शनिवार, 8 मई 2010

परमा एकादशी 9-10.MAY 2010

अर्जुन बोले : हे जनार्दन ! आप अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम

तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये । इसमें किस देवता की पूजा की जाती है

तथा इसके व्रत से क्या फल मिलता है?



श्रीकृष्ण बोले : हे पार्थ ! इस एकादशी का नाम ‘परमा’ है ।

इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं

तथा मनुष्य को इस लोक में सुख तथा परलोक में मुक्ति मिलती है ।
भगवान विष्णु की धूप, दीप, नैवेध, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए ।
महर्षियों के साथ इस एकादशी की जो मनोहर कथा काम्पिल्य नगरी में हुई थी, कहता हूँ ।

ध्यानपूर्वक सुनो :



काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी । पूर्व के किसी पाप के कारण यह दम्पति अत्यन्त दरिद्र था ।
उस ब्राह्मण की पत्नी अपने पति की सेवा करती रहती थी
तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी ।



एक दिन सुमेधा अपनी पत्नी से बोला: ‘हे प्रिये !
गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती इसलिए मैं परदेश जाकर कुछ उद्योग करुँ ।’



उसकी पत्नी बोली: ‘हे प्राणनाथ ! पति अच्छा और बुरा जो कुछ भी कहे,
पत्नी को वही करना चाहिए । मनुष्य को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मिलता है ।
विधाता ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, वह टाले से भी नहीं टलता । हे प्राणनाथ !
आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं, जो भाग्य में होगा, वह यहीं मिल जायेगा ।’



पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया ।
एक समय कौण्डिन्य मुनि उस जगह आये ।
उन्हें देखकर सुमेधा और उसकी पत्नी ने उन्हें प्रणाम किया
और बोले: ‘आज हम धन्य हुए ।
आपके दर्शन से हमारा जीवन सफल हुआ ।’
मुनि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया ।



भोजन के पश्चात् पतिव्रता बोली: ‘हे मुनिवर ! मेरे भाग्य से आप आ गये हैं ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट होनेवाली है ।
आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए उपाय बतायें ।’



इस पर कौण्डिन्य मुनि बोले :

‘अधिक मास’ (मल मास) की कृष्णपक्ष की ‘परमा एकादशी’ के व्रत से समस्त पाप,
दु:ख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस व्रत को करता है,
वह धनवान हो जाता है । इस व्रत में कीर्तन भजन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए ।
महादेवजी ने कुबेर को इसी व्रत के करने से धनाध्यक्ष बना दिया है ।’



फिर मुनि कौण्डिन्य ने उन्हें ‘परमा एकादशी’ के व्रत की विधि कह सुनायी ।
मुनि बोले: ‘हे ब्राह्मणी ! इस दिन प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर
विधिपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए ।
जो मनुष्य पाँच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं,
वे अपने माता पिता और स्त्रीसहित स्वर्गलोक को जाते हैं ।

हे ब्राह्मणी ! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को करो ।

इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि और अन्त में स्वर्ग की प्राप्ति होगी |’



कौण्डिन्य मुनि के कहे अनुसार उन्होंने ‘परमा एकादशी’ का पाँच दिन तक व्रत किया ।
व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण की पत्नी ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते हुए देखा ।
राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गाँव और एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था,
रहने के लिए दिया । दोनों इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में अनन्त सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को गये ।



हे पार्थ ! जो मनुष्य ‘परमा एकादशी’ का व्रत करता है,
उसे समस्त तीर्थों व यज्ञों आदि का फल मिलता है ।
जिस प्रकार संसार में चार पैरवालों में गौ, देवताओं में इन्द्रराज श्रेष्ठ हैं,
उसी प्रकार मासों में अधिक मास उत्तम है ।
इस मास में पंचरात्रि अत्यन्त पुण्य देनेवाली है ।
इस महीने में ‘पद्मिनी एकादशी’ भी श्रेष्ठ है।

उसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है

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