बुधवार, 9 जून 2010

अपने झूठे अहंकार को मिटा दो....पार्ट-२


नश्वर का अभिमान डुबोता है, शाश्वत का अभिमान पार लगाता है।

एक अभिमान बन्धनों में जकड़ता है और दूसरा मुक्ति के द्वार खोलता है।

शरीर से लेकर चिदावली पर्यंत जो अहंबुद्धि है

वह हटकर आत्मा में अहंबुद्धि हो जाय तो काम बन गया।

'शिवोऽहम्.... शिवोऽहम्....' की धुन लग जाय तो बस.....!

मन-बुद्धि की अपनी मान्यताएँ होती हैं और अधिक चतुर लोग ऐसी मान्यताओं के अधिक गुलाम होते हैं

वे कहेंगेः "जो मेरी समझ में आयेगा वही सत्य। मेरी बुद्धि का निर्णय ही मानने योग्य है और सब झूठ....।"

नाम, जाति, पद आदि के अभिमान में चूर होकर हम इस शरीर को ही "मैं" मानकर चलते हैं

और इसीलिए अपने कल्पित इस अहं पर चोट लगती है तो हम चिल्लाते हैं और क्रोधाग्नि में जलते हैं।

नश्वर शरीर में रहते हुए अपने शाश्वत स्वरूप को जान लो।

इसके लिए अपने अहं का त्याग जरूरी है। यह जिसको आ गया, साक्षात्कार उसके कदमों में है।

परिच्छिन्न अहंकार माने दुःख का कारखाना।

अहंकार चाहे शरीर का हो, मित्र का हो, नाते-रिश्तेदारों का हो,

धन-वैभव का हो, शुभकर्म का हो, दानवीरता का हो,

सुधारक का हो या सज्जनता का हो, परिच्छिन्न अहंकार तुमको संसार की भट्ठी में ही ले जायगा।

तुम यदि इस भट्ठी से ऊबे हो,

दिल की आग बुझाना चाहते हो तो इस परिच्छिन्न अहंकार को व्यापक चैतन्य में विवेक रूपी आग से पिघला दो।

उस परिच्छिन्न अहंकार के स्थान पर "मैं साक्षात् परमात्मा हूँ",

इस अहंकार को जमा दो। यह कार्य एक ही रात्रि में हो जायेगा ऐसा नहीं मानना।

इसके लिए निरन्तर पुरुषार्थ करोगे तो जीत तुम्हारे हाथ में है।

यह पुरुषार्थ माने जप, तप, योग, भक्ति, सेवा और आत्म-विचार।

बाहर की सामग्री होम देने को बहुत लोग तैयार मिल जायेंगे

लेकिन सत्य के साक्षात्कार के लिए अपनी स्थूल और सूक्ष्म सब प्रकार की मान्यताओं की होली जलाने लिए कोई

कोई ही तैयार होता है।


किसी भी प्रकार का दुराग्रह सत्य को समझने में बाधा बन जाता है।


जब क्षुद्र देह में अहंता और देह के सम्बन्धों में ममता होती है तब अशांति होती है।

जब तक 'तू' और 'तेरा' जिन्दे रहेंगे तब तक परमात्मा तेरे लिये मरा हुआ है।

बापूजी के सत्संग परवचन.....

to be continued.......

hariom
kamal hirani...

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