गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

आत्मसाक्षात्कार क्या है? (१)

आत्मसाक्षात्कार क्या है?

…भगवान ब्रम्हाजी जिस में समाधिस्त रहेते ,

भगवान विष्णु ४ महीने जिस में विश्रांति पाते ,

भगवान शिव जी जिस में समाहित रहेते उस “मैं रूप” की घडिया है “साक्षात्कार”!

वशिष्ठ महाराज शाम को अपने शिष्यों को सत्संग सुनाते….

बोले , हे राम जी…. एक संध्या को आकाश मार्ग से प्रकाश पुंज दिखाई दिया

….भगवान चंद्रशेखर माँ पार्वती सहित पधार रहे थे..


अरुंधती के साथ हम ने मनोमन प्रणाम किया…


आसन तैयार किया ..जब वे आए तो वहा बिठाया …


उन के चरण धोये…. अर्घ्य पाद से पूजन किया….

भगवन चंद्रशेखर ने कुशल पूछा ,

“हे मुनि शार्दुल यहा एकांत में वरुण विक्षेप तो नही करते?


वृक्ष फल फूल तो देते?”

मैंने कहा, “आप के स्मरण मात्र से सब कुशल होने लगता है ….

मेरी इच्छा है की माँ पार्वती अरुंधती के साथ ज्ञान की चर्चा करे

और मैं आप से कुछ सुनना चाहता हूँ….”

मैंने शिव जी को प्रश्न किया की , “वास्तविक में देव कौन है

जो सब का हितकारी है..थोडी सी पूजा करने से प्रसन्न हो जाते है..”

भगवान चंद्रशेखर बोले, “स्वर्ग के देव भी वास्तविक देव नही….

तुम्हारे भीतर जो आत्मदेव है , वो ही वास्तविक में देव है


उन की सत्ता से आँखे देखती…. बुध्दी उसी की सत्ता से निर्णय कराती…

मन में उस की सत्ता से सोच की फुरना उठती…

उसी की सत्ता से बुध्दी निर्णय बदलती …. आँखों का देखना बदलता….

इस सब को जो जानता है , फिर भी ज्यों का त्यों रहेता है वो ही वास्तविक देव है !”

उसी को भगवान कहते, अकाल पुरूष कहेते…..

भगवती आदिशक्ति कहेते…. देव की लीला अनंत है!!…

वास्तविक देव इतने सहज है …

.उन को पुत्र मान के पूजा करो तो भी वो आने को तैयार है…

वासुदेव देवकी के यहाँ आए …! वो ही सकल अंतर्यामी है…

.जल में उसी की सत्ता है ..थल में उसी की सत्ता है…

माँ में वात्सल्य उसी का है…. बाप में अनुशासन उसी का है…

संत में संतत्व उसी की सत्ता से चमकता है..

भक्त की भक्ति फलती ॥मेरे स्वामी ऐसे मेरे रब में सारी सृष्टि है…

निर्भव जपे…। संत कृपा से प्राणी छूटे

भय को देने वाले वो ही , भय नाश कराने वाला भी वो ही है …


दुष्कर्म करते तो भयभीत भी करता ..


संकट समय उस को पुकारने वाले की पतवार संभालता है…।

इसलिए आप कभी अपने को तुच्छ मत मानिये…

अनाथ मत मानिए ….दुखी मत मानिये….

अगर आप अपने को दुखी मानेंगे तो चित्त दुखाकार होकर चैत्यन्य से दूर हो जाएगा॥

रामायण में बन्दर राम जी के लिए लड़े और


मेघनाद , कुम्भकरण राक्षस आदि रावण के लिए लड़े….


लड़ने की सत्ता देनेवाला वो ही का वोही…वो ही दे रहा है …..

हथियार घुमाने के लिए एक सत्ता से शक्ति मिल रही है….

राम जी के मन में रावण के लिए राग है

और रावण के मन में राम के लिए द्वेष है….

चेहरा वो ही है , शीशा अलग अलग है…

विद्युत् का करंट वो ही है , उपकरण अलग अलग है ..

गिझर में पानी गरम होता और फ्रीज ठंडा होता ,


बिजली एक ही एक है …


ऐसा अकाल पुरूष वो ही का वोही है…

. सज्जन की वकालत करो तो भी वो ही बोलेगा….

और दुर्जन के लिए भी वो ही बोलने की सत्ता देता है॥


जो इसी जनम में साक्षात्कार करने को तैयार है,


उन के लिए वो सुलभ है….

जो 3 जनम के बाद , 1 जनम के बाद सोच रहे उन के लिए कठिन है….

भगवान बोलते, अगर आप सोचते कठिन है तो कठिन है….

और जो सोचते मैं सुलभ हूँ उन के लिए मैं सुलभ हूँ !

“तस्याहम सुलभं पार्थ!”

जो मुझे पाना सुलभ मानते है, उन के लिए मैं सुलभ हूँ ….

लेकिन जैसा मानोगे ऐसे हो जाता ….

जो जिस रूप में ईश्वर को चाहेगा उसी रूप में ईश्वर को पा लेगा….


जो जैसी भावना करता उस की भावना के अनुसार


उस का कल्याण करने में भगवान कोई कसर नही छोड़ते….

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