मंगलवार, 27 जुलाई 2010

पूज्य बापू का पावन सन्देश.....



हम धनवान होगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परंतु भैया !

हम मरेंगे या नहीं, इसमें कोई शंका है?

विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है,

गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है

परंतु इस जीवन की गाड़ी छूटने का कोई निश्चित समय है?


आज तक आपने जगत में जो कुछ जाना है, जो कुछ प्राप्त किया है....

आज के बाद जो जानोगे और प्राप्त करोगे, प्यारे भैया !

वह सब मृत्यु के एक ही झटके में छूट जायेगा,

जाना अनजाना हो जायेगा, प्राप्ति अप्राप्ति में बदल जायेगी।


अतः सावधान हो जाओ।

अन्तर्मुख होकर अपने अविचल आत्मा को, निजस्वरूप के अगाध आनन्द को,

शाश्वत शांति को प्राप्त कर लो। फिर तो आप ही अविनाशी आत्मा हो

जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ।





सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो। आत्मा में अथाह सामर्थ्य है।

अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हें ऊपर उठा सके।

अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं

जो तुम्हें दबा सके।

सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी

बिखरती रहती है।

अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं।

तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ

और व्यवहार-काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ।

दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो। सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो।

विचारवन्त एवं प्रसन्न रहो। जीवमात्र को अपना स्वरूप समझो।

सबसे स्नेह रखो। दिल को व्यापक रखो।

आत्मनिष्ठ में जगे हुए महापुरुषों के सत्संग एवं सत्साहित्य से जीवन को

भक्ति एवं वेदान्त से पुष्ट एवं पुलकित करो।

वाह बापू वाह ...कितना समजाते हो..

हम नादान फिर भी नही समज पाते...

जय हो....

शनिवार, 24 जुलाई 2010

गुरुपूर्णिमा २०१०

श्री सुरेशानन्दजी महाराज सत्संग
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मेरे गुरु सुई की नोक से सुमेरु चलाते है…

अमदावाद आश्रम मे सदगुरूदेव ने केवल संकल्प किया

तो दूसरे दिन अखबार मे आया कि कारगिल के सैनिक चोटी पे पहुंच गए है…








भक्ति होनी चाहिऐ..
तभी मेरे गुरु क्या है,

ये भक्त के समझ मे आएगा..
कायरता नही होनी चाहिऐ ,
वीरता होनी चाहिऐ !


फौलादी है बाहें मेरी
चट्टान को भी तोड़ सकती ..”


ऐसा विश्वास होना चाहिऐ…

सदगुरूदेव कौन है ये जानो…
महाभारत मे आता है,



कि अर्जुन युध्द के मैदान मे हथियार डालकर बैठ गए..
तो श्रीकृष्ण भगवन ने ऐसा नही कहा कि चलो ,


उठाओ धनुष….बलकि अर्जुन को युध्द के मैदान मे सत्संग सुनाया..

परिणाम ये आया कि अर्जुन युध्द जित गए…


अभी भी बापूजी आएंगे ,
हमे उनके आशीर्वचन सुनने को मिलेंगे तो हमारा भी कल्याण होगा…


गुरुदेव का आप के सर पे हाथ ....





प्रल्हाद कहते है अपने गुरु(नारद जी) को कि ,
अभी मुझ मे ९ दोष है , हे गुरुदेव.. मेरे सिर पे आप हाथ रख दो”….


आप भी एक प्रयोग करे ….मन से ही सदगुरूदेव के चरणों मे अपना सिर रख दो..
मन से ही ऐसी भावना करो….कि आप ने सदगुरु देव के चरणों मे अपना सिर रखा ….



और सदगुरूदेव ने आप के सिर पे हाथ रखा ,
तो आपकी शक्तिया जो अधोगामी हो रही थी,
उर्ध्वगामी होने लगेंगी…
भावना मे बड़ी शक्ति है…



आप यहा आते तो ऐसा कई बार आप के मन मे आता होगा
कि एक बार सदगुरूदेव के चरण छू लू..




लेकिन इतनी भीड़ मे ये कैसे संभव होगा ?



सेवाधारी तो आप को नजदीक भी नही आने देंगे…
लेकिन आप मन से भावना करो तो रोज सुबह अपने ही घर मे भी आप भावना कर के
सदगुरूदेव के चरणों मे सिर रखो
और उन्होने आप के सर पे हाथ रखा ऐसा अनुभव कर लो….



प्रेम की बोली


हमारे सदगुरू सुई की नोक से सुमेरु चलाते ये तभी जान पाते है जब भगवान को पहेचाने..
उसके लिए भक्ति हो ,
श्रध्दा हो..

और भक्ति कैसी हो
नामदेव जैसी हो..
गोरक्षनाथ जैसी हो…

तभी जान पाते है कि , मेरे सदगुरू कौन है?

(सुरेश बापजी श्लोक बोल रहे है..)












मेरे सदगुरू बिना पैरो के सारे जगत मे जाकर आये…
बिना कर(हाथ) के करम करे….
बिना कान के सब सुन लेते है..ऐसे मेरे सदगुरूदेव है…




हर राज्य की एक बोली होती है..
जैसे महाराष्ट्र की मराठी, पंजाब की पंजाबी ,
गुजरात की गुजराथी बंगाल की बंगाली..
है ना ?



ऐसे प्रेम राज्य की भी एक बोली होती है ,
जो कानो से नही सुनी जाती ..
ह्रदय के माध्यम से सुनी जाती है…मुँह से नही बोली जाती ,
आंखो से बोली जाती है….




जयश्री बहेन का अनुभव

एक घटना सुनाता हूँ..

स्कूल मे वार्षिक उत्सव था…कार्यक्रम चल रहा था,
अचानक आग लगी…
बाहर जाने के लिए एक ही दरवाजा और कम्पौंड की दीवार १० फ़ीट ऊँची…

एक बहेन अपने २ बच्चो को लेकर भाग रही इधर...उधर..
१० फ़ीट ऊँची दीवार ..दोनो बच्चो को लेकर कैसे जाये?

कैसे भी दोनो बच्चो को उठाकर दीवार के उसपार फेका..

लेकिन खुद कैसे दीवार से कुदे?..
बहेन का शरीर भारी था…जयश्री उस बहेन का नाम है

आग कंधे तक आ गयी ..लपेटे बढ़ने लगी ..
बहेन ने दीक्षा ली हुयी थी.. गुरुमंत्र का जप करती रही..

कोई बात नही भगवान रखे तो तेरी मर्जी..
उठा लो तेरी मर्जी..
जैसा नाच नचा ले प्रभु..

साडी जली ..चमडी जली..
बहेन गुरुमंत्र जप करती रही..

अचानक किसी अदृश्य शक्ति ने बहेन को उठाकर दीवार के उसपार फ़ेंक दिया..

बहेन को जरासी चोट आई और थोडी चमडी जली थी बस..

बापूजी ने अदृश्य शक्ति के रुप मे बचाया….




नास्तिक लोग नही मांगेंगे..
न माने तो उनकी मर्जी…

सीता माता के लिए साक्षात् अग्निदेव ने प्रगट होकर बताया था कि ,
सीता माता पवित्र है फिर भी धोबी नही माना…
साक्षात् अग्निदेव के प्रमाण को भी नही माना..

ऐसे ही उल्लू नही मानता कि सूरज उगा है..
नही मानता तो नही माने..आँख बंद करके बैठे
इस युग मे भी ऐसा हो रहा है..

जो लोग नही मानते तो ना माने ..
घाटा किसको हो रहा है?

आज आयोजन पुरा होगा...
जप-तप -सेवा मे लगे रहे..
साधन -भजन -सुमिरन करते रहे…


और अहमदावाद , सूरत आश्रम मे कही ध्यान योग शिविर लगा तो अवश्य अटैँड करे..
आश्रम की धरती पे बैठने मात्र से अद्भुत लाभ होते है…
साधना मे और भी उन्नत होंगे…

(सुरेश महाराज कोई श्लोक बोल रहे है…)


जिन्होंने अपनी आंखो से ईश्वर प्राप्त महापुरुषों का दर्शन नही किया
उसके आंखो मे क्षार पड़े
क्षार याने तेजाब ..
एसिड होता है.
मने व्यर्थ है ऐसी आँखे…


भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार........

भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार...........

कभी न होता किसी के लिए बंद तुम्हारा द्वार............


भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार ............



हरी ओम…

कही कही ना सुनाओ

सोयी पुंज पाए है जो भक्ति करे चित्त लाये ...
जरामरण से छूटी पड़े अजर अमर हो जाये ...
जो तेरे घट प्रेम है, तो कही कही न सुनाओ ...
अंतर्यामी जाने है अंतर घट के भाव...


अपने अन्दर प्रेम है..

भक्ति है तो किसी को सुनाने से क्या मिलेगा?








अंतर्यामी है वो सब जानते है…



अन्दर के अंतर्यामी मे से अंतर कैसा रहेगा ?


ह्रदय की गहराई मे जो बैठे है उनसे अंतर कैसा रहेगा ?


वो अन्दर ही है सब जानते है..



इसलिए कही कही नही सुनाओ ..

मैंने ऐसा सुमिरन किया , अनुष्टान किया …इतना पाठ किया..


सुमिरन ऐसा कीजिए ...दूजा कहे न कोई...

होठ न प्रकट देखिए ...प्रेमे जपियो कोई ...

जहा जहा बछड़ा फिरे ...तहा तहा फिरे है गाय ...

कहे मल्लुक जहा संतन...तहा रामैय्या जाये....


मलूक जी कहते है कि जहा भक्त पुकारते वह संत चले जाते…
जैसे गाय अपने बछड़े के पीछे पीछे जाती..

अब पेतलावाद के साधक और रतलाम के साधको का खूब खूब प्रेम था
तो सदगुरूदेव यहा पधारे है…

सुरेश बापजी के सत्संग प्रवचन से...



गुरु पूर्णिमा पर्व की सभी साधक भाई-बहनों को खूब-खूब बधाई ...




हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्

रविवार, 18 जुलाई 2010

मैं बीडी,सिगरेट, घुटखा, का बहुत ज्यादा सेवन करता था ...

पहेले मैं बीडी ,सिगरेट, घुटखा,जर्दा का बहुत ज्यादा सेवन करता था ...

इससे मेरा मुह ख़राब हो गया ...

और बोलना भी कठिन हो रहा था .....

पूज्य बापूजी की योवन सुरक्षा भाग २ पुस्तक मेने पड़ी .....



और उस दिन से मेरा नशा छुट गया

इस पुस्तक ने मुझे निवार्श्यी बना दिया

पहेले मेरा स्वभाव बहुत गुस्से वाला था

घर पर रोज़ झगडा होता था,और मेरा मन बहुत उदास रहेता था

पूज्य बापूजी से दीक्षा लेने के बाद मेरा मन और स्वभाव शांत हो गया

कोई भी काम हो पूज्य बापूजी की कृपा से रास्ता अपने आप खुल जाता है

जब भी कोई बड़ा निर्णय लेना होता है

तो बापू जी के श्रीचित्र के सामने ७-८ मिनट एकटक देखते हुए ॐ ॐ जपते हुए

एकाग्रता और अनासक्ति का अवलंबन लेता हु ...

और गुरु भगवन की प्रेरणा से मुझे सब मिल जाता है

भोतिक व्यवहार,भोतिक वातावरण में आत्मिक सम्बन्ध जोड़ने का,

आत्मिक शक्ति से जुड़ने का मुझे सीधा रास्ता ही मिल गया है....

धन्य है एकलव्य की गुरुभक्ति,

जिसने कइयो को प्रेरणा की गुरुकृपा का फायदा उठाने की

श्री रामजी ने गुरुकृपा का फायदा लिया वसिष्ठ जी से...

और वसिष्ठ जी बोलते है योगवसिष्ठ में...

है रामजी मैं बाज़ार से गुजरता हु तो

मुर्ख लोग मेरे लिए न जाने क्या क्या अफ्वाये उड़ाते है ....

तो आज मेरे गुरु देव के लिए बोलने वाले कितना भी भके...





लेकिन हमारा अनुभव नही तोड़ सकते...

गुरु शिष्य के अमर सम्बन्ध को तोड़ने की ताकत कुप्र्चारको मैं कहा??????

कुप्रचार करने वाले भी अगर सुधर जाये तो अथाह फायदा होगा उनको,

मगर ऐसा भाग्य कब होगा उनका????????

हरिओम्म्म्म्म्म्म्

लक्ष्मण सुथार..चिमनपुरा,जिला.पाली (राज.)

एक साधक की जुबानी...

वाह बापू वाह आपने कितनो का ....




केसे केसे भला किया है ...

कितनो की नैया पार लगा दी है आपने बापूजी ....जिसका कोई भखान नही

वाह बापू वाह ....

जय हो...

जपते रहे तेरा नाम जय बापू आशाराम....


ऐ नादान इन्सान एक बार सर झुका के तो देख बापू के दर पे ....

अगर झोली न भर दे तो कहना .....

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

संभोग से सत्यानाश

वासनाक्षय के लिये ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

कैसा भी योगाभ्यास करने वाला साधक हो, धारणा, ध्यान, त्राटक आदि करता हो,

लेकिन यदि वह ब्रह्मचर्य का आदर नहीं करता, संयम नहीं करता तो उसका योग सिद्ध नहीं होगा।

साधना से लाभ तो होता ही है लेकिन ब्रह्मचर्य के बिना उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती।

जो लोग 'संभोग से समाधि' वाली बातों में आ गये हैं वे सब रोये हैं।

संभोग से समाधि नहीं होती, संभोग से सत्यानाश होता है साधना का।

बड़े-बड़े योगी भी संभोग की ओर गये हैं तो उनका पतन हुआ है फिर भोगी की क्या बात करें?

संभोग से यदि समाधि उपलब्ध होती तो करोड़ों मनुष्य कर ही रहे हैं, कीट-पतंग जैसा जीवन बिता रहे हैं।

समाधि किसकी लगी? आज तक इस प्रकार किसी को समाधि न लगी है न कभी लगेगी।


राम के सुख के बाद संसार में यदि अधिक-से-अधिक आकर्षण का केन्द्र है तो वह काम का सुख है।

शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध इन पाँचों विषयों में स्पर्श का आकर्षण बहुत खतरनाक है।

व्यक्ति को कामसुख बहुत जल्दी नीचे ले आता है।

बड़े-बड़े राजा-महाराजा-सत्ताधारी उस काम-विकार के आगे तुच्छ हो जाते हैं।

काम-सुख के लिये लोग अन्य सब सुख, धन, वैभव, पद-प्रतिष्ठा कुर्बान करने के लिये तैयार हो जाते हैं।

इतना आकर्षण है काम-सुख का।

राम के सुख को प्राप्त करने के लिए साधक को इस आकर्षण से








अपने चित्त को दृढ़ पुरुषार्थ करके बचाना चाहिये।







जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है




वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा।





लेकिन जिसके ब्रह्मचर्य का कोई ठिकाना नहीं ऐसे व्यक्ति के आगे साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण आ जायें,


भगवान विष्णु आ जायें, ब्रह्माजी आ जायें, माँ अम्बाजी आ जायें,


सब मिलकर उपदेश करें फिर भी उसके विक्षिप्त चित्त में आत्मज्ञान का अमृत ठहरेगा नहीं।


जैसे धन कमाने के लिए भी धन चाहिये, शांति पाने के लिये भी शांति चाहिये,


अक्ल बढ़ाने के लिये भी अक्ल चाहिये, वैसे ही आत्म-खजाना पाने के लिये भी आत्मसंयम चाहिये।


ब्रह्मचर्य पूरे साधना-भवन की नींव है। नींव कच्ची तो भवन टिकेगा कैसे?



सत्संग प्रवचन से....

रविवार, 11 जुलाई 2010

दुनिया में दो विभाग हैं


हरि सम जग कछु वस्तु नहीं, प्रेम पंथ सम पंथ,
सदगुरू सम सज्जन नहीं, गीता सम नहीं ग्रंथ…

हरि सम जग कछु वस्तू नहीं –

हरि हैं नित्य, जगत है अनित्य,जगत है जड़ और हरि हैं ज्ञान स्वरूप, हरि हैं चेतन,
जगत है जड़ , हरि हैं सुख रुप और जगत है बदलने वाला…

दुनिया में दो विभाग हैं -

एक वोह, जो हमारा है, जैसे मकान, दुकान, घर…
और दूसरा वोह है, जो हमारा नहीं है…सारे मकान तो मेरे नही हैं,

सारी दुकान तो मेरी नहीं हैं…

तो एक वोह होता है जिसे आप बोलते हैं मेरा घर,
मेरी पत्नी, मेरा बेटा , मेरा पैसा….
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और दूसरा वोह जो हमारा नहीं है…
और जिसको मेरा बोलते हैं तो वोह बहुत थोडा है…और जो मेरा नही है ,

उसका तो कोई अंत नहीं है…तो जिसको मेरा मेरा मानते हैं,
वोह सदा साथ में रहेगा, मरने के बाद में साथ चलेगा?

दूसरा मिले कि नहीं मिले, लेकिन जो है, वोह छोड़ना पड़ेगा कि नही ?


दिल पे हाथ रख कर देखो…जो मेरा नहीं है, वोह तो नही है ,

लेकिन जिसको मेरा मानते हैं, वोह भी छोड़ के जाना पड़ेगा…तोक्या करें?

उसका सदुपयोग करें, उस से ममता कम करें, और जिसका सब कुछ है,

वोह वास्तविक में मेरा था, मेरा है, और मेरा रहेगा…कौन मेरा था?बोले आत्मा मेरा था,

अगले जनम में भी…और मेरा है, बचपन मे भी था, अभी भी है,
और मरने के बाद भी रहेगा…शरीर मरेगा फिर भी मेरा आत्मा तो रहेगा ना?

तो जो मेरा था,
मेरा है और मेरा रहेगा, उस से तो प्रीति करो…जो सदा है उस का नाम है हरि,
रोम रोम में राम रमता है, तो उसको आप”राम” कह दो…दुःख और थकान हर लेता है,

तो उसको “हरि” कह्तेहैं…दिन भर आपा-धापी में रात को मन इन्द्रियां में,
मन बुद्धि में, और बुद्धि उस चैतन्य में…थकान, दुःख, चिन्ता हर लेता है…

उस परमेश्वर का नाम हो गया “हरि”…और वोह आत्मा है, इसलिये हरि ओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म. …



तो अब क्या करना है…हरि ॐ का तो गुंजन करना है और वोह ही मेरा हैं…

और यह थोड़े दिन के लिए मेरा मेरा है, छूटने वाला है…और वोह सदा के लिए मेरा है…

यह बात समझने में आपको देर लगी क्या? यह बात झूठी लगती है क्या?

सच्ची है, पक्की है?तो जो अपना नहीं है, वोह तो नहीं है…जिसको अपना मानते हैं,
वो भी सदा नहीं रहता…

मेरे खिलोने, खिलोने रहे क्या? मेरी शर्ट,मेरी नन्ही सी बुश-शर्ट,

अभी खोजों तो मिलेगी नहीं…कोई दे भी देतो इतने बडे बाबा को इतनी सी बुश-शर्ट कैसे आएगी?

लेकिन उस समय जो मेरा हरि साथ में था, वोह अभी भी है…उसी को बोलतेहैं -

आड़ सत् , जुगात सत् , है भी सत्, होसे भी सत्…

तो जो सत् है, उस को तो अपना मानो, प्रीति करो…और जो बदलने वाला है उसका उपयोग कर लो…माता की,
पिता की, कुटुंब की, समाज की,भगवान् की सेवा कर लो,

बस हो गया…दोनो हाथ में लड्डू…और उल्टा क्या करते हैं,

जो अपना नहीं था , अपना नहीं रहेगा, उसकोतो बोलते हैं हमारा है,

और खपे खपे खपे…और जो अपना था,है, रहेगा,

उसका पता नहीं…इसीलिये अशांति बढ़ गयी सारे वर्ल्ड मे ….सारी दुनिया में…



हरिओम्म्म्म्म्म्म्




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मंगलवार, 6 जुलाई 2010

माता-पिता की महिमा (बाल संस्कार केंद्र स्पेशल )


माता तो सर्वोच्च है, महिमा अगम अपार!
माँ के गर्भ से ही यहाँ, प्रकट हुए अवतार!!


माता तो सर्वोच्च है, महिमा अगम अपार!
माँ के गर्भ से ही यहाँ, प्रकट हुए अवतार!!

माँ की महत्ता तो मनुज, कभी न जानी जाय!
माँ का ऋण सबसे बड़ा, कैसे मनुज चुकाय!!

मात-पिता भगवान-से, करो भक्ति भरपूर!
मात-पिता यदि रुष्ट हों, ईश समझलो दूर!!

पिता दिखाए राह नित, दे जीवन का दान!
मान पिता को दे नहीं, अधम पुत्र को जान!!

रोम-रोम में माँ रहे, नाम जपे हर साँस!
सेवा कर माँ की सदा, पूरी होगी आस!!

माँ प्रसन्न तो प्रभु मिलें, सध जाएँ सब काम!
पिता के कारण जगत में, मिले मनुज को नाम!!

मात-पिता का सुख सदा, चाहा श्रवण कुमार!

मात-पिता के भक्त को, पूजे सब संसार!!

माँ के सुख में सुख समझ, मान मोद को मोद!
सारा जग मिल जाएगा, मिले जो माँ की गोद!!

माँ के चरणों में मिलें, सब तीरथ,सब धाम!
जिसने माँ को दुःख दिए, जग में मरा अनाम!!

माँ है ईश्वर से बड़ी, महिमावान अनंत!
माँ रूठे पतझड़ समझ, माँ खुश, मान वसंत!!

सोमवार, 5 जुलाई 2010

११ साल के बाद आये है तो खजाना देके जायेंगे…

सदगुरूदेव संत शिरोमणि परमपूज्य श्री आसारामबापूजी की अमृतवाणी :-





भगवान कृष्ण शुध्द हवा के लिए वृन्दावन वालो को लेकर वन दिवस मनाने गए …

दोपहर मे यहावहा जंगल घूमते हुए देखा की एक सूखे कुए मे एक किरकिट बहोत झट पटा रहा है…

श्रीकृष्ण भगवान ने उसपे दृष्टी डाली तो उसका झटपटाना रुका और उसके शरीर से दिव्य पुरुष प्रगत हुआ…

तो कृष्ण भगवान बोले..“स्वागत है देवता...कैसे पधारे?

तो वो दिव्य पुरुष बोला..“हे माधव, आप जानते है ,मैं कौन हूँ..

आप ने ही मुझे किरकिट के योनी से मुक्ति दिलाई है

और उपस्थित लोगो को उपदेश देने के लिए मुझे पूछ रहे हो….

मैं इतना पराक्रमी राजा था की बडे बडे राजा को डर लगता और वीर राजाओ का मैं मित्र था….

मैंने अपने यश के लिए इतनी गाये दान की ,

आसमान के तारे गिन सकते है लेकिन मैं ने इतनी गाये दान की इसको कोई गिन नही सकता….

अभी भी मेरा नाम लिया जाता है…”

तो भगवन कृष्ण ने पूछा “क्या तुम राजा नृग हो ?”

तो दिव्य पुरुष बोला “ हा मैं वोही अभागा राजा नृग हूँ…

जो भी किया अंहकार दिखाने के लिए किया …

गुरु के चरणों मे नही गया,






सत्संग के वचन नही सुने इसलिए ये स्थिति हो गयी थी..

अब आप की कृपा से मुक्ति मिली है..”

तो कितने राजे महाराजे भी अजगर हो जाते, हिरन हो जाते,

किरकिट हो जाते , कछवा हो जाते…

इससे बचने के लिए गुरु से मंत्र दीक्षा और सत्संग ही उपाय है…


तो कल मंत्र दीक्षा मिलेगी… हाई बीपी ,

लो बीपी नही हो, हार्ट अटैक न हो by– पास ऑपरेशन नही करना पड़े ऐसा भी एक मन्त्र देंगे..


११ साल के बाद आये है तो खजाना देके जायेंगे…








२९ नवम्बर २००७,
पेतलावाद नगरी
(म. प्रदेश )

बापू जी के सत्संग परवचन से...

वाह मेरे जोगी ....

कितना ख्याल रखते हो सबका ....

तेरे दर पे हो बसेरा ....

मेरे गुरुदेवा....

तुम्हारे बिन नही रहना...

अब दूर ऐ हुजुर...

जय हो....

जपते रहे तेरा नाम...जय बापू आशाराम...

रविवार, 4 जुलाई 2010

साप-शिडि का खेल....

श्री सुरेशानन्दजी की अमृतवाणी ......




साप-शिडि का खेल खेलते है न..मैंने बचपन मे खेला था ,

आप ने भी खेला होगा…उस खेल मे साप के मुह मे आये तो निचे गिर जाते और शिडी मिलती तो ऊपर चले जाते….

ऐसे ही फिल्म के चक्कर मे पड़े ,

मैच देखने बैठ गए तो समझो साप के मुह मे आ गए…

साधना से निचे गिर गए…और ईश्वर प्रीति मे मन लगा ,

जप ध्यान हुआ तो समझो के ईश्वर के और पास आ गए..

माने शिडी मिल गयी , ऊपर उठ गए….



मंजिल आनेवाली है कि साप के मुह मे गिर जाते…तो सफलता से दूर हो जाते….

कभी कभी ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ भी आती है..जीवन मे विफलता भी आती है…

लेकिन डरे नही…ऊँचे शिखर के साथ हमेशा खाई होती है…

ये ध्यान मे रखे और गुरुदेव से प्रार्थना करे…”गुरुदेव मदद करो..आप की शक्ति का कोई पार नही…”

..एक बार सनकादी ऋषी विष्णु भगवानजी से मिलने गए तो जय विजय द्वार पाल थे ,

उन्होने मिलने से मना कर दिया…तो ऋषियोँ ने उन्हें श्राप दिया कि उन्हें ३ बार असुरों की योनी मे जाना पड़ेगा….

..भगवान आये , उन्होने सनकादी ऋषियोँ का श्राप सुना , तो बोले कि ,

“हे महापुरुषोँ..जय विजय जिनको आने देना चाहिऐ उनको आने नही दिए तो उनको आप ने सजा दे दी…

उनका ये ही अपराध है ना कि , आप को आने नही दिया?”

..सनकादी ऋषी बोले, ” हा , ये ही अपराध है…”

तो भगवान बोले कि , मेरे द्वारपाल इसलिए दोषी है कि ,

जिनको आने देना चाहिऐ उन्हें आने नही दिया…लेकिन मैं भी उतना ही दोषी हूँ..




क्यो कि मैं भी प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय का द्वारपाल हूँ…

और मुझ जैसे द्वारपाल के होते हुए भी आप के ह्रदय मे गुस्सा आ जाता है..

क्रोध आ जाता है…इसीलिए जय विजय को श्राप दिया आप ने…तो गलती तो मेरी भी है ,

मैं सही ढंग से काम नही कर सका..मेरे होते हुए भी मनुष्य के ह्रदय मे क्रोध आता है तो

मैं अपना काम सही ढंग से नही कर पाया…इसलिए जब जब जय विजय को असुर बनके धरती पे जाना पड़े

तब तब मैं भी इनका उद्धार करने के लिए ४ बार धरती पे जाऊंगा….!”

..कैसी है भगवान की करुणा…!

अपने आप को दंड देते है…ऐसे ही गुरुदेव अपना उध्दार करने के लिए कितना कष्ट सहते है…

इसलिए हम प्रार्थना करते है कि ,

“त्वमेव माता च , पिता त्वमेव

त्वमेव बंधुश्च , सखा त्वमेव”




गुरुदेव ही हमारी माता है और हमारे पिता है …

माता भी कभी ध्यान नही देंगी, लेकिन गुरुदेव अपने भक्तो पे सदैव करुना कृपा रखते….

भगवान की भगवत-ता कैसी है..जटायु के पंख कट गए तो भगवान उसे बोलते है..

“माफ करना , मैं समय से आ जाता तो तुम्हारे पंख नही कटते…!”

कैसी भगवान की भगवत-ता..!!ऐसे ही गुरुदेव से मंत्र मिलता,

नाम मिलता तो उसे श्रध्दा से जपे….गुरुदेव ऐसे करुणा के सागर है जैसे भगवान है…

कितना सुन्दर उत्तर दिया भगवान ने सनकादी ऋषियोँ को ..

मैं भी द्वारपाल हूँ..मुझ को भी सजा दो…!

गुरुदेव भी हमारे दोष मिटने के लिए ऐसे ही करुणा कृपा बरसते है…

ऐसा तेरा प्यार गुरुवर भूल न पाए..




आप ही हमारे दोष को मिटाए

तुझ मे ही प्रेम और प्रीति बढाये…

ऐसा तेरा प्यार गुरुवर भूल न पाए….

श्री सुरेशानन्दजी की अमृतवाणी .........

२३ नवम्बर २००७ , शुक्रवार ,
बरोडा ध्यान योग शिबिर,

वाह बापू वाह ..

बापू तो इतना अच्छा समजाते ही है....

उनकी राह पर चलकर सुरेशानंद जी भी उतना ही सरल समजाते है ..

धनभाग हमारे जो हमने ऐसा गुरु पाया ....

जय हो ....

जपते रहे तेरा नाम... जय बापू आशाराम ....

शनिवार, 3 जुलाई 2010

हर रोज नयी एक शादी है.... (सत्संग)



एक बार अहमदाबाद से सूरत आ रहे थे

तो लोगो ने कार फूलों से सजा दी थी….

हिजडो को लगा कोई दूल्हा जा रहा है….

उन्हों ने घागरा हिलाते हुए गाड़ी रोकी…

गाड़ी का कांच निचे किया ..पर्दा हटाया….

तो शिवलाल काका भी थे…

इधर भी दाढीवाला बाबा…उधर भी बाबा…

तो हाय हाय गाड़ी जाने दो… .

.तो हम ने पूछा , “क्यो रोकी थी गाड़ी ?”…

.तो बोले कि , हम को लगा दूल्हा है ,

इधर तो साधुबाबा है….

तो हमने कहा पैसे चाहिऐ ना ?

दूल्हा तो एक बार बनता और १०० बाराती खड़ा करता…

हम तो जहा जाते भगवान के लाखो बाराती आते….

अरे इनको पैसे दे दो….हमारी तो रोज शादी है…

हाय हाय



हर रोज नयी एक शादी है
हर रोज मुबारक बाजी है
जब आशिक मस्त फकीर हुआ…
तो क्या दिलगिरी बाबा ?

शादी माने शाद आबाद रहे….

यहा तो रोज नया सुख नया आनंद.

सूरज रोज उगता लेकिन हर दिन नया दिवस होता है सूर्य नारायण का…

.यहा तो हर दिन मुबारक बाजी है..सत्संग हो चाहे नही हो…….

(पूज्य सदगुरूदेव ने भजन के पद बताते हुए बहोत सुन्दर विश्लेषण भी दिया..)..

जैसे सूरज रोज नया आनंद नया प्रकाश लेकर आता….

ऐसे स्व का स्वरूप भी आत्मा के आनंद मे जगमगा रहा है….



कोई मुझे पूछता है , “तबियत कैसी है?” …

तो मैं पूछता हूँ , “बीमार से मिलाने आये क्या?” ….

.ईश्वर में रमण करते तो शरीर के पित्त, वायु , कफ , हाड मास कैसे है

पूछता….साधक है तो कैसी है साधना ? ऐसे पूछे ….

और गुरु को तो वो भी नही पूछा जाता…

दुर्भाग्य है ऐसे लोगो का….संत से ऐसे नही पूछते …

बुध्दी दाता का साक्षात्कार ..सदा सुख…आत्माराम में आ जाओ…..

ज्ञान स्वभाव में आओ..शांत स्वभाव होगा तो कामकाज बढिया होगा…

सदा दिवाली संत की आठो प्रहर आनंद

अकलमता कोई उपजा गिने इन्द्र को रंक…

..आज सुबह पंचगव्य मिला..कल आंवले का रस..(शिबिरार्थियो को मिला)

..आरती हो रही…आनंद मंगल करू आरती…

प्रार्थना हो रही है….

(सदगुरूदेव के पावन दर्शन के लिए पूनम व्रतधारी लाइन में लगे है….


सेवाधारियो से कुछ गलती हुयी तो सदगुरूदेव ने समझाया कि सेवा करते तो

नम्र भाव से करनी चाहिऐ….दादागिरी से नही…..इसी का नाम सेवा है….)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय…..प्रीति देवाय…माधुर्य देवाय….

गुरुदेवाय..शांति देवाय…ओम नमो भगवते वासुदेवाय…

(परम पूज्य सदगुरूदेव हास्य करवाए…)


अगली पूनम २ जगह होगी….

आनंद आता है?

अच्छा लगता है?

ॐ शांति…

हरी ओम!

पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग परवचन ....

वाह बापू वाह....

मज्जा आ गया ....

जय हो!!!!!

सदगुरूदेव की जय हो!!!!!

(गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे…)

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

रविवार सप्तमी ४ जुलाई २०१० को


इन तिथियों पर जप/ध्यान करने का वैसा ही हजारों गुना फल होता है

जैसा की सूर्य/चन्द्र ग्रहण में जप/ध्यान करने से होता है:

१. सोमवती अमावस्या - (15thMarch'10, 9thAug'10 )

२. रविवार को सप्तमी हो जाए. (21stFeb'10, 7thMar'10, 4thJul'10, 12 th dec
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३. मंगलवार की चतुर्थी हो जाए.(19thJan'10, 1st Jun'10, 2ndFeb'10)

४. बुधवार की अष्टमी हो जाए. (15thSept'10)




इन तिथियों पर जप/ध्यान का फल ग्रहण के समय किये ही जप/ध्यान के सामान होता है.

इसलिए हमें इन तिथियों पर जादा जप करना चाहिए, जिस से हमें थोडे में ही जादा लाभ मिले

बापूजी......

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

सत्संग के लाभ

सत्संग इतना प्रभावी साधन है कि इसमे श्रोता को कुछ भी नही करना पडता है लेकिन महालाभ पाता है…

.जैसे गाय दिन भर जंगल मे यहा वहा गुजर गुजर के घांस पत्ते खाकर शाम को जब बछडे को अपना दूध पिलाती है

तो बछडे को क्या करना होता है..बस खड़ा होना और सुकुर सुकुर…..

तैयार माल मिलता है गोमाता से…ऐसे ही बछडे स्वरुप होते है

श्रोता जब संत महात्माओ के आगे बैठकर सत्संग सुनते है..

संत महात्मा बहोत साधना करके जंगलों मे गुफाओ मे घूमकर..

सब मंदिर शास्त्र ढूंढ़ कर ..कितने कितने परिश्रम करके कड़ी साधना कर के ईश्वर को पाते है,

आत्मज्ञान पाते है..और यह ज्ञान रूपी दूध सत्संग मे श्रोता (बछडे) के आगे रखते है

तो सत्संगियो को तो तैयार माल मिलता है…संत महात्माओ ने कितने कितने योग से पाया हुआ ज्ञान

श्रोता के कान मे जाता है तो सत्संग सुनने वाले का बहोत हीत करता है….

और सत्संग सुनने के लिए ४ कदम चलकर आते है तो एक एक कदम एक एक यज्ञ करने का फल देता है…

सत्संग मे चलकर आते है , सुनते है , तो कर्म योग हो जाता है..

सत्संग से सुना हुआ समझते है तो ज्ञान योग हो जाता है और सत्संग मे ताली बजा लेते हो तो भक्ती योग हो जाता है….

सेवा करने वाले सेवा खोज लेते है..पंडाल मे कितने सेवाधारी कितनी प्रकार के सेवा दे रहे है..




यहा तो कुम्भ बन गया है , लेकिन सेवक नही थकते..

सब सुविधा कर दी..किसी ने देखा ना देखा सेवक अपने काम करते क्यो कि सेवा कराने से जो आनंद मिलता

वोह काम विकार से मिल सकता है क्या?

तो इस प्रकार पहला :- श्रद्धा से भगवान के नाम का जाप ,

दुसरा :- संत महात्मा का सत्संग का लाभ लेना और

तीसरा :- सेवा…!! ….

प्रार्थना..सेवा ..पुण्य….कल्याण….!ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ …

.ज्ञान का प्रकाश होता है.. आकर्षणो से बचाव कर लेते है

बापूजी के सत्संग परवचन से....

जय हो.....

जपते रहे तेरा नाम....जय बापू आशाराम