मंगलवार, 15 जून 2010

आसुरी तत्त्व का मायाजाल




पहाड़ से चाहे कूदकर मर जाना पड़े तो मर् जाइये,

समुद्र में डूब मरना पड़े तो डूब मरिये,

अग्नि में भस्म होना पड़े तो भले ही भस्म हो जाइये

और हाथी के पैरों तले रुँदना पड़े तो रुँद जाइये परन्तु इस मन के मायाजाल में मत फँसिए ।

मन तर्क लडाकर विषयरुपी विष में घसीट लेता है ।

इसने युगों-युगों से और जन्मों-जन्मों से आपको भटकाया है ।

आत्मारुपी घर से बाहर खींचकर संसार की वीरान भूमि में भटकाया है ।

प्यारे ! अब तो जागो ! मन की मलिनता त्यागो । आत्मस्वरुप में जागो । साहस करो ।

पुरुषार्थ करके मन के साक्षी व स्वामी बन जाओ ।

आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा आत्मानंद में मस्त रहने के लिए सत्त्वगुण का प्राबल्य चाहिये ।

स्वभाव को सत्त्वगुणी बनाइये । आसुरी तत्त्वों को चुन-चुनकर बाहर फेंकिए । यदि आप अपने मन पर

नियंत्रण नहीं पायेंगे तो यह किस प्रकार संभव होगा?

रजो और तमोगुण में ही रेंगते रहेंगे तो आत्मज्ञान के आँगन में किस प्रकार पहुँच पायेंगे ?


यदि मन मैला हो प्रिय ! सब ही मैला होय् ।

तन धोये से मन कभी साफ-स्वच्छ न होय ॥

इसलिये सदैव मन के कान मरोड़ते रहें ।

इसके पाप और बुरे कर्म इसके सामने रखते रहें ।

आप तो निर्मल हैं परन्तु मन ने आपको कुकर्मो के कीचड़ में लथपथ कर दिया है ।

अपनी वास्तविक महिमा को याद करके मन को कठोरता से देखते रहिये तो मन समझ जायेगा,

शरमायेगा और अपने आप ही अपना मायाजाल समेट लेगा

बापूजी के सत्संग परवचन से.....


वाह बापू वाह क्या समजाते हो.....जय हो ......

हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्
..................
कमल हिरानी,

सुप्रचार सेवा...

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