बुधवार, 12 मई 2010

पड़ा रहेगा माल खज़ाना...

सदा दिवाली संत कि, आठों पहर आनंद,अकलमता कोई उपजा, गिने इंद्र को रुंक…

तीन टूक कोपीन कि, भाजी बिना लूंण,तुलसी ह्रदय रघुबीर बसे, तो इंद्र बापुडा कुण..


तुम्हारे में वोह ताक़त है कि धरती के राजा जिसके आगे बौने हो जाते हैं,

ऐसा इंद्र तुम्हारे आगे बौना हो जाये, ऐसा सच्चिदानंद का सुख पाने कि ताक़त तुम्हारे में है…

और उस ताकत का उपयोग नहीं करते, फिर भी वोह साथ नहीं छोड़ती …

शरीर साथ देगा नहीं और परमात्मा साथ छोडेगा नहीं …

मरने के बाद शरीर और सम्पदा जिसको अपनी माना, वोह नहीं चलेगा साथ में ,

लेकिन सछिदानंद साथ छोडेगा नहीं…जो कभी साथ न छोडे, उसे बोलते हैं परमात्मा,

और जो सदा साथ न रहे, उसे कहते हैं संसार,जो अपना नहीं है,

वोह तो नहीं है; जिसको अपना मानते हैं वोह भी साथ नहीं रहेगा…(इसलिये)




बहुत पसरा मत करो, कर थोडे कि आश,

बहुत पसार जिन किया, वोह भी गए निराश…


पड़ा रहेगा माल खज़ाना, छोड़ त्रीय सूत जाना है,

कर सत्संग अभी से प्यारे, नहीं तो फिर पछताना है॥


।९। सत्संग से जो विवेक जगता है, सत्संग से जो सच्चे सुख के द्वार खुलते हैं,

वोह दुनिया कि किसी सम्पदा, किसी विद्या से नहीं खुल सकते …

बड़ी भारी तपस्या से भी सत्संग का पुण्य, ज्ञान और विवेक ऊँचा माना गया है …

सत्संग आपका सच्चिदानंद स्वभाव जागृत करता है;

और कुसंग आपके विकारों को भडकाता है…

कर नसिबां वाले सत्संग दो घड़ियाँ…

एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनि आधतुलसी संगत साध कि, हरे कोटी अपराध…

bapuji ke satsang parvachan se....



स्वामी हमे ना बिसारियो चाहे लाख लोग मिल जाये..हम सम तुमको बहोत है तुम सम हमको नाही..दीनदयाल को बिनती सुनो गरीब नवाज़ …जो हम पूत कपूत है, तो है पिता तेरी लाज..हरि हरि ओम्म्म्म्म …हरि ओम् हरी हरि ॐ……

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें