बुधवार, 30 जून 2010

तीन सवाल..........(सबसे श्रेष्ठ कौन है) .... सत्संग



एक राजा जिस साधु-संत से मिलता, उनसे तीन प्रश्न पूछता।

पहला- कौन व्यक्ति श्रेष्ठ है?

दूसरा- कौन सा समय श्रेष्ठ है?

और
तीसरा- कौन सा कार्य श्रेष्ठ है?

सब लोग उन प्रश्नों के अलग-अलग उत्तर देते,

किंतु राजा कोउनके जवाब से संतुष्टि नहीं होती थी।

एक दिन वह शिकार करने जंगल में गया।

इस दौरान वह थक गया, उसे भूख-प्यास सताने लगी।

भटकते हुए वह एक आश्रम में पहुंचा।

उस समय आश्रम में रहने वाले संत आश्रम के फूल-पौधों को पानी दे रहे थे।

राजा को देख उन्होंने अपना काम फौरन रोक दिया।

वह राजा को आदर के साथ

अंदर ले आए। फिर उन्होंने राजा को खाने के लिए मीठे फल दिए।

तभी एक व्यक्ति अपने साथ एक घायल युवक को लेकर आश्रम में आया।

उसके घावों से खून बह रहा था।

संत तुरंत उसकी सेवा में जुट गए।

संत की सेवा से युवक को बहुत आराम मिला।

राजा ने जाने से पहले उस संत से भी वही प्रश्न पूछे।

संत ने कहा,

'आप के तीनों प्रश्नों का उत्तर तो मैंने अपने व्यवहार से अभी-अभी दे दिया है।'

राजा कुछ समझ नहीं पाया। उसने निवेदन किया,

'महाराज, मैं कुछ समझा नहीं।

स्पष्ट रूप से बताने की कृपा करें।'

संत ने राजा को समझाते हुए कहा,

'राजन्, जिस समय आप आश्रम में आए मैं पौधों को पानी दे रहा था।

वह मेरा धर्म है।

लेकिन आश्रम में अतिथि के रूप में आने पर आपका आदर सत्कार करना

मेरा प्रधान कर्त्तव्य था।

आप अतिथि के रूप में मेरे लिए श्रेष्ठ व्यक्ति थे।

पर इसी बीच आश्रम में घायल व्यक्ति आ गया।

उस समय उस संकटग्रस्त व्यक्ति की पीड़ा का निवारण करना भी मेरा कर्त्तव्य था,

मैंने उसकी सेवा की और उसे राहत पहुंचाई।

संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना श्रेष्ठ कार्य है।

इसी तरह हमारे पास आने वालों के आदर सत्कार करने का,

उनकी सेवा-सहायता करने का समय ही श्रेष्ठ है।'

राजा संतुष्ट हो गया।

मंगलवार, 29 जून 2010

सफलता के राज़ (बाल-संस्कार केन्द्र स्पेशल )






1.कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती ।


करमूले तु गोविंद: प्रभाते करदर्शनम् ॥



हर रोज प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना, ईश्वर का ध्यान और 'कर दर्शन' करके बिस्तर छोड़ना तथा सूर्योदय से पूर्व स्नान करना ।




२.अपनी सुषुप्त शक्तियाँ जगाने एवं एकाग्रता के विकास के लिए नियमित रूप से गुरुमंत्र का जप ,



ईश्वर का ध्यान और त्राटक करना ।







3.बुद्धि शक्ति के विकास एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हर रोज प्रातः सूर्य को अर्घ्य देना ,



सूर्य नमस्कार एवं आसन करना ।



४.स्मरण शक्ति के विकास के लिए नियमित रूप से भ्रामरी प्राणायाम करना एवं तुलसी के ५-७ पत्ते



खाकर एक गिलास पानी पीना ।



५.माता -पिता एवं गुरुजनों को प्रणाम


करना । इससे जीवन में आयु, विद्या, यश, व बल की वृद्धि होती है ।




६.महान बनने का दृढ़ संकल्प करना तथा उसे हर रोज दोहराना,


ख़राब संगति एवं व्यसनों का दृढ़तापूर्वक त्याग कर अच्छे मित्रों की संगति करना तथा चुस्तता से ब्रह्मचर्य का पालन करना ।


७.समय का सदुपयोग करना, एकाग्रता से विद्या-अध्ययन करना और मिले हुए ग्रहकार्य को


हर रोज नियमित रूप से पूरा करना ।


८.हर रोज सोने से पूर्व पूरे दिन की परिचर्या का सिंहावलोकन करना और

गलतियों को फिर न दोहराने का संकल्प करना,



तत्पश्चात ईश्वर का ध्यान करते हुए सोना ....



बापूजी के सत्संग से .....


वाह बापू वाह .....

कितना समजाते हो....


हम नादान पता नही कब समजेंगे

आप हमारा तो भला करते हो पर हमारी आने वाली पीडी का भी कितना ख्याल रखते हो

जेसे एक बाप अपने बच्चो का ख्याल रखता है

धन्य हुए हम जो आपको पाया ...

जय हो ...

जपते रहे तेरा नाम जय बापू आशाराम ...

कोई माने या न माने हम भक्त तेरे दीवाने....



हरिओम्म्म्म्म्

कमल हिरानी, दुबई

kem.hirani@yahoo.co.in

सोमवार, 28 जून 2010

गुरुद्वार की मिटटी ...

गुरुचरण रज रज शीश धरी…...........






तुलसीदास जी ने गुरू कि कैसी महिमा गायी है..

राजा दशरथ भी जब गुरू के दर्शन करने जाते थे तो गुरुद्वार की मिटटी हाथ मे लेकर अपने माथे पर तिलक करते…”

गुरुदेव मैंने आप के चरणों कि धूलि पाकर सब कुछ पा लिया !

“… ऐसा भाव…एक बहन की घटित घटना सुनाता हूँ …

वोह बहन बहोत बीमार थी..अब मरी कि तब मरी ऐसी हालत थी उसकी…कोई इलाज काम नही कर रहे थे..

गाजियाबाद मे बापूजी का सत्संग था तो उस बहन ने अपनी माँ को कहा कि मुझे सत्संग मे ले चलो..

माँ बेटे की सहायता से बेटी को सत्संग मे ले गयी..

उसने बड़ी तन्मयता से बापूजी का सत्संग सुना..

सत्संग के बाद बापूजी गए तो वोह बहन अपनी माँ को बोली कि जहा से बापूजी गए मुझे वहा ले चलो..

माँ ले गयी तो वोह बहन ने वहा कि मिटटी उठा ली..माँ बोली कि अरे ये क्या कर रही हो..मिटटी क्यो उठा रही हो…

..तो वोह बहन बोली कि , “ माँ ये गुरुदेव कि चरण रज है ..



मैंने सत्संग मे सुना है कि सदगुरू कि चरण रज शिव जी पे लगे भस्म कि तरह पवित्र होती है..

मैं इस का रोज तिलक करुँगी..और मैं जरुर ठीक हो जाउंगी…”

..वोह बहन ठीक हो गयी…13 साल तक उस बहन ने कष्ट भोगा था..

अब वोह 18 साल की है..5 साल कि थी तब से बीमार थी..

कैसी भी परिस्थिति आये मायूस नही होना चाहिए ..

तकदीर किसी भी वक्त बदल सकती है…

गरमी मे धुप से पिली पड़ गयी घांस बारिश की बूंदे पड़ते ही फिर से हरि भरी हो जाती है.

.रात कितनी भी अंधियारी क्यो ना हो सुबह आते ही अँधेरा दूर हो जाता है…मैं बहोत दुःखी हूँ ..

मेरा पति डाटता है, ससुरालवाले ऐसा बोलते… कई बहने ऐसा सोचकर दुःखी रहती है….

तो बहनो को कोई भी ऐसी समस्या सताती है तो हर महिने के पहले शुक्रवार को या अभी नवरात्री आ रही है

तो नवरात्री के दिनों मे..नहाते समय बाल्टी मे थोडीसी हलदी डालकर नहाये ,

उत्तर दिशा मे मुख करके तिलक करे और प्रार्थना करे कि “ॐ श्रीम गौरियाये नमः

जैसे पार्वती जी का और शिव जी गृहस्थ जीवन था वैसे मेरा रहे. ” …अभी नवरात्री मे करे…घर मे शांति होगी..

घर मे सकारात्मक वातावरण रहेगा….

प्रार्थना ऐसी भूमि है कि ख़ुशी के फूल खिलते ही है..

सुरेशानंद जी की गुरुभक्तिमयी अमृतवाणी ....

रविवार, 27 जून 2010

पर मन में विश्वास था ...(एक साधक का अनुभव)




सदगुरू भगवान की जय....


सदगुरू जी की कृपा कब बरसती है इसका जीता जागता अनुभव किया है मेने....


२८ दिसम्बर २००९ को मैं और मेरी बेटी,बेटा जालंधर स्टेशन ट्रेन पकरने जा रहे थे जो की सुबह ४.३० पर आनी थी


जब हम स्टेशन पे पहुचे तब तक ट्रेन वहा से निकल चुकी थी हम ट्रेन नही पकड़ पाए...


तभी मेने मन ही मन गुरूजी संत श्री आशाराम जी बापू का ध्यान लगाया और प्राथना की अब क्या करे...


तभी अंधर से प्रेरणा मिली की अगले स्टॉप पे जाके ट्रेन पकरो


हमने बाहर निकल के स्कूटर निकाला ओर ७०/८० किमी की स्पीड से चलाया


ट्रेन साथ वाली पटरी पर दौड़ रही थी हमारी सांसे अटकी हुई थी

पर मन में विश्वास था उस दिन सर्दी भी बहुत थी

तथा पग्वारा स्टेशन से २ किमी दूर धुंध सी आ गयी

हमे लगा की ट्रेन अब गयी

फिर मेने सिमरन किया गुरुदेव का तो धुंध हटी और मेने स्पीड बड़ाई

फिर जेसे ही हम स्टेशन पर पहुचे तो देखा की ट्रेन खड़ी है

फिर हम आराम से ट्रेन में बेठे उसके बाद १० मिनट के बाद ट्रेन चली

धन्य है मेरे गुरुदेव जो हम पर इतनी दूर से भी इतनी कृपा करते है

हव्मम चंद,जालंदर छावनी पंजाब
b.mam@rediffmail.com
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वाह बापू वाह ....

केसे आपने चलती ट्रेन को भी रुकवा दिया....

अपने एक भक्त के खातिर ...


कितनी दूर आपका भक्त और कितनी दूर आप...


केसे जान लिया आपने उसके मन की बात....


सच ये कोई भगवान का ही काम हो सकता है ....



किसी साधारण मनुष्य का नही.....


सच मुच बापू आप हमारे भगवान हो ....



धन्य भाग हमारे जो हमने आपको पाया .....



जिसने आपको न पाया ....


आपसे दीक्षा न लेके अपना जीवन धन्य नही बनाया .....


समझो उसने अपना जीवन व्यर्थ गवाया ...


जय हो ...

जपते रहे तेरा नाम ...जय बापू आशाराम...


हरिओम्म्म्म

शनिवार, 26 जून 2010

असली सुख ...



विश्वासो फलदायकः।

गप्पे लगाकर, फिल्में देखकर जो सुख चाहते हैं, वह नकली सुख है, विकारी सुख है, तुमको संसार में फँसाने वाला है

और भगवान की प्रीति से, पुकार से जो सुख मिलता है वह असली सुख है,

आनंददायी सुख है। उस असली सुख से आपकी बुद्धि बढ़ेगी, ज्ञान बढ़ेगा, आपमें भगवान का सौंदर्य,

प्रीति और सत्ता जागृत हो जायेगी।




केवल भगवान को प्रीतिपूर्वक सुबह-शाम पुकारना शुरु कर दो। दिन में दो-तीन बार कर सको तो अच्छा है।

फिर आप देखोगे कि अपना जो समय असत् उपाधियों के असत् अहंकार में पड़कर बर्बाद हो रहा था,

वह अब बचकर सत्स्वरूप परमात्मा के साथ एकाकार होने में,

व्यापक होने में, आत्मा के असली सुख में पहुँचाने में कितना मददरूप हो रहा है

! फिर धीरे-धीरे असली सुख का अभ्यास बढ़ता जायेगा

और आप व्यापक ब्रह्म के साथ एकाकार होकर जीवन्मुक्त हो जाएँगे।

बापूजी की अमृतवाणी .....

बापूजी आप हमे कितना समजाते हो ....

और हम मुर्ख समझ ही नही पाते

वाह बापू वाह ....

धन्भाग्य हमारे जो हमने आप जेसा सदगुरु पाया ....

जय हो ...

जपते रहे तेरा नाम ....

जय बापू आशाराम ....

हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्

शुक्रवार, 25 जून 2010

ऋषि प्रसाद से जिन्दगी बदल गयी(अनुभव)


भगवदपाद संत श्री आशाराम जी महाराज के चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम.....

मैं सी ऐ की स्टुडेंट हु
पूज्य बापूजी सच में भगवान का अवतार है
मैं उनसे अब तक दीक्षा तो नही ले पाई
पर उनकी बुक्स परने से मेरी लाइफ बदल गयी

५-६ साल पहेले मेरे पापा ने ऋषि-प्रसाद किताब चालू करवा ली
वो किताब हमारे घर में तो किसी ने नही परी पर मैं उनको परती थी

फिर बापूजी पे जूठे आरोप लगने की वजह से मेरे घरवालो ने मेरी किताब परना बंद करवा दिया
क्युकी मुज में बहुत बदलाव आने लगा था

जेसे किसी से बात करने का मन नही करता था ....
खाना डंग से नही खाती थी
न हस्ती थी,

बस पूरा दिन अपने रूम में बुक परने के बहाने अकेली बेठी रहती


फिर मेने अपने पॉकेट मनी से चुपके चुपके उनकी बुक्स खरीदनी और परनी शुरू की
उसका नतीजा ये है की आज मैं अपने आपको उनत महसूस करती हु

ये बापूजी की कृपा हे तो है जो उन्होंने मेरे पापा को ऋषि-प्रशाद चालू करवाने की प्रेरणा दी
वो सच में मुझे अपना बनाना चाहते थे
और उन्होंने ये कर दिखाया ......


पर मेरे इस मन ने कोई पाप कम नही किये इसलिए आज मेरी जहा शादी होने जा रही हे
वो भी जूठे आरोपों की वजह से मुझे दीक्षा दिलाने को तयार नही है
पर मैं हिम्मत नही हारूंगी .....


बापूजी कहेते है ....
मुसीबतों से जो टकराए उसे बापू का बच्चा कहेते है
मैं उनकी बच्ची हु तो कच्ची रहना का तो सवाल ही नही उठता

बापूजी तो हमेशा मेरे साथ है
मेरे दिल में बेठे मुझे प्रेरणा दे रहे है
बस अभी मुझे इस बात का इंतजार है की
जब उनकी असीम कृपा होगी तो मेरे सब काम बन जायेंगे बस ...

हरिओम्म्म्म्म्म्,आनंद ॐ माधुर्य ॐ शक्ति भक्ति और मुक्ति

एक बहेन,
पंजाब


वाह बापूजी वाह ....
सच में जितनी लीला आपकी गायी जाये वो कम है ...
धनबागी है हम जो हमने आपको पाया....
नही तो लोग तरसते है आपके दर्शन दीदार को ....

बड़ी किस्मत वाले है वो जिन्हें आपका दर्शन हुआ...
आपसे दीक्षा मिली ...
और उन सबने अपना जीवन धन्य बनाया ...

हरिओम्म्म्म्म्म् ....

अगर आप ये ब्लॉग पर रहे है और बापूजी से दीक्षा नही ली है ...
तो आओ कही देर न हो जाये ...
चले बापूजी के सत्संग में और ..
उनसे दीक्षा पाकर अपना जीवन धन्य बनाये...
और अपनी आने वाली पीडी का भी भला करे ...
अपने बच्चो को बापूजी के बाल-संस्कार केंद्र में भेजे ....
और उनका भी भविष्य उज्वल बनाये...

हरिओम्

बुधवार, 23 जून 2010

किसी की श्रद्धा तोड़ी तो .....






जहाँ कुमति तहँ बिपत्ति निदाना।।

जो कुकर्म करते हैं, दूसरों की श्रद्धा तोड़ते हैं अथवा और कुछ गहरा कुकर्म करते हैं

उन्हें महादुःख भोगना पड़ता है और यह जरूरी नहीं है कि किसी ने आज श्रद्धा तोड़ी

तो उसको आज ही फल मिले। आज मिले, महीने के बाद मिले,

दस साल के बाद मिले... अरे !

कर्म के विधान में तो ऐसा है कि 50 साल के बाद भी फल मिल सकता है

या बाद के किसी जन्म में भी मिल सकता है।श्रद्धा से प्रेमरस बढ़ता है,

श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है। कोई हमारा हाथ तोड़ दे तो इतना पापी नहीं है,

किसी ने हमारा पैर तोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है,

किसी ने हमारा सिर फोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है

जितना वह पापी है जो हमारी श्रद्धा को तोड़ता है।

""कबीरा निंदक निंदक न मिलो पापी मिलो हजार"

"एक निंदक के माथे पर लाख पापिन को भार""

जो भगवान की, हमारी साधना की,

अथवा गुरु की निंदा करके हमारी श्रद्धा तोड़ता है

वह भयंकर पातकी माना जाता है। उसकी बातों में नहीं आना चाहिए।

निंदा करके लोगों की श्रद्धा तोड़नेवाले लोगों को तो जब कष्ट होगा तब होगा

लेकिन जिसकी श्रद्धा टूटी उसका तो सर्वनाश हुआ।

बेचारे की शांति गयी, प्रेमरस गया, सत्य का प्रकाश गया।

गुरु से नाता जुड़ा और फिर पापी ने तोड़ दिया।

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हजारो-हजारों के जीवन में मैंने देखा कि जिन्होंने संतों का कुप्रचार किया,

उन्हें सताया या संत के दैवी कार्य में बाधा डाली,

उनको फिर खूब-खूब दुःख सहना पड़ा,

मुसीबतें झेलनी पड़ीं। जो संत के दैवी कार्य में लगे उनको खूब सहयोग मिला

और उन्होंने बिगड़ी बाजियाँ जीत लीं। उनके बुझे दीये जल गये,

सूखे बाग लहराने लगे। ऐसे तो हजारों-लाखों लोग होंगे।

'गुरुवाणी' में जो आया है, बिल्कुल सच्ची बात हैः

संत का निंदकु महा हतिआरा।।

संत का निंदकु परमेसुरि मारा।।

संत का दोखी बिगड़ रूप हो जाइ।।

संत के दोखी कउ दरगह मिलै सजाइ।

संत के दोखी की पुजै न आसा।

संत के दोखी उठी चलै निरासा।।

संत के दोखी कउ अबरू न राखन हारू।

नानक संत भावै ता लए उवारि।

अगर वह सुधर जाता है और संत की शरण आता है तो फिर संत उसका अपनी कृपा से उद्धार भी कर देते हैं।

किसी का सत्यानाश करना हो तो उसे संत की निंदा सुना दो,

अपने-आप सत्यानाश हो जायेगा और किसी का बेड़ा पार करना हो तो संत के सत्संग में

तथा संत के दैवी कार्य में लगा दो, अपने आप उसका भविष्य उज्जवल हो जायेगा।

मंगलवार, 22 जून 2010

मैं जोर जोर से रोने लगी ...(अनुभव)


इतने दिनों से सोच रही थी की अनुभव बताऊ की नही ....
दो साल पहेले की बात है बापूजी के सत्संग मैं सुना
मैं तुम्हारे ह्रदय से बोलूँगा

मुझे विश्वास नही हुआ अपने स्वर्गीय पिता की कसम खाके कहेती हु
कुछ दिनों बाद ध्यान में मेरे ह्रदय से जोर जोर से बापूजी की आवाज़ आई
एक बार को दो मिनट तक मुझे विश्वास नही हुआ
मुझे लगा मुझे वहम हुआ है
दूसरी बार आधा घंटा .....

मैं बहुत डर गयी .....
ऐसा लग रहा था जेसे किसी ने मेरे ह्रदय मैं स्पीकर फिट कर दिया हो
मैं उठ के दुसरे कमरे में चली गयी फिर भी आवाज़ शुरू थी
मैंने ह्रदय पे हाथ रख के देखा की कही वहम तो नही
फिर पूजा के कमरे मैं भागी भागी गयी
और बापूजी के फोटो के सामने बोली ...

बंद कीजिये अपनी लीला ....
तो वे बोले अब विश्वास हुआ ..
मैं जोर जोर से रोने लगी ...
माँ की गोद में मैं बहुत रोई ..
और बापू जी से क्षमा मांगी ..
मेरे बापू मेरे है..
परम पिता परमेश्वर है ...

स्मिता पुरुषोत्तम निशाने
(भावसार)
बेंगलोर


वाह बापू वाह....
आपकी लीला है निराली ...जो न जाये बखानी
जय हो ....
हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्

सोमवार, 21 जून 2010

निर्जला एकादशी विडियो

व्रत खोलने की विधि ....

निर्जला एकादशी(22nd Jun'10)

निर्जला एकादशी }}}}}}}

युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे,


क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।


तब वेदव्यासजी कहने लगे: दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे ।

द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे ।

फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे ।

राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।

यह सुनकर भीमसेन बोले: परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये ।

राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते

तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’

किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है

और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।

भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ ।

एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता,

फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ?

मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ,

तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ ।

जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ,

ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।

व्यासजी ने कहा: भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर,

शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो ।

केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो,

उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है ।

एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है ।

तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे ।

इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे ।

वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है,

इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि:

‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’


एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय,

विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते ।

अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान

वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं ।

अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो ।

स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो

वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है ।

जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है,

वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है ।

मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है,

वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है ।

निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है ।

जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है ।

इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे ।

जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।

कुन्तीनन्दन ! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं,

उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन

और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है ।

पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए ।

ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं ।

जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस

‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है,

उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव

के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल,

शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए

। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है,

वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।

जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है,

वह स्वर्गलोक में जाता है ।

चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है,

वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि :

‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’

द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए ।

गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए

निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :


देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।

उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।’



भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है,

उसका निर्जल व्रत करना चाहिए ।

उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए ।

ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है ।

तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे ।

जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है,

वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है ।

यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया ।

तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई ।

१५ दिन में एक बार तो व्रत रखना ही चाहिऐ एकादशी का…





गुरुदेव ने कहा कई लोग व्रत करते हैं और आइस-क्रीम /कोका- कोला पीते हैं…

अरे उसमें तो हड्डियों का तेल निकाला हुआ डालते हैं …

केमिकल डालते हैं…व्रत में तो निम्बू पानी पी लिया…

सुबह सुबह अथवा रात को थोडा दूध पी लिया और थोडा सेब(ऐपल) फल खा लिया,बस हो गया…

केले भी नहीं खाने चाहिऐ जादा…

व्रत कि भुखमरी से जठरा को अन्न नहीं मिलता तो जठरा रोग को पचा लेती है,

आदमी निरोग रहता है…

एक ९५ साल के “जवान” से पूछा आप अभी तक ९५ साल में “जवान”कैसे हैं?

बोले मैं हफ्ते में एक बार कडा व्रत रखता हूँ…

और मौसम बदलता है तो हम दस-दस दिन के व्रत रखते हैं…

और भोजन में हम सलाद खाते हैं थोडा…

इसीलिये ९५ साल में भी मैं जवान जैसा…

जो तीसों दिन खाना खाते हैं वोह जल्दी बुड्ढे होते हैं

और बीमारियों के घर हो जाते हैं…

हफ्ता में एक दिन व्रत तो रखना चाहिऐ,

नहीं रखे तो १५ दिन में एक बार तो व्रत रखना ही चाहिऐ एकादशी का…

जिससे पाप और रोग मिटें…

लेकिन जो बुड्ढे हैं, कमजोर हैं, डायबिटीज़ कि तकलीफ है…

वोह व्रतना रखे तो चल जाएगा…अथवा कोई व्रत रखता है और कमजोर है तो किश्मिश खाए…

डायबिटीज़ वाला भी किशमिश खायेगा तो डायबिटीज़ में भी आराम है और ताक़त भी रहेगी…

दूध का भी काम करे, फल का भी काम करे किशमिश…

दूध पचाने में जितना समय लगे उस से भी आधे समय में किशमिश पाच जाये,

लेकिन किशमिश धोये बिना नहीं खानी चाहिऐ…

क्योंकि उसको केमिकल लगा के रखते हैं, जंतु-नाशक दवाई…धो के ही किशमिश खानी चाहिऐ…


गुरुदेव के बौन्द्सी सत्संग (सन्डे, 23-sep) के कुछ अमृत बिन्दु ....

बुधवार, 16 जून 2010

खतरनाक आदमी




दूसरों पर उपकार न कर सको तो कोई ज्यादा चिन्ता की बात नहीं

लेकिन कम से कम तुम अपने पर तो उपकार करो।

आत्मकृपा करो।

जो आदमी अपना उपकार नहीं कर सकता वह यदि दूसरों पर उपकार करने का ठेका ले

तो समझो वह खतरनाक आदमी है।

लड़ाई झगड़ा करके दूसरों को सुधारने के लिए बहुत लोग उत्सुक हैं

परन्तु अपने को सुधारने के लिए, मन को समझाने के लिए कौन उत्सुक है ?

जो अपने को सुधारने के लिए उत्सुक होते हैं, जो ध्यान करते हैं उनकी सोई हुई जीवनशक्ति जाग्रत हो जाती है।

कम से कम तुम अपने आपको सँभालो।

दूसरों को नहीं सँभालोगे तो चल जायगा।

अपने आपको सँभालोगे तो दूसरे अपने आप सँभल जायेंगे।

अपने को नहीं सँभाला तो दूसरों को सँभालने की भ्रांति होगी।

पल का पता नहीं(सत्संग)


आत्मतत्त्व नहीं जानने के कारण ही हमको सुख-दुःख की चोट लगती है।

अज्ञानी सोचता है कि जिस प्रकार मैं चाहता हूँ उसी प्रकार सब हो जाय तो मुझे सुख हो। यही मनुष्य का अज्ञान हो।

जगत के बन्धनकारक सम्बन्धों को सत्ता देने वाला दृष्टा इन सम्बन्धों गुम हो गया है।

उस परम का पता नहीं और शरीर को ही मैं मानकर सब सम्बन्धों की भ्रमजाल रचते जाते हैं।

इन्हीं बन्धनों में जन्म-जन्मांतर बीत गये। आज तक उसका बोझा उठा रहे है।

पता पल का नहीं, सामान सौ साल का थामे जा रहे है।

जो अस्तित्व है उस अस्तित्व का ज्ञान नहीं है इससे हमारा भय जगहें बदल लेता है

लेकिन निर्मूल नहीं होता। संसारी लोग सिखा सिखा कर क्या सिखायेंगे ?


वे अज्ञानी संसार का बन्धन ही पक्का करायेंगे। जिस फ्रेम में दादा जकड़े गये,


पिता जकड़े गये, उसी फ्रेम में पुत्र को भी फिट करेंगे। बन्धन से छुड़ा तो नहीं सकेंगे।


इस प्रकार सोचना कि ईश्वर हमारे कहने में चले – यह मूर्खता है।

यह तुम्हारे मन की गाँठ है। उसको खोलना चाहिए।

खोलोगे नहीं तो स्वभाव नहीं बदलेगा और स्वभाव नहीं बदलेगा तो फिर दुःख ही हाथ लगेगा।

मंगलवार, 15 जून 2010

आसुरी तत्त्व का मायाजाल




पहाड़ से चाहे कूदकर मर जाना पड़े तो मर् जाइये,

समुद्र में डूब मरना पड़े तो डूब मरिये,

अग्नि में भस्म होना पड़े तो भले ही भस्म हो जाइये

और हाथी के पैरों तले रुँदना पड़े तो रुँद जाइये परन्तु इस मन के मायाजाल में मत फँसिए ।

मन तर्क लडाकर विषयरुपी विष में घसीट लेता है ।

इसने युगों-युगों से और जन्मों-जन्मों से आपको भटकाया है ।

आत्मारुपी घर से बाहर खींचकर संसार की वीरान भूमि में भटकाया है ।

प्यारे ! अब तो जागो ! मन की मलिनता त्यागो । आत्मस्वरुप में जागो । साहस करो ।

पुरुषार्थ करके मन के साक्षी व स्वामी बन जाओ ।

आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा आत्मानंद में मस्त रहने के लिए सत्त्वगुण का प्राबल्य चाहिये ।

स्वभाव को सत्त्वगुणी बनाइये । आसुरी तत्त्वों को चुन-चुनकर बाहर फेंकिए । यदि आप अपने मन पर

नियंत्रण नहीं पायेंगे तो यह किस प्रकार संभव होगा?

रजो और तमोगुण में ही रेंगते रहेंगे तो आत्मज्ञान के आँगन में किस प्रकार पहुँच पायेंगे ?


यदि मन मैला हो प्रिय ! सब ही मैला होय् ।

तन धोये से मन कभी साफ-स्वच्छ न होय ॥

इसलिये सदैव मन के कान मरोड़ते रहें ।

इसके पाप और बुरे कर्म इसके सामने रखते रहें ।

आप तो निर्मल हैं परन्तु मन ने आपको कुकर्मो के कीचड़ में लथपथ कर दिया है ।

अपनी वास्तविक महिमा को याद करके मन को कठोरता से देखते रहिये तो मन समझ जायेगा,

शरमायेगा और अपने आप ही अपना मायाजाल समेट लेगा

बापूजी के सत्संग परवचन से.....


वाह बापू वाह क्या समजाते हो.....जय हो ......

हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्
..................
कमल हिरानी,

सुप्रचार सेवा...

बुधवार, 9 जून 2010

अपने झूठे अहंकार को मिटा दो....पार्ट-२


नश्वर का अभिमान डुबोता है, शाश्वत का अभिमान पार लगाता है।

एक अभिमान बन्धनों में जकड़ता है और दूसरा मुक्ति के द्वार खोलता है।

शरीर से लेकर चिदावली पर्यंत जो अहंबुद्धि है

वह हटकर आत्मा में अहंबुद्धि हो जाय तो काम बन गया।

'शिवोऽहम्.... शिवोऽहम्....' की धुन लग जाय तो बस.....!

मन-बुद्धि की अपनी मान्यताएँ होती हैं और अधिक चतुर लोग ऐसी मान्यताओं के अधिक गुलाम होते हैं

वे कहेंगेः "जो मेरी समझ में आयेगा वही सत्य। मेरी बुद्धि का निर्णय ही मानने योग्य है और सब झूठ....।"

नाम, जाति, पद आदि के अभिमान में चूर होकर हम इस शरीर को ही "मैं" मानकर चलते हैं

और इसीलिए अपने कल्पित इस अहं पर चोट लगती है तो हम चिल्लाते हैं और क्रोधाग्नि में जलते हैं।

नश्वर शरीर में रहते हुए अपने शाश्वत स्वरूप को जान लो।

इसके लिए अपने अहं का त्याग जरूरी है। यह जिसको आ गया, साक्षात्कार उसके कदमों में है।

परिच्छिन्न अहंकार माने दुःख का कारखाना।

अहंकार चाहे शरीर का हो, मित्र का हो, नाते-रिश्तेदारों का हो,

धन-वैभव का हो, शुभकर्म का हो, दानवीरता का हो,

सुधारक का हो या सज्जनता का हो, परिच्छिन्न अहंकार तुमको संसार की भट्ठी में ही ले जायगा।

तुम यदि इस भट्ठी से ऊबे हो,

दिल की आग बुझाना चाहते हो तो इस परिच्छिन्न अहंकार को व्यापक चैतन्य में विवेक रूपी आग से पिघला दो।

उस परिच्छिन्न अहंकार के स्थान पर "मैं साक्षात् परमात्मा हूँ",

इस अहंकार को जमा दो। यह कार्य एक ही रात्रि में हो जायेगा ऐसा नहीं मानना।

इसके लिए निरन्तर पुरुषार्थ करोगे तो जीत तुम्हारे हाथ में है।

यह पुरुषार्थ माने जप, तप, योग, भक्ति, सेवा और आत्म-विचार।

बाहर की सामग्री होम देने को बहुत लोग तैयार मिल जायेंगे

लेकिन सत्य के साक्षात्कार के लिए अपनी स्थूल और सूक्ष्म सब प्रकार की मान्यताओं की होली जलाने लिए कोई

कोई ही तैयार होता है।


किसी भी प्रकार का दुराग्रह सत्य को समझने में बाधा बन जाता है।


जब क्षुद्र देह में अहंता और देह के सम्बन्धों में ममता होती है तब अशांति होती है।

जब तक 'तू' और 'तेरा' जिन्दे रहेंगे तब तक परमात्मा तेरे लिये मरा हुआ है।

बापूजी के सत्संग परवचन.....

to be continued.......

hariom
kamal hirani...

रविवार, 6 जून 2010

अपने झूठे अहंकार को मिटा दो......(सत्संग) पार्ट -१/३


परमात्मा हृदय में ही विराजमान है। लेकिन अहंकार बर्फ की सतह की तरह आवरण बनकर खड़ा है।

इस आवरण का भंग होते ही पता चलता है कि मैं और परमात्मा कभी दो न थे, कभी अलग न थे।

वेदान्त सुनकर यदि जप, तप, पाठ, पूजा, कीर्तन, ध्यान को व्यर्थ मानते हो

और लोभ, क्रोध, राग, द्वेष, मोहादि विकारों को व्यर्थ मानकर निर्विकार नहीं बनते हो तो सावधान हो जाओ।

तुम एक भयंकर आत्मवंचना में फँसे हो। तुम्हारे उस तथाकथित ब्रह्मज्ञान से तुम्हारा क्षुद्र अहं ही पुष्ट होकर मजबूत बनेगा।

आप किसी जीवित आत्मज्ञानी संत के पास जायें तो यह आशा मत रखना कि वे आपके अहंकार को पोषण देंगे।

वे तो आपके अहंकार पर ही कुठाराघात करेंगे। क्योंकि आपके और परमात्मा के बीच यह अहंकार ही तो बाधा है।

अपने सदगुरु की कृपा से ध्यान में उतरकर अपने झूठे अहंकार को मिटा दो तो उसकी जगह पर ईश्वर आ बैठेगा।

आ बैठेगा क्या, वहाँ ईश्वर था ही। तुम्हारा अहंकार मिटा तो वह प्रगट हो गया। फिर तुम्हें न मन्दिर जाने की आवश्यकता,

न मस्जिद जाने की, न गुरुद्वारा जाने की और न ही चर्च जाने की आवश्यकता,

क्योंकि जिसके लिए तुम वहाँ जाते थे वह तुम्हारे भीतर ही प्रकट हो गया।

निर्दोष और सरल व्यक्ति सत्य का पैगाम जल्दी सुन लेता है लेकिन अपने को चतुर मानने वाला व्यक्ति उस पैगाम को

जल्दी नहीं सुनता।

मनुष्य के सब प्रयास केवल रोटी, पानी, वस्त्र, निवास के लिए ही नहीं होते,

अहं के पोषण के लिए भी होते हैं।

विश्व में जो नरसंहार और बड़े बड़े युद्ध हुए हैं वे दाल-रोटी के लिए नहीं हुए, केवल अहं के रक्षण के लिए हुए हैं।

जब तक दुःख होता है तब तक समझ लो कि किसी-न-किसी प्रकार की अहं की पकड़ है।

प्रकृति में घटने वाली घटनाओं में यदि तुम्हारी पूर्ण सम्मति नहीं होगी तो वे घटनाएँ तुम्हें परेशान कर देंगी।

ईश्वर की हाँ में हाँ नहीं मिलाओ तब तक अवश्य परेशान होगे। अहं की धारणा को चोट लगेगी। दुःख और संघर्ष आयेंगे ही।

अहं कोई मौलिक चीज नहीं है। भ्रान्ति से अहं खड़ा हो गया है।

जन्मों और सदियों का अभ्यास हो गया है इसलिए अहं सच्चा लग रहा है।

अहं का पोषण भाता है। खुशामद प्यारी लगती है।

जिस प्रकार ऊँट कंटीले वृक्ष के पास पहुँच जाता है, शराबी मयखाने में पहुँच जाता है,

वैसे ही अहं वाहवाही के बाजार में पहुँच जाता है।

सत्ताधीश दुनियाँ को झुकाने के लिए जीवन खो देते हैं फिर भी दुनियाँ दिल से नहीं झुकती।

सब से बड़ा कार्य, सब से बड़ी साधना है अपने अहं का समर्पण, अपने अहं का विसर्जन।

यह सब से नहीं हो सकता। सन्त अपने सर्वस्व को लुटा देते हैं।

इसीलिए दुनियाँ उनके आगे हृदयपूर्वक झुकती है।

bapuji k satsang parvachan se.....
to be continued............
hariom ,
kamal hirani
dubai

अपरा एकादशी(०८-०६-२०१०) को...


युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?

मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ । उसे बताने की कृपा कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आपने सम्पूर्ण लोकों के हित के लिए बहुत उत्तम बात पूछी है ।

राजेन्द्र ! ज्येष्ठ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार वैशाख ) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अपरा’ है ।

यह बहुत पुण्य प्रदान करनेवाली और बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है ।

ब्रह्महत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करनेवाला, गर्भस्थ बालक को मारनेवाला,

परनिन्दक तथा परस्त्रीलम्पट पुरुष भी ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से निश्चय ही पापरहित हो जाता है ।

जो झूठी गवाही देता है, माप तौल में धोखा देता है,


बिना जाने ही नक्षत्रों की गणना करता है और कूटनीति से आयुर्वेद का ज्ञाता बनकर वैद्य का काम करता है…

ये सब नरक में निवास करनेवाले प्राणी हैं ।

परन्तु ‘अपरा एकादशी’ के सवेन से ये भी पापरहित हो जाते हैं ।

यदि कोई क्षत्रिय अपने क्षात्रधर्म का परित्याग करके युद्ध से भागता है

तो वह क्षत्रियोचित धर्म से भ्रष्ट होने के कारण घोर नरक में पड़ता है ।

जो शिष्य विद्या प्राप्त करके स्वयं ही गुरुनिन्दा करता है,


वह भी महापातकों से युक्त होकर भयंकर नरक में गिरता है ।

किन्तु ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से ऐसे मनुष्य भी सदगति को प्राप्त होते हैं ।

माघ में जब सूर्य मकर राशि पर स्थित हो,

उस समय प्रयाग में स्नान करनेवाले मनुष्यों को जो पुण्य होता है,

काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है,

गया में पिण्डदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करनेवाला पुरुष जिस पुण्य का भागी होता है,

बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करनेवाला मानव जिस फल को प्राप्त करता है,

बदरिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान केदार के दर्शन से तथा बदरीतीर्थ के सेवन से जो पुण्य फल उपलब्ध होता है

तथा सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणासहित यज्ञ करके हाथी, घोड़ा और सुवर्ण दान करने से

जिस फल की प्राप्ति होती है, ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से भी मनुष्य वैसे ही फल प्राप्त करता है ।

‘अपरा’ को उपवास करके भगवान वामन की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है ।

इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है ।

हरिओम,
कमल हिरानी,
दुबई

शनिवार, 5 जून 2010

एक ....मछली......वाली ....श्री सुरेशानंद्जी महाराज का सत्संग




जिसके जीवन मे भगवान के नाम कि दीक्षा नही उसका जीवन सफ़ल नही हो सकता..

जिसको भगवान नाम मे रूचि नही , वो नर रूप मे पशु समान है..

किसी किसी को कोई विधि निषेध नही होते ,

जप कि क्या जरुरत है पूछते है….नही भाई साहब !..जप कि बहोत जरुरत है!!….

एक महिला नदी किनारे मछालिया पकड़ कर बेचती और अपना गुजरा करती..

उसकी सहेली थी जो मालन थी, फूलो की मालाये बनाकर गुजारा करती थी..

एक दिन मछली बेचने वाली को उसकी सहेली मालन मिल गयी तो दोनो फूल वाली मालन के घर चले गए..

बात करते करते खाना पीना खाते रात होने को आयी

तो मालन बहन को बोली यहा ही सो जाओ बहन ..

उसने अच्छे से फूलो की बाडी की तरफ से जहा हवा आती थी वहा

मछालिवाली बहन का बिछाना लगा दिया..

ता कि फूलो कि सुगंध आए और मछालिवाली बहन को अच्छी नींद आये..

लेकिन मछालिवाली बहन सो नही पाए…

फूल वाली बहन ने पूछा कि, “क्या हुआ?”..

मछालिवाली बहन बोली कि , ” मुझे बदबू आ रही है..!”…

जरा मेरी टोकरी मे कपडा होगा मछली का उसपर पानी छाटू ,

अपने पास रखू तो शायद मुझे नींद आ जाये…

तो फूल वाली बहन ने वोह मछालिकी बदबूवाला कपडा दिया

और उसे सूंघते हुये वोह मछालिवाली बहन सो गयी..

ऐसे ही कितनों को साधना की सुवास अच्छी नही लगती..

व्यर्थ कि बातो मे , गन्दी फिल्म देखने मे अपना जीवन तबाह कर देते है…

उसी के आदि हो जाते है….ये बदबू है इतना भी समझने का अवसर अपने आप को नही देते…

गुलाब को उठाओ तो सुगंध आएगी….




..सत्च्चितानंद स्वरुप भगवान का नाम गुरू से मिला हुआ नाम जपो तो कल्याण हो जाता है..


नाम मे इतनी शक्ति है..

हरिओम ...........

श्री सुरेशानंद्जी महाराज का सत्संग
*******************
Friday,5th Oct07,
baksi -12 Km from Ujjain

हरिओम
कमल हिरानी,
दुबई

शुक्रवार, 4 जून 2010

बच्चे कल का भविष्य.....(बाल संस्कार केंद्र )





अपने बेटे बेटियों को बार बार नही टोके;

नही तो लुच्चे लफंगो के चक्कर मे आएंगे.

उनके अवगुण बार बार याद दिलाकर कोसो नही..

वो अपने अवगुण सुधरेंगे ऐसे उनके होसले बुलंद करो…

धीरे से समझाए कि , “तुम्हारे मे दोष नही ..

तुम तो निर्दोष आत्मा हो…दोष तो शरीर और मन मे आते है..

तुम तो मेरे लाल हो बेटे.

.थोडा ये गलती निकाल दो..”

ऐसे कहे के अपने बच्चो को मदत करो…

बेटे बेटी की गलती निकल जायेगी..

अलार्म से बच्चो को नही जगाये..

घर के बडो ने ये काम करना चाहिऐ कि प्यार से ,

स्नेह से सब को उठाए..”जागो मोहन प्यारे” ऐसे भगवान का नाम लेकर जगाये..

तो दिनभर ईश्वर का आनंद रहेगा…





(* सदगुरूदेव ने सत्संग के तुमुल ध्वनि के लाभ बताते हुए

संत तुलसीदास के और कबीर जी के दोहे गए..**

और कंठ मे ओमकार का जप करनेवाला भ्रामरी प्राणायाम २ बार सुबह और शाम करने को कहा…)


पूज्य श्री के सत्संग परवचन से...

देखा बापूजी हमारा तो ख्याल रखते है

साथ में हमारे बाद आने वाले हमारे बच्चो का भी कितना ख्याल रखते है

वाह बापू वाह...

जग में नही कोई ऐसा....मेरे बापू जेसा...

जय हो....

हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म् ...........

कमल हिरानी,दुबई

गुरुवार, 3 जून 2010

भगवान् नाचने लग गए...........





भगवान् को अपना मानेंगे तो प्रेम रस जागेगा..

.गोपियों को देखो,प्रेम रस था तो भगवान् नाचने लग गए...

भगवान् तो प्रेम के भूखे हैं...

प्रेम से कोई भी दे - पत्र, पुष्पम, भगवान् स्वीकार करते हैं...

जब भोजन करो तो कह दो - "ठाकुर जी! खा लियो"...

वास्तव में तो ठाकुर जी ही भोग लगावे...

मैं खा रिया हूँ, मैं खा रिया हूँ,

तेरा ठाकुर जी ना हो, तो तू खा के दिखा?

मुर्दे को बोलो - तू चबा के दिखा ,

बेटे...जीवन भर खा लिया, तो एक रोटी चबा के दिखा तेरे बाप कि ताक़त है तो?

ठाकुर जी खिलाये तभी खावे, फिर चाहे जाट हो चाहे उसका बाप हो, चाहे बनिया हो...:-)

तो जब भोजन करो ना, तो भगवान् को बोलो कि आपको भोग लगाऊं,

पोट तो थारो भरेगा, भक्ती कि भक्ती हो जायेगी और भोजन बन जायेगाप्रसाद..

.और भगवान् कहते हैं -प्रसादेय सर्व दुखानाम हानिरास्योप्जायेते।

॥बुद्धि में प्रसन्नता आएगी...भगवान् को भोग लगाओगे तो रस तो भगवत मय बनोगो ना,

ऐसा थोडे ही झगड़ा खोर रस बनोगो...

दीक्षा का महत्त्व बताते हे गुरुदेव ने कहा - भगवान् के नाम में बड़ी ताक़त है,

लेकिन दीक्षा के बाद वोह जागृत होता है...

हरि ॐ,

बापू जी ने यह भी पक्का करवाया था,

सदा दिवाली संत कि.........चारों पहर आनंद......अकल माता कोई उपजाया...... ...गिने इन्द्र को रंक...

********* ********* *******

पूज्य बापूजी के सत्संग परवचन से....

वाह मेरे बापू केसे केसे समजाते हो ....

इतना सरल तरीका.....भक्ति करने का...

क्या कोई और इतनी सरलता से समजा सकता है...

वाह मेरे बापू आपकी लीला निराली...

जय हो...

हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्

नारायण नारायण नारायण नारायण

बुधवार, 2 जून 2010

सिन्धी सांइंयों का पंजा......


..एक सिन्धी साईं टोपणदास थे..

उन के चौथे बेटे की शादी हो गई..बहु ले आए..

नई बहु थी,तो बहु के हिस्से हल्की फुलकी सेवा थी…

टोपनदास थाली पर २ खटके लगावे तो माचिस ले जानी है..

३ खटके लगावे तो घी ले जाना है..

४ खटके लगावे तो रुई ले जाना है….

५ खटके लगावे तो माला ले जानी है..

ऐसा आपस में उन का समझोता था..ट्युनिंग थी…

उस जमाने में बेल नहीं थी..वो माला छोड़ के आई..

और कुछ चाहिए वो देके आई..इतने में कोई आया, “सेठ टोपणदास आहे?”

बहु बोलती है, ” वो रुई खरीद रहे दुकानपर…पेढ़ी पे है..”

टोपणदास को गुस्सा आया की अभी तो माला देकर गई..ऐसा कैसा करती है?


इतने में दूसरा आदमी आया, “सेठ टोपणदास आहे?”

बहु बोलती, “नहीं , वो अपनी बहु को डांट रहे..अभी नहीं मिलेंगे..”

(सेठ टोपणदास और भी नाराज हो गए बहु पर)

इतने में तीसरा आदमी आया, सेठ बड़े पेढीदार थे..

बहु बोली की, “वो मोची के पास गए है, चप्पल सिलने के लिए..”


अब तो टोपणदास की पुजाबुजा ऐसे ही हो गया..बार बार घड्याल को देखे..

सुबह ४ बजे से १० बजे तक पूजा में बैठते थे..लेकिन अभी तो टाइम नहीं हो रहा…बार बार घड्याल को लानत दे…

ये सिन्धी साईं का पंजा है ना वो मल्टी पर्पज है

प्रेम से , दोस्ती से करे तो “तू पांचो विकारों से तर जा !”

और गुस्से से, दुश्मनी से करे तो ,”तू पांचो विकारों में डूब मरो!”

ऐसा है पंजा ये सिन्धी सांइंयों का…

..तो टोपणदास बार बार घड्याल को लानत दे…‘लख ना लत ते….अभी १० नहीं बजता है..‘

तो झुलेलाल भगवान को ये दे..

गणपति को ये दे..

इस देव को पूजे..उस देव को पूजे….

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय…असी ना माना…‘ फिर घड्याल को देखे..

(टोपणदास का पूजा में मन नहीं लग रहा था..)मुश्किल से १० बजे! टोपनदास बाहर आए..


‘नंडी ओ नंडी‘ नंडी माना छोटी बहु..‘हेडा अच्‘ यहाँ आओ..


‘तेरी उमर घंडी आहे?’ तेरी उमर कितनी है?


बहु बोली, ‘मेरी उम्र का तो कोई पार नहीं..‘


‘अरे! तुजी उम्र का कोई पार नहीं?’


बहु बोली, ‘हजारो शरीर पैदा हुए , मरे..मई तो वो ही की वोही हूँ..


मेरी उमर का तो कोई पार नहीं …शरीर की उमर तो १८ साल २ महीने है!‘

टोपणदास बोले, ‘ठीक है लेकिन तू झूठ बोलना कब से सीखी?मैं तो पूजा के रूम में था..तुम झूठ क्यो बोली की पेढ़ी पर है‘

बहु बोली की, ‘गुस्ताखी माफ हो ससुर जी,

आप शरीर से तो पूजा के रूम में थे लेकिन आप का मन पेढ़ी पर था..

मैंने ऐसा बोल दिया तो आप मुझ पर नाराज हो गए..

और वो चप्पल वाली बात इसलिए कही की मेहमान के सामने मोची ने ज्यादा पैसे ले लिए तो

आप ने इज्जत बचने के लिए दे दिए..

लेकिन पूजा के रूम में विचार कर रहे थे की आज पोते की चप्पल सिला के मोची के बच्चे का हिसाब वसूल करूँगा..‘

टोपणदास बोले, ‘नंदी..ये सब कहा से जान गई?मैं ४० साल से साधना करता हूँ..

मेरे को पता नहीं चला..तू कैसे समज जाती ये‘

बोले, ‘ मनमानी भक्ति, श्रध्दा अपने ढंग की होती और गुरु की दीक्षा वाली साधना अपने ढंग की है..

श्रध्दा के साथ बुध्दी योग उपसिती..बुध्दी से भगवत तत्व की उपासना करनेवाली दीक्षा मिलनी चाहिए..‘

ऐसा भगवान ने गीता में भी कहा है..



टोपणदास उस के मुख से ऐसी सत्संग की बातें सुनकर दंग रहे गए…

मैं ४० साल से साधना में बैलगाडी में घूम रहा हूँ..

तू शादी के २ महीने पहिले दीक्षा ली समर्थ गुरु की और इतनी आगे निकल गई..!‘




जो समर्थ गुरु में भी दोष देखते वो बड़े साधू- साध्वी होने के बाद भी गिर पड़ते है..लेकिन सदगुरू में सदगुरू तत्व देखते है तो उस का बेडा पार हो जाता है..बड़े बड़े गिर जाते है..

गुरु को माने मानवी, देखे देह व्यवहार l

कहे प्रीतम संशय नहीं, पड़े नरक के झार ll



गुरु को अगर देह धारी मान कर गुरु में अगर मनुष्य बुध्दी किया तो गिर जाएगा..लेकिन गुरु से दीक्षा लेकर ईमानदारी से गुरु से वफादार रहा तो बेडापार हो जाता…


टोपणदास बहोत प्रभावित हुए..कुलमिलाकर गुरु की कृपा के बिना असंभव है..कितना भी आदमी कितना भी कुछ कमाए ..धन कमाए लेकिन आत्मसंतोष के बिना जीवन पशु जैसा है….

तो वे लोग धनभागी है जिन को सत्संग मिलता है..उस से दुगुने चौगुने वो धनभागी है जिन को ब्रम्हज्ञानी गुरु का सत्संग मिलता है और उस से १००० गुना वे धनभागी है जिन को ब्रम्हज्ञानी गुरु से दीक्षा मिलती है…

और करोड़ गुना वे धनभागी है जिन की गुरु में श्रध्दा टिकी है..

..नहीं तो कुछ अभागे दीक्षा तक पहुंचते लेकिन ऐसा वैसा सुनकर गिर पड़ते…

तो कबीर जी बोलते,

प्रभु रस ऐसा जैसे लम्बी खजूर l

चढ़े तो चखे प्रेमरस, पड़े तो चकनाचूर ll

bapuji k satsang parvachan se.....

अरे समझ रखने वालो अब तो समझ जाओ....

इतना सिखाते है मेरे बापू.....

इतना ज्ञान कही नही मिलेगा ....

आओ बापूजी की शरण में...

और पा लो सच्चा ज्ञान ....जय हो....


ॐ शान्ति.


हरि ॐ!सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे…

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मंगलवार, 1 जून 2010

सच का साथ.........(किसान की जमीन)सत्संग



एक किसान को पैसे कि जरुरत पड़ी तो उसने साहूकार से कर्जा लिया

और अंगूठा कर दिया..साहूकार ने एक मिण्डी बढ़ा दी..

५ के ५० हो गए..

रामानंद ने किसान की जमीन हड़प करने के लिए खुदीराम को कहा कि ,

तुम गवाही दो…खुदीराम बोला झूठी गवाही नही दूंगा.

.रामानंद ने डराया धमकाया- ऐसा रगड़ा दूंगा..

जीना मुश्किल कर दूंगा…लेकिन खुदीराम ने झूठी गवाही नही दी…

खुदीराम को रामानंद ने इतना सताया कि उसको

अपना देरेगांव छोड़कर ननिहाल मे जाके रहना पड़ा….

जो देरेगांव से कई मिल दूर था तमारपुर…

सच के साथ रहने से तकलीफ तो हुयी …

रामानंद को लगा कि, मैं जित गया ..

लेकिन ऐसा हुआ कि , रामानंद खुद बिमारियोंसे घिरा ,

पत्नी पागल होके मर गयी ..बेटी लोफरो के साथ भाग गयी

और बेटा आवारा हो गया…

लेकिन खुदीराम के घर ईश्वर ने रामकृष्ण परम हंस का आत्मा प्रगट किया….!


मैं आया उसके पहले सौदागर के हाथो मेरे पिताजी के घर झुला भेजा कैसा खयाल करता है वो ईश्वर…!!

gurudev k satsang parvchan se.....

sadho sadho ............

waah bapu waah.........

kese kese samjate ho....

aapki lila nirali....

jai ho....