी…

तो नींद भी ऐसे आती की ….

जिस गुफा में जप करता उस गुफा में रात को छुछुंदर

फुक मारकर पैरो के तलवे खा जाता पता ही नही चलता ..

दुसरे दिन चलता तो उस में कंकर रेती घुस जाती

तब पता चलता…..
किसी संत ने देखा… बोले,

“अरे, ये तो छुछुंदर ने खाया है, पता नही चलता!”

हम ने बोला, “पता नही ….. अनुष्ठान में हूँ!”

…. शिव मन्दिर में जल चढाते तो श्री विग्रह से फूल पड़ता ,

माला पड़ती तो ये तो शगुन है की भगवान प्रसन्न है……

तो मैं बोलता, “भगवान आप प्रसन्न है ,

लेकिन कैसे मिलेंगे ये बताओ….

बार बार ध्यान में अन्दर से आवाज आती की


लीलाशाह बापूजी के पास जाओ ! “

मैं बोलता , “तुम कौन बोल रहे हो?”

जिस को तुम मिलना चाहते हो ,

मैं वो ही बोल रहा हूँ..

तुम लीलाशाह महाराज के पास जाओ..मैं तुम्हे मिलूँगा!”

मैं बोलता, “ये मेरे मन की आवाज है की देव की – ये कैसे पता चले?”

तो अन्दर से आवाज आती कि , “नही बेटा, मैं वो ही बोल रहा हूँ…

तुम लीलाशाह जी महाराज के पास जाओ ….

शिवजी , पार्वती, गणपति सभी के रूप में मैं वहा मिलूँगा…!”

ऐसा कई बार भाव आता था ….

40 दिन पुरे होते ही मैं चल पड़ा ..

माँ और उस की बहु आ धमकी थी मेरे एक मित्र के साथ….

.माँ और उस की बहु मुझे घर ले जाना चाहते ,

समझाता तो हल्लागुल्ला होगा…

इसलिए मित्र से चुपचाप अहमदाबाद के 3 टिकेट

और बम्बई का एक टिकेट मंगवाया….

मियागांव जंक्शन पे दोनों ट्रेन आमने सामने खड़ी होती….

तो बातचीत करूँगा और ट्रेन चल पड़ेगी

तो मैं भाग के बम्बई के ट्रेन में चला जाऊंगा….

तो मियागाँव जंक्शन में ऐसा करेंगे….

माँ और माँ की बहु की टिकेट मित्र के पास थी…

सामने बम्बई जानेवाली गाड़ी खड़ी थी…

उस का सिग्नल हुआ तो “मैं अभी आया” ऐसा कर के भागा…..

“क्या हुआ?” …मैं गाड़ी में बैठा…. माँ चिल्लाई….

फिर क्या क्या हुआ….. “पकडो पकडो!” “


क्या लेके भागा?”..

माँ बोली , “कुछ लेके नही भागा..मेरा बेटा था” …..

चालू गाड़ी में हम तो बैठ गए….

गुरूजी से मिलने कि अन्दर से प्रेरणा हो रही थी…

.शिवजी बार बार बोलते , “मैं वो ही मिलूँगा!”….

माँ रुदन करेंगी..

माँ को समझाऊ तो माँ की बहु के दिल पर क्या गुजरेगी…..

हमारे ह्रदय में कैसी शक्ति दिया….

कितना मेहेरबान हुआ होगा… उसी का फल है ये!

….रात भर ट्रेन चली… दुसरे दिन सुबह स्टेशन पे उतरे …

गणेशपुरी गए…वहा से वज्रेश्वरी गए….

किसी सेठ का मकान था…

गुरूजी के लिए था..

सुबह सवा 9 बजे होंगे….गुरु जी घूमने निकले थे…

हम चरणों में गिर पड़े….

गुरु जी बोले, “क्या हुआ?वापस क्यों आया?”
वाणी से तो कुछ न निकला…..आँखों से आंसू निकल पड़े….

गुरूजी बोले, “अच्छा…. भगवान सब ठीक करेंगे…”

पानी गरम हुआ तो उफलना ही है….

घर में बिजली का सारा सामान फिट हो गया

और पॉवर हाउस से बिजली भी आ गई

तो फ्यूज को दबाना और स्विच ऑन करना है…..

गुरु जी बोले, “भगवान सब ठीक करेंगे….

आसन नियम ध्यान कर..आराम कर…”

तो हम नहाये, आसन नियम ध्यान किए…

आराम कर रहे थे की करीब २ बजे होंगे…

गुरु जी का एक सेवक था वो आया ..बोला, “साईं ने बुलाया…”

साईं बैठे थे..मेरे को इशारा किया की बैठ….


पंचलक्षी उपनिषद का ७ वा अध्याय चल रहा था….

“ध्यान से सुन…”(साईं ने इशारा किया)

पंचलक्षी उपनिषद का ज्ञान तो हाई लेवल का होता है…

सेवक पढ़ रहा था…
“ध्यान से सुन…” गुरूजी ने इशारा किया…

मैं सुन रहा था…गुरूजी बैठे थे ..घटना ऐसी घटी….

ऐसे तो कई बार ध्यान में बैठते तो आनंद होता…

ध्यान में आनंद आता …..लेकिन ये और कुछ विशेष था….

अब वहा शब्द नही मेरे पास …

…फिर जो भी हुआ ना …शब्द से बाहर निकल गए……
गहेरी नींद में बोला जाता है क्या?

कोई सवाल करे की , “गहेरी नींद में हो?”

तो आप बोले , “ हां , मैं ठीक से गहेरी नींद में सोया हूँ…”

ये हो सकता है क्या? ऐसे ‘साक्षात्कार हुआ तो क्या हुआ’

आप इस विषय में बोल नही सकते….

इस के इर्द गिर्द के बोल सकते !!

आज वो ही साक्षात्कार दिन है….

सेवक पढ़ते..गुरूजी व्याख्या करते….

मैं ध्यान देकर सुन रहा था….

मेरे नासमझी का परदा दूर हुआ…

अढाई दिन तक उस में रहे….

गुरूजी की कृपा से होश संभाले….

आज इस घटना को 46 साल हो गए….
किसी ने पूछा , “ब्रम्हज्ञानी की पहेचान क्या?”
.. मैंने कहा , सच्चे शराबी की क्या पहेचान है?

जो दुसरे को शराबी बना दे….

ऐसे सच्चे ब्रम्हज्ञानी की ये पहेचान है

की संत के संग सत्संग के मस्ती में आ जाए ऐ हैईई !॥


वो चाहते सब झोली भर ले…निज आत्मा का दर्शन कर ले l
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे , उन के सारे काज सरेंगे ll


नारायण नारायण नारायण नारायण

रब का ज्ञान जिन को मिला है, वो दिन बड़ा है….

जनम दिन, शादी का दिन तो कईयों का होता…

आत्म – साक्षात्कार दिवस किसी किसी का हुआ होगा…..

जिनका आत्म-साक्षात्कार हुआ उन को इच्छा ही नही होती की


साक्षात्कार दिन मनाये ….ऐसी स्थिति हो जाती है… .. आप मुझे चंडीगढ़ में सुन रहे है….

देश विदेश में कई जगह लोग सुन रहे देल्ही, अमदाबाद , बनारस, बम्बई, नागपुर,

नाशिक, औरंगाबाद , आगरा, भावनगर, जयपुर उल्हासनगर, नांदेड , वर्धा, रायपुर,

इंदौर , कोटा , भोपाल , छत्तीसगढ़ , बरोड़ा, गोधरा, हैदराबाद, बालाघाट और भी कई

जगह और विदेशो में भी कई जगह में सुन रहे….सिंगापूर, केनिया , कनाडा, इटली

, होन्गकोंग , अमेरिका , दुबई और यूरोप में कई जगह लोग सुन रहे है…

बापूजी के सत्संग परवचन से....


bapuji k satsang parvachan se..........

आत्मसाक्षात्कार क्या है? (१)

आत्मसाक्षात्कार क्या है?

…भगवान ब्रम्हाजी जिस में समाधिस्त रहेते ,

भगवान विष्णु ४ महीने जिस में विश्रांति पाते ,

भगवान शिव जी जिस में समाहित रहेते उस “मैं रूप” की घडिया है “साक्षात्कार”!

वशिष्ठ महाराज शाम को अपने शिष्यों को सत्संग सुनाते….

बोले , हे राम जी…. एक संध्या को आकाश मार्ग से प्रकाश पुंज दिखाई दिया

….भगवान चंद्रशेखर माँ पार्वती सहित पधार रहे थे..


अरुंधती के साथ हम ने मनोमन प्रणाम किया…


आसन तैयार किया ..जब वे आए तो वहा बिठाया …


उन के चरण धोये…. अर्घ्य पाद से पूजन किया….

भगवन चंद्रशेखर ने कुशल पूछा ,

“हे मुनि शार्दुल यहा एकांत में वरुण विक्षेप तो नही करते?


वृक्ष फल फूल तो देते?”

मैंने कहा, “आप के स्मरण मात्र से सब कुशल होने लगता है ….

मेरी इच्छा है की माँ पार्वती अरुंधती के साथ ज्ञान की चर्चा करे

और मैं आप से कुछ सुनना चाहता हूँ….”

मैंने शिव जी को प्रश्न किया की , “वास्तविक में देव कौन है

जो सब का हितकारी है..थोडी सी पूजा करने से प्रसन्न हो जाते है..”

भगवान चंद्रशेखर बोले, “स्वर्ग के देव भी वास्तविक देव नही….

तुम्हारे भीतर जो आत्मदेव है , वो ही वास्तविक में देव है


उन की सत्ता से आँखे देखती…. बुध्दी उसी की सत्ता से निर्णय कराती…

मन में उस की सत्ता से सोच की फुरना उठती…

उसी की सत्ता से बुध्दी निर्णय बदलती …. आँखों का देखना बदलता….

इस सब को जो जानता है , फिर भी ज्यों का त्यों रहेता है वो ही वास्तविक देव है !”

उसी को भगवान कहते, अकाल पुरूष कहेते…..

भगवती आदिशक्ति कहेते…. देव की लीला अनंत है!!…

वास्तविक देव इतने सहज है …

.उन को पुत्र मान के पूजा करो तो भी वो आने को तैयार है…

वासुदेव देवकी के यहाँ आए …! वो ही सकल अंतर्यामी है…

.जल में उसी की सत्ता है ..थल में उसी की सत्ता है…

माँ में वात्सल्य उसी का है…. बाप में अनुशासन उसी का है…

संत में संतत्व उसी की सत्ता से चमकता है..

भक्त की भक्ति फलती ॥मेरे स्वामी ऐसे मेरे रब में सारी सृष्टि है…

निर्भव जपे…। संत कृपा से प्राणी छूटे

भय को देने वाले वो ही , भय नाश कराने वाला भी वो ही है …


दुष्कर्म करते तो भयभीत भी करता ..


संकट समय उस को पुकारने वाले की पतवार संभालता है…।

इसलिए आप कभी अपने को तुच्छ मत मानिये…

अनाथ मत मानिए ….दुखी मत मानिये….

अगर आप अपने को दुखी मानेंगे तो चित्त दुखाकार होकर चैत्यन्य से दूर हो जाएगा॥

रामायण में बन्दर राम जी के लिए लड़े और


मेघनाद , कुम्भकरण राक्षस आदि रावण के लिए लड़े….


लड़ने की सत्ता देनेवाला वो ही का वोही…वो ही दे रहा है …..

हथियार घुमाने के लिए एक सत्ता से शक्ति मिल रही है….

राम जी के मन में रावण के लिए राग है

और रावण के मन में राम के लिए द्वेष है….

चेहरा वो ही है , शीशा अलग अलग है…

विद्युत् का करंट वो ही है , उपकरण अलग अलग है ..

गिझर में पानी गरम होता और फ्रीज ठंडा होता ,


बिजली एक ही एक है …


ऐसा अकाल पुरूष वो ही का वोही है…

. सज्जन की वकालत करो तो भी वो ही बोलेगा….

और दुर्जन के लिए भी वो ही बोलने की सत्ता देता है॥


जो इसी जनम में साक्षात्कार करने को तैयार है,


उन के लिए वो सुलभ है….

जो 3 जनम के बाद , 1 जनम के बाद सोच रहे उन के लिए कठिन है….

भगवान बोलते, अगर आप सोचते कठिन है तो कठिन है….

और जो सोचते मैं सुलभ हूँ उन के लिए मैं सुलभ हूँ !

“तस्याहम सुलभं पार्थ!”

जो मुझे पाना सुलभ मानते है, उन के लिए मैं सुलभ हूँ ….

लेकिन जैसा मानोगे ऐसे हो जाता ….

जो जिस रूप में ईश्वर को चाहेगा उसी रूप में ईश्वर को पा लेगा….


जो जैसी भावना करता उस की भावना के अनुसार


उस का कल्याण करने में भगवान कोई कसर नही छोड़ते….

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

तीन बातें

निम्न तीन बातें सब लोगों को अपने जीवन में लानी ही चाहिए। ये तीन बातें जो नहीं जानता वह मनुष्य के वेश में पशु ही हैः 1: मृत्यु कभी भी, कहीं भी हो सकती है, यह बात पक्की मानना चाहिए। 2: बीता हुआ समय पुनः लौटता नहीं है। अतः सत्यस्वरूप ईश्वर को पाने के लिए समय का सदुपयोग करो। 3: अपना लक्ष्य परम शांति यानि परमात्मा होना चाहिए। यदि आप लक्ष्य बना कर नहीं आते तो क्या सत्संग में पहुँच पाते? अतः पहले लक्ष्य बनाना पड़ता है फिर यात्रा शुरू होती है। भगवान की भक्ति का उच्च लक्ष्य बनाते नहीं है इसलिये हम वर्षों तक भटकते-भटकते अंत में कंगले के कंगले ही रह जाते हैं। आप पूछेंगेः "महाराज ! कंगले क्यों? भक्ति की तो धन मिला, यश मिला।" भैया ! यह तो मिला लेकिन मरे तो कंगले ही रह गये। सच्चा धन तो परमात्मा की प्राप्ति है। यह तो बाहर का धन है जो यहीं पड़ा रह जायेगा। इस शरीर को भी कितना ही खिलाओ-पिलाओ, यह भी यहीं रह जायेगा। सच्चा धन तो आत्मधन है। कबीर जी ने ठीक ही कहा हैः कबीरा यह जग निर्धना, धनवंता नहीं कोई। धनवंता तेहुँ जानिये, जाको राम नाम धन होई।। जिसके जीवन में रोम-रोम में रमने वाला परम शांति परम सुख व आनंदस्वरूप रामनाम का धन नहीं है वह धनवान होते हुए भी कंगाल ही तो है। मनुष्य में इतनी सम्भावनाएँ हैं कि वह भगवान का भी माता-पिता बन सकता है। दशरथ-कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया और देवकी-वसुदेव भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता बने। मनुष्य में इतनी सम्भावनाएँ हैं लेकिन यदि वह सदगुरू के चरणों में नहीं जाता और सूक्ष्म साधना में रूचि नहीं रखता तो मनुष्य भटकता रहता है। आज भोगी भोग में भटक रहा है, त्यागी त्याग में भटक रहा है और भक्त बेचारा भावनाओं में भटक रहा है। हालाँकि भोगी से और त्याग के अहंकारी से तो भक्त अच्छा है लेकिन वह भी बेचारा भटक रहा है।

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

भजन.......

जीव मात्र के कल्याण हेतु गुरुवार ने पृथ्वी स्वीकारी ,

लखा पुत्र को गुरु रूप में माता मह्न्गीबा न्यारी

लाखो वर्ष बाद में देखि माता ऐसी सुविचारी

सांख्य शास्त्र के जनक कपिल मुनि की थी ऐसी महतारी

पुत्र को लाख गुरु रूप में ब्रह्म ज्ञान को पाया था

गिरते हुए मानव समाज के हित में लाल जनाया था

ब्रह्म रूप उन कपिल मुनि को पुत्र रूप में पाया था

देवहूति ने तज स्वार्थ को जनकल्याण कराया था

माँ की मंशा पूर्ण कपिल प्रभु ने ऐसे करवाई थी

नव कन्यो के के बाद में आकर नवधा भक्ति जगाई थी

त्रय बहनों के बाद में आकर गुरु ने ये दर्शाया है

द्वार भक्ति और ज्ञान कर्म का हमने खुल्ला पाया है

जब प्राण तन से निकले

इतना तो करना स्वामी ,जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर, फ़िर प्राण तन से निकले ,
श्री गंगा जी का तट हो ,यमुना का वंशी वट हो ,
मेरा सांवरा निकट हो ,जब प्राण तन से निकले
श्री वृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो ,
विष्णु चरण का जल हो ,जब प्राण तन से निकले
जब कंठ प्राण आवे, कोई रोग न सतावे ,
यम दर्श न दिखावे ,जब प्राण तन से निकले
सुधि होवे नही तन की, तयारी हो गमन की ,
लकड़ी हो ब्रज के वन की ,जब प्राण तन से निकले
ये नेक सी अरज है ,मानो तो क्या हरज है ,
कुछ आपका फर्ज़ है ,जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी ,जब प्राण तन से निकले ....

सब में भगवान .........

ऐसा ही एक भगतडा जा रहा था…

गुरु की आधी अधूरी बात समझा था…

की सब में भगवान है…

सामने से पागल हाथी आ रहा है ..

महावत बोला, ‘अरे हट जाओ॥हाथी पागल है’

..लेकिन नहीं माना…

बोले, ‘मैं जानता हूँ..सब भगवान का मंगलमय विधान है

॥सब में भगवान है!’

हाथी आया॥ धडाक से सुण्ड मारा..

खोपड़ी टूटी …जब ठीक हुआ तो सब पूछे की क्या हुआ?…

बोले, ‘हाथी में भगवान है॥मैंने सूना था लेकिन ऐसा कैसे हुआ?’

.. तो सामने वाले बोले की ,

‘हाथी में ही तुझे भगवान देखना था?..

महावत में भगवान चिल्ला चिला कर बोल रहा था वो क्यों नहीं सूना?’

ऐसा आधा कच्चा ज्ञान बड़ा खतरा देता है…

k.hirani

बाल संस्कार केन्द्र के 21 अनमोल रत्न

बाल संस्कार केन्द्र के 21 अनमोल रत्न ........................
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प्रतिदिन पालनीय नियम
1. सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठना।
2. प्रातः शुभ चिंतन, शुभ संकल्प, इष्टदेव अथवा गुरूदेव का ध्यान।
3. करदर्शन।
4. प्रार्थना, जप, ध्यान, आसन, प्राणायाम।
5. सूर्य को अर्घ्य एवं सूर्यनमस्कार।
6. तुलसी के 5 पत्तों का सेवन कर 1 गिलास पानी पीना।
7. माता-पिता एवं गुरूजनों को प्रणाम।
8. नियमित अध्ययन।
9. अच्छी संगत।
10. भोजन से पूर्व गीता के पंद्रहवें अध्याय का पाठ व सात्त्विक, सुपाच्य तथा स्वास्थ्कर भोजन।
11. त्रिकाल संध्या।
12. सत्शास्त्र-पठन और सत्संग-श्रवण।
13. सेवा, कर्त्तव्यपालन व परोपकार।
14. सत्य एवं मधुर भाषण, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना)।
15. समय का सदुपयोग।
16. परगुणदर्शन (दूसरों के अच्छे गुणों पर दृष्टि रखना)।
17. घरकाम में मदद और स्वच्छता।
18. खेलकूद।
19. त्राटक, मौन।
20. जल्दी सोना-जल्दी उठना।
21। सोने से पहले आत्मनिरीक्षण, ईश्वर-गुरूदेव का चिंतन, धन्यवाद।

वाह बापू वाह............... जी हा ये समझाया है हमारे बापूजी ने बच्चो के लिए............

इसलिए तैयार करिए अपने आपको ....
अपने बच्चो मैं अच्छे संस्कार लाने के लिए..........

hariom

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार....

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार

लीना है अवतार, गुरु ने लीना है अवतार

ये है खुशियों का त्यौहार, मिल के झूमो नाचो यार

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार

हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ

1) चैत वद छः उन्नीस अठानवे, आसुमल अवतरित आंगने

धन्य हो गये माता पिता और धन्य हो गई देश की धरती

हो गया धन्य सारा संसार, गुरु ने लीना है अवतार

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार

गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ


2) देव लोक से सभी देवता, करने आये अमृत वर्षा

दर्शन की लेकर अभिलाषा, आये ब्रह्मा और महेशा

ये है विष्णु का अवतार, चरणों में झुक जाओ यार

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार


शिव ॐ शिव ॐ शिव ॐ शिव ॐ


3) ईश प्राप्ति की तड़प में, पहुँच गये वो गुरु के द्वार

सच्ची लगन और सेवा से, उनको मिल गया लीलाशाह का प्यार

पूर्ण गुरु की कृपा से, उनको हो गया आत्म साक्षात्कार


वो तो हो गये भव से पार, गुरु ने लीना है अवतार

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार

सतनाम वाहेगुरु सतनाम वाहेगुरु सतनाम वाहेगुरु

4) गुरु की आज्ञा पालन करके, ब्रह्म ज्ञान का किया प्रचार

हरि नाम के गुंजन से फिर, हो गयी उनकी जय-जयकार

सबसे प्यारे बापू मेरे, लीला इनकी अपरंपार

करते सबका बेड़ा पार, ये हैं ईश्वर का अवतार....

आओ बापूजी के द्वार, गुरु ने लीना है अवतार...

हरिओम

कमल हिरानी.



रविवार, 18 अप्रैल 2010

संतो का आदर


सदगुरुदेव के बारे में चैनल वालो ने और कु-प्रचार वालो ने कितनी अफवाए उडाई॥


लेकिन जीत सदा सत्य की होती है…


सत्य मेव जयते॥


सत्संगियो की भीड़ बढाती ही जा रही है…।


बापूजी बोलते की हम अपनी बुध्दी को ऐसी बनाए की


अनुकूल और प्रतिकूल स्थिति में बिगड़े नहीं॥


चाहे कैसी भी परिस्थिति आये, बुध्दी अपना सौन्दर्य ना खोये॥


बुध्दी में समता, धीरता की लक्ष्मी है अपनी बुध्दी में, वो खोये नहीं..


आज कई टीवी चनेलो पर बाबा रामदेव जी का इंटरव्यू दिखा रहे थे,


किसी ने मुझे बताया…तो उन से पूछा गया की बापूजी के बारे में ऐसा ऐसा बोला जाता है॥


तो बाबा रामदेव जी ने प्रश्नकर्ता को सुनाया की,


पहेले तो आप पूज्य आसाराम जी बापू का नाम आदर से लेना सीखो॥


पूज्य बापूजी की जीवनी देखो॥ बढती प्रतिष्ठा , लोकप्रियता के कारण कुप्रचार हो रहा है॥


लेकिन तुम न्यायाधीश कैसे बन गए…


बाबा रामदेवजी ने ये ही उत्तर दिया…


प्रणाम है ऐसे रूशी को…सत्य की जीत होती ही है…


कितनी भीड़ है सत्संगियों की…


कल्पना और द्वेष के आधार पर लगे आरोप कभी सिध्द नहीं होते॥


आरोप लगानेवालो के बुध्दी में द्वेष भरा होता है॥


थोड़ा तो इंसानियत रखो॥


मनुष्य को बोलना पड़ता है मनुष्य बनने के लिए, कुत्ते को नहीं॥




॥एक मनुष्य को बहोत प्यास लगी तो एक सेठ के पास पानी मांग रहा था…॥


सेठ बोला, ‘आदमी आयेगा वो पिला देगा॥’थोड़ी देर इंतज़ार किया॥


आदमी नहीं आया तो उस आदमी को बहोत प्यास लगी थी ॥


वो बोला,‘सेठ जी थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाओ ना॥’


रावण सीताजी का अपहरण कर के जा रहा था तो जटायु ने कितनी कोशिश की


सीता मैय्या की रक्षा करने की॥


इस देश का मनुष्य कम से कम जटायु जैसी समझ रखनेवाला तो होना ही चाहिए॥



संतो का आदर ना कर सको तो कोई बात नहीं, लेकिन अनादर तो ना करे…


सुरेश बापजी क सत्संग से..............



विश्व रिकॉर्ड

पूरी डिक्शनरी याद कर विश्व रिकॉर्ड बनाया

ऑक्सफोर्ड एडवांस लर्नर्स डिक्शनरी (अंग्रेजी छठा संस्करण) के 80000 शब्दों को उनकी

पृष्ठ संख्या सहित मैंने याद कर लिया,

जो कि समस्त विश्व के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।

फलस्वरूप मेरा नाम 'लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस' में दर्ज हो गया।

यही नहीं 'जी' टी।वी। पर दिखाये जाने वाले रियालिटी शो में 'शाबाश इंडिया' में भी मैंने


विश्व रिकॉर्ड बनाया। 'द वीक' पत्रिका के एक सर्वेक्षण में भी मेरा

नाम 25 अदभुत व्यक्तियों की सूची में है। मुझे पूज्य गुरुदेव से मंत्रदीक्षा प्राप्त होना,

'भ्रामरी प्राणायाम' सीखने को मिलना तथा अपनी कमजोरी को ही महानता प्राप्त

करने का साधन बनाने की प्रेरणा, कला, बल एवं उत्साह प्राप्त होना

– यह सब तो गुरुदेव की अहैतुकी कृपा का ही चमत्कार है।

"गुरुकृपा ही केवलं शिष्यस्य परं मंगलम्।

" विरेन्द्र मेहता, अर्जनु नगर, रोहतक (हरि।)।

जी हा इनके गुरूजी है आशाराम जी बापूजी ...........

इतने महान धरती पे कभी- कभी ही आते है ......

बापूजी से दीक्षा लेने मात्र से कितने लोगो की ज़िन्दगी बदल गयी........

वाह बापू वाह ..........आपकी जय हो

कमल हिरानी, दुबई

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

"शहंशाह.... शहंशाह.... शहंशाह...."


लीलाराम नाम का एक व्यक्ति कहीं मुनीमी करता था

(हमारे सदगुरूदेव की यह बात नहीं है।) वह कहीं फँस गया।

पैसे के लेन देन में कुछ हेराफेरी के बारे में उस पर केस चला।

ब्रिटिश शासन में सजाएँ भी कड़क होती थीं।

जान-पहचान, लाँच-रिश्वत कम चलती थी। लीलाराम घबराया और विलायतराम के चरणों में आया।

विनती की। विलायतराम ने कहाः"तुमने जो किया है वह भोगना पड़ेगा, मैं क्या करूँ ?"

"महाराज ! मैं आपकी शरण हूँ। मुझे कैसे भी करके आप बचाओ।

दुबारा गलती नहीं होगी। गलती हो गई है उसके लिए आप जो सजा करें, मैं भोग लूँगा।

न्यायाधीश सजा करेगा, जेल में भेज देगा,

इसकी अपेक्षा आपके श्रीचरणों में रहकर अपने पाप धोऊँगा।"संत का हृदय पिघल गया।

बोलेः"अच्छा ! अब तू अपना केस रख दे उस शहंशाह परमात्मा पर।

जिस ईश्वर के विधान का तूने उल्लंघन किया है उसी ईश्वर की शरण हो जा,

उसी ईश्वर का चिन्तन कर। उसकी कृपा करूणा मिलेगी तो बेड़ा पार हो जाएगा।

"लीलाराम ने गुरू की बात मान ली। बस, जब देखो तब शहंशाह.....

शहंशाह.... चलते-फिरते शाहंशाह..... शाहंशाह.....! शाहंशाह माने लक्ष्य यही जो सर्वोपरि सत्ता है।

मन उसका तदाकार हो गया।मुकद्दमे के दिन पहुँचा कोर्ट में।

जज ने पूछाः"इतने-इतने पैसे की तुमने हेराफेरी की, यह सच्ची बात है ?"

"शाहंशाह....""

तेरा नाम क्या है?""शहंशाह..."

"यह क्यों किया ?""शहंशाह...

"सरकारी वकील उलट छानबीन करता है, प्रश्न पूछता है तो एक ही जवाबः "शहंशाह..."

"अरे ठीक बोल नहीं तो पिटाई होगी।""शंहशाह..."

"यह कोर्ट है।""शहंशाह...""तेरी खाल खिंचवाएँगे।""शहंशाह....

"लीलाराम का यह ढोंग नहीं था। गुरू के वचन में डट गया था। मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यम्...।

गुरू के वचन में लग गया। "शहंशाह.... शहंशाह.... शहंशाह...."

उसके ऊपर डाँट-फटकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, प्रलोभन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

उसका शहंशाह का चिन्तन ऊपर-ऊपर से थोपा हुआ नहीं था

अपितु गुरूवचन गहरा चला गया था उसके अंतर में। वह एकदम तदाकार हो गया था।

जब तुम अपने देह की चिन्ता छोड़कर, सुख-दुःख के परिणामों की चिन्ता छोड़कर परम तत्त्व में

लग जाते हो तो प्रकृति तुम्हारे अनुकूल हो जाती है।

यह भी ईश्वरीय विधान है।


आप ज्यों-ज्यों देह से, मन से अधिक गहराई में जाते हैं

त्यों-त्यों आपकी सुरक्षा ईश्वरीय विधान के अनुसार होती है।

बापूजी के सत्संग परवचन से..............

Hariom

एक सच.......(सत्संग)

लोग कहते है संसार के बिना काम नही चलता..

लेकिन मैं कहता हूँ ..संसार को भूले बिना काम नही चलता…


.पुरा दिन काम करते रात को संसार को भूलकर नींद मे जाते

तभी दूसरे दिन काम करने के काबिल बनते…

संसार मे जाते तो शक्ति का र्हास होता है…

नींद मे जाते तो शक्ति का संचय होता है…


संसार को भूलकर नींद मे जाते ..शक्ति पाते ..


तभी दूसरे दिन काम कर सकते…

काम करके थक गए तो फिर नींद…

ऐसे ही जगत मे संयम से खाया पिया…

और ईश्वर को पाया …कठिन नही है…


पता नही है…इसलिए कठिन होता है…


पुरा सदगुरू पाईये ….पूरे के गुण गाईए….

ईश्वर प्राप्ति कठिन नही है….ईश्वर को बोलो…


सब की गहेरायी मे बैठा है वो….सब के दिल

को ईश्वर जानते है….


ईश्वर के लिए तड़प हो….


बच्चा माँ को चाहता हो…

बच्चा “माँ माँ” कहे और माँ नही आये

तो वो माँ काहे की हुयी ?

बेटा अगर माँ को चाहता हो, सचमुच सच्चे ह्रदय से “माँ माँ” कर के बुलाता हो

और माँ नही आये तो ऐसी माँ को तो मर जाना चाहिऐ….

ऐसे सच्ची तड़प से ईश्वर को बुलाओ

और ईश्वर नही आये तो ऐसे ईश्वर को तो मर जाना चाहिऐ..


लेकिन ईश्वर क्यो मरे…

हम मरे हजार बार….

इसलिए दम मार के बोल रहा हूँ….

ये बोलने की ताकद कौन दे रहा है ? ये मेरे मुख से मार्गदर्शन कौन दे रहा है ?


अगर गलत है तो पॅरालाइज हो जाये जिव्हा या हार्ट फैल हो जाये…


वो ही तो बोल रहा है…सत्संग के बाद भी इतना बुलवा रहा है ,

इसके पीछे आप की पुण्याई है..ईश्वर की कृपा ही काम कर रही है ना ?..

जो काम कठिन नही , फिर भी कठिन लग रहा है ..


तो सरल क्या है? इतनी कठिनाई तो खटमल और मच्छर भी सहे लेता है…


मच्छरों को भी पता होता है कि कहा बैठना..


मैं कई बार ट्राय किया कि मच्छर मेरे दाढ़ी पे बैठे…

ऐसे आगे आगे भी किया..तो भी नही बैठता …

…इतनी अक्कल तो मच्छरों मे भी है कि यहा खुराक नही मिलेगा….

बच्चे तो मच्छर और खटमलो के भी पैदा होते है…


मनुष्य जनम पाकर भी वोही किया तो मच्छर और मनुष्य मे अंतर ही क्या?


मनुष्य मे ये जानने की शक्ति है कि , शरीर मरने के बाद भी जो रहेता है


उसको मैं कैसे जान लू..वो मुझे कैसे मिले ?

सब दुखो को से कैसे छुटू.. इस बात की प्यास मिल जाये…


यह कौन सा उकदा है जो हो नही सकता l
तेरा जी न चाहे तो , हो नही सकता ll
छोटा सा कीडा पत्थर मे घर करे l
और इन्सान क्या , दिले दिलबर मे घर न करे ll

wah bapu wah..........


kitne dhanya hai hum jo hume aap mile ............

aapka pyar mila.............aapka satsang mila..........

kya ajab tarika hai aapka samjane ka..........

murkh bhi samaj jaye aisa bolne ka tarika aapka..........


wah bapu wah........





ॐ शांति ..हरि ओम!सदगुरूदेव की जय हो!!!!!(गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे….)

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

सब छुटनेवाला है॥

सारे सम्बन्धी देवादारी समशान तक, पत्नी घर के दालान तक,बच्चे अग्निदान तक,और प्रभु दोनो जहाँ तक….
॥इसलिए प्रभु को प्रीति करो…कोई रोक नही सकता मृत्यु का दिवस…

उसके पहले जो मृत्यु के बाद भी तुम्हारे साथ रहेगा उस आत्मा का ज्ञान कर लो…

जीवन लाचार मोहताज हो जाये उसके पहले जीवन मे परमात्म सुख की पूंजी इकठ्ठी कर लो…।

जब तक सूर्य चमकता तब तक सब कहते सूर्य भगवान की जय…

ऐसे जब तक ये जीवन मे आत्मा का सूर्य चमक रह है

तब तक प्रभु को अपना मानकर प्रभु को प्रीति कर के ज्ञान पाना सिख लो…

ऐसा नही कि कही जाओगे वहा भगवान मिलेंगे॥वो आप के पास ही है…।

भगवान के पाने के लिए ही जनम मिला है…भगवान कहा मिलेंगे? खोज करो ॥

तो खोजते खोजते खुद ही में भगवान को पा लोगे॥

जैसे राजा भर्तृहरी ने देखा कि सोने की थाली मे खाना खाने से ,

चांदी के सिंहासन पे बैठने से सुख मिलता है क्या॥

तो खोजने से पहुंच गए गोरखनाथ के पास॥गुरु के चरणों मे बैठे तब लिखते है कि॥

जब सत्संग कीनो तब कुछ कुछ चीनो…तब लिखते है कि , अब कुछ कुछ जान पाया हूँ…

पुरा नही…कि चमचमाते गहने पहने सुन्दरिया चंवर डुलाये,चांदी के सिंहासन पे बैठा

तो अंहकार बढाया॥

ये राज गद्दी , ये भोग सब छुटनेवाला है॥

यहा ही पड़ा रहेगा…सोने की थाली मे खाना खाने वाला शरीर भी अग्नि मे जलाना है…

तो भर्तृहरी बोलते कि , “अभी कुछ कुछ जाना॥”

पड़ा रहेगा माल खजाना छोड़ त्रिया (स्त्री ) सूत (बेटे) जाना है

lकर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है

खिला पिला के देह बढाई वो भी अग्नि मे जलाना है…


कर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है॥

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

लाइव इंटरव्यू

दिनांक २८ अगस्त रात्रि ९ बजे स्तर न्यूज़ ने नारायण साईं का लाइव इंटरव्यू


साईं ने दीपक चोरासिया के हर सवाल का जवाब दिया !

लगभग ५० मिनट तक चले इस


सवाल जवाब में साईं ने स्टार न्यूज़ के हर जवाब का सटीक और सही जवाब दिया साईं

ने कहा की आश्रम पर आरोप लगाने वाले लोग हर दो - तीन दिन में नए रूप में आ रहे

है पहले उनकी जाच की जानी चाहिए ! की इनके किसके साथ सम्बन्ध है , हर आरोप पर


आश्रम को सफाई देना आवश्यक नही है विस्तृत चर्चा में साईं ने दीपक चोरासिया को

बताया की ये जो भी घटना क्रम चला है इस में षडयंत्र है उस षडयंत्र को खोजना

पुलिस और प्रशासन का काम है हम आश्रम वासी अपनी साधना भक्ति में लगे हुए है ,

हमें नही पता कोण ये कम कर रहा है पर जो भी ये कम कर रहा है अपने सर पर पाप ले

रहा है उसका भी मुझे दुःख है , भगवन उसको क्षमा करे , इन घटनाओ से बापू जी और

मे जरा भी दुखी नही है , इल्जाम लगाने वालो ने इल्जाम लगाये लाख मगर तेरी

सोगात समझ कर हम हस हस के सहे जाते है ! साईं ने सवाल के जवाब में कहा की आश्रम

में कही तंत्र विद्या का प्रयोग नही किया जाता वरना जो कहते है की मेरे लेटर

पेड़ पर तंत्र विद्या लिखी हुई है उसका ही प्रयोग करके उसको चुप न करा देता वो

मीडिया के पास आता ही नही ! लेटर पेड़ तोह स्टार न्यूज़ का भी बना कर लाया जा

सकता है उसमे क्या है साईं ने दीपक चोरासिया से उल्टा पूछा ! नारायण साईं ने

कहा की आश्रम को बदनाम किया जा रहा है पर हमारे साधक मजबूती से आश्रम के साथ

जुड़े हुए है रोज सत्संग प्रवचन हो रहे है ! एक सवाल के जवाब ने नारायण साईं ने

कहा की आज कल दुसरे के सुख में दुखी होने वालो के कारन ही सबसे बड़ी समस्या है !

और ऐसे ही विघ्न संतोषी लोग ये सब कम कर रहे है ! नारायण साईं ने कहा जो लोग

हिंदू संस्कृति को कमजोर करना चाहते है वो लोग ही इन सबके पीछे है !



*गुजरात सरकार ने c.i.d. जाच में माना की आश्रम के खिलाफ कोई सबूत नही पाए गए

है* !


आज शाम ४ बजे गुजरात सरकार ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में दिए अपने हलफ नामे में

कहा है की आश्रम और नारायण साईं के खिलाफ कोई सबूत उनके पास नही है ! नारायण

साईं की अग्रीम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने अपने बयान में

कहा है की सरकार की और से जो जांच आश्रम में हुई थी उसमे कोई भी आपत्ति जनक नही

पाई गई है ! इसलिए नारायण साईं की याचिका पर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है की

उनको अग्रीम जमानत लेने की कोई आवश्यकता नही है ! क्युकी आश्रम के खिलाफ कोई

सबूत मिला ही नही है


नारायण साईं ने कहा है की ये सत्य की जीत है ! कल ही साईं ने रात में कहा था


सत्य परेशां हो सकता है पराजीत नही आज का ये फेसला सत्य की जीत है !

इसलिए कहते गुरूजी........

शब्द संभाले बोलिए ......

शब्द संभाले बोलिए ......


शब्द के हाथ न पाव रे ........

१। एक शब्द औषध करे..., एक शब्द करे घाव रे ......

२। मुख से निकला शब्द तो, वापिस फिर न आएगा .....

३। दिल किसी का तोरकर तू भी चेन न पायेगा .....

४। इसलिए कहते गुरूजी ,शब्द पे रखना ध्यान रे...


५। सच करवा भाता न किसीको ,...सच मीठा कर बोलिए...

६। गुरु की अमृत वाणी सुनकर, मुख से अमृत घोलिये...

७। इसलिए कहते गुरूजी, मीठा शब्द महान रे......

८। मुख की मौन देवता बनाती, मन की मौन भगवान रे.......

९। मौन से ही तुम अपने , शब्दों मैं भर लो जान रे ....

१०। इसलिए कहते गुरूजी,मौन ही भगवान रे...

११। ज्ञानी तो हर वक्त ही, मौन मैं ही है रहता ....

१२। मुख से कुछ न कहते हुए भी, सब कुछ ही है वो कहता ....

१३। इसलिए कहते गुरूजी, मौन ही वरदान रे.......

१४। एक शब्द औषध करे, एक शब्द करे घाव रे.....

संतशिरोमणि

इतनी मधुर वाणी!
इतना अदभुत ज्ञान!


"मैं अपनी ओर से तथा यहाँ उपस्थित सभी महानुभावों की ओर से परम श्रद्धेय संतशिरोमणि


बापू जी का हार्दिक स्वागत करता हूँ।

मैंने कई बार टी।वी। पर आपको देखा सुना है और दिल्ली में एक बार आपका प्रवचन भी सुना है।

इतनी मधुर वाणी! इतना मधुर ज्ञान!

अगर आपके प्रवचन पर गहराई से विचार करके अमल किया जाये तो इन्सान

को ज़िंदगी में सही रास्ता मिल सकता है। वे लोग धन भागी हैं

जो इस युग में ऐसे महापुरुष के दर्शन व सत्संग से अपने जीवन-सुमन खिलाते हैं।"


---(श्री भजनलाल, तत्कालीन मुख्यमत्री, हरियाणा।)

हरि ॐ, नारायण नारायण नारायण नारायण


ऐसे महान है हमारे बापूजी.....

की सत्संग मैं तेरे जो भी आता खाली झोली भर ले जाता.....

मैं भी आया तेरे द्वार गुरूजी बेरा पर कर दो......

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

अवतरण दिवस

अवतरण दिवस का दिन था , दुबई में रात को ९.३०-११.३० तक २ घंटे का प्रोग्राम था ......

प्रोग्राम अपने समय से चालू हुआ ........

पहले आशा रामायण का पाठ , सत्संग फिर भजन- कीर्तन फिर आरती .......

और आरती के बाद फिर भजन -कीर्तन चालू हो गया , और समय का पता भी नही चला ............

सब साधक भाई -बहेन खो चुके थे उस जोगी की याद मैं .........

आत्माराम मैं खो चुके थे ..........

किसी का भी घडी की तरफ ध्यान नही था ....... हर कोई उस परमात्मा मैं खोया हुआ था ........

जेसी दुबई वालो की श्रधा थी वेसी हे सुनी मेरे जोगी ने उन सबकी .........

जी हा जोगी ने दिखाया अपना चमत्कार और सत्संग २ घंटे की जगह ३.३० घंटे चला .........

और सत्संग ख़त्म होने से पहले ही जोगी ने अपने साक्षात् होने का सुबूत दे दिया.......

जोगी ने दिखा दिया की दुबई वालो आपकी भक्ति मुझे पसंद आई ...

और दुबई के भक्तो को उनकी श्रधा का फल मिला ..........

बापू जी के चमत्कार से जो माला जोगी को पहनाई थी ........

वो सफ़ेद रंग की थी और सत्संग ख़त्म होने तक वो आधी माला गुलाबी रंग की हो चुकी थी........

जो गुलाब की तरह चमक रही थी.........

वाह मेरे जोगी तेरी लीला निराली ..........

तेरा भक्त कही भी रहे............

तू हमेशा उसके साथ रहता है ........

इतनी दूर भी आप अपने भक्तो का कितना ख्याल रखते हो............

मेरे बापू तेरी लीला निराली ...........

जय हो....

जोगी रे क्या जादू है तेरे प्यार मैं...............

दर्शन........

हिन्दुस्तान ऋषियों की, गुरुओं की धरती है।

इस हिन्दुस्तान में अमन, शांति, एकता और भाईचारा बना रहे

इसलिए पूज्य बापू जी से आशीर्वाद लेने आया हूँ।

मैं आशीष लेने आया हूँ और मेरे लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

जब-जब पूज्य बापूजी पंजाब आयेंगे, मैं दर्शन करने अवश्य आऊँगा।"

........................................श्री प्रकाश सिंह बादल, तत्कालीन मुख्यमंत्री, पंजाब।

अच्छे संस्कार

श्री अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार।
--------------------------------------------------- कहेते हे ...............

मनुष्य नहीं वह जंतु है, जिसे धर्म का भान नहीं।

मृत है वह देश, जिस देश में संतों का मान नहीं।।

वे कहते हैं-

"देशभर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार


जगाना एक ऐसा परम राष्ट्रीय कर्त्तव्य है जिसने आज तक हमारे देश को जीवित रखा है


और जिसके बल पर हम उज्जवल भविष्य का सपना देख रहे हैं।

उस सपने को साकार करने की शक्ति और भक्ति एकत्र कर रहे हैं, पूज्य बापूजी।

सारे देश में भ्रमण करके वे जागरण का शंखनाद कर रहे हैं,

अच्छे संस्कार दे रहे हैं। अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं।


हमारी जो प्राचीन धरोहर थी, जिसे हम लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे,

उस धरोहर को फिर से हमारी आँखों के आगे और ऐसी आँखों के आगे रख रहे

हैं जिसमें उन्होंने ज्ञान का अंजन लगाया है।"

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श्री अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार।..............

जी हा ये कहा है भारत के प्रधानमंत्री ने ...........

आप सोचिये की जब भारत का प्रधानमंत्री भी बापूजी को प्रणाम करता है

यानि बापू जी है न बड़ी हस्ती ............. तो सोचना केसा आओ बापूजी के सत्संग मैं .........


और धन्य बना लो अपना जीवन ..........

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

सच का सामना

आनंदीबहन पटेल,
शिक्षामंत्री (पूर्व),
राजस्व एवं मार्ग व मकान मंत्री (वर्तमान), गुजरात।


"बापूजी कितने प्रेमदाता हैं कि कोई भी व्यक्ति समाज में दुखी न रहे

इसलिए सतत प्रयत्न करते रहते हैं।

मैं हमेशा 'संस्कार चैनल' चालू करके आपके आशीर्वाद लेने के बाद ही सोती हूँ।

जीवन की सच्ची शिक्षा तो हम भी नहीं दे पा रहे हैं,

ऐसी शिक्षा तो पूज्य संत श्री आसारामजी बापू जैसे संत शिरोमिणी ही दे सकते हैं।" ....................


..........................................................आनंदीबहन पटेल, शिक्षामंत्री (पूर्व), राजस्व एवं मार्ग व मकान मंत्री (वर्तमान), गुजरात।

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जी हा ऐसे महान है हमारे बापूजी .....

आप भी सोच क्या रहे है

अगर नही गए बापूजी क सत्संग मैं आप ......

तो जाओ ऐसा मौका बारबार नही आता .........

हर कोई माथा टेकता है बापूजी के आगे क्योकि

वो है ही इतने महान ...........


वाह बापू वाह ........