शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

है कोई माई का लाल ??????????

महात्मा की कृपा:




बिहार प्रांत की बात है
एक लड़के के पिता मर गये थे। वह लड़का करीब 18-19 साल का होगा।

 उसका नाम था प्रताप।

 एक बार भोजन करते समय उसने अपनी भाभी से कहाः "भाभी ! जरा नमक दे दे।"

भाभीः "अरे, क्या कभी नमक माँगता है तो कभी सब्जी माँगता है !

 इतना बड़ा बैल जैसा हुआ, कमाता तो है नहीं। जाओ, जरा कमाओ, फिर नमक माँगना।"



लड़के के दिल को चोट लग गयी। उसने कहाः "अच्छा भाभी ! कमाऊँगा तभी नमक माँगूगा।"

वह उसी समय उठकर चल दिया। पास में पैसे तो थे नहीं।

 उसने सुन रखा था कि मुंबई में कमाना आसान है।

वह बिहार से ट्रेन में बैठ गया और मुंबई पहुँचा।

काम-धंधे के लिए इधर-उधर भटकता रहा परंतु अनजान आदमी को कौन रखे !

 आखिर भूख-प्यास से व्याकुल होकर रात में एक शिवमंदिर में पड़ा रहा

और भगवान से प्रार्थना करने लगा कि "हे भगवान ! अब तू ही मेरी रक्षा कर।"


दूसरे दिन की सुबह हुई। थोड़ा सा पानी पीकर निकला,

 दिन भर घूमा परंतु कहीं काम न मिला। रात्रि को पुनः सो गया।

दूसरे दिन भी भूखा रहा। ऐसा करते-करते तीसरा दिन हुआ।


हर जीव सच्चिदानंद परमात्मा से जुड़ा है।

जैसे शरीर के किसी भी अंग में कोई जंतु काटे तो हाथ तुरंत वहाँ पहुँच जाता है

क्योंकि वह अंग शरीर से जुड़ा है, वैसे ही आपका व्यष्टि श्वास समष्टि से जुड़ा है।

उस लड़के के दो दिन तक भूखे-प्यासे रहने परि प्रकृति में उथल-पुथल मच गयी।


तीसरी रात्रि को एक महात्मा आये और बोलेः "बिहारी ! बिहारी ! बेटा, उठ। तू दो दिन से भूखा है।

ले, यह मिठाई खा ले। कल सुबह नौकरी भी मिल जायेगी, चिंता मत करना। सब भगवान का मानना,

अपना मत मानना।"


महात्मा लँगोटधारी थे। उनका वर्ण काला व कद ठिगना था। लड़के ने मिठाई खायी।

 उसे नींद आ गयी। सुबह काम की तलाश में निकला तो एक हलवाई ने नौकरी पर रख लिया।


लड़के का काम तो अच्छा था, स्वभाव भी अच्छा था। प्रतिदिन वह प्रभु का स्मरण करता

और प्रार्थना करता। हलवाई को कोई संतान नहीं थी तो उसने उसी को अपना पुत्र मान लिया।

जब हलवाई मर गया तो वही उस दुकान का मालिक बन गया।



अब उसने सोचा कि 'भाभी ने जरा सा नमक तक नहीं दिया था,

उसे भी पता चले कि उसका देवर लाखों कमाने वाला हो गया है।'

उसने 5 हजार रूपये का ड्राफ्ट भाभी को भेज दिया ताकि उसको भी पता चले कि साल दो साल में

 ही वह कितना अमीर हो गया है।

तब महात्मा स्वप्न में आये और बोले कि 'तू अपना मानने लग गया ?'



उसने इसे स्वप्न मानकर सुना-अनसुना कर दिया

और कुछ समय के बाद फिर से 5000 हजार रूपये का ड्राफ्ट भेजा।

उसके बाद वह बुरी तरह से बीमार पड़ गया।



इतने में महात्मा पधारे और बोलेः "तू अपना मानता है ? अपना हक रखता है ?

 किसलिए तू संसार में आया था और यहाँ क्या करने लग गया ?

आयुष्य नष्ट हो रहा है, जीवन तबाह हो रहा है। कर दिया न धोखा !

 मैंने कहा था कि अपना मत मानना। तू अपना क्यों मानता है ?"



"गुरुजी ! गल्ती हो गयी। अब आप जो कहेंगे वही करूँगा।"
महात्माः "तीन दिन में दुकान का पूरा सामान गरीब गुरबों को लुटा दे। तू खाली हो जा।"
उसने सब लुटा दिया। तब महात्मा ने कहाः

"चल मेरे साथ।"
महात्मा उसे अपने साथ मुंबई से कटनी ले गये। कटनी के पास लिंगा नामक गाँव है,

 वहाँ से थोड़ी दूरी पर बैलोर की गुफा है।

वहाँ उसको बंद कर दिया और कहाः "बैठ जा, बाहर नहीं आना है।

जगत की आसक्ति छोड़ और एकाग्रता कर।

एकाग्रता और अनासक्ति-ये दो पाठ पढ़ ले, इसमें सब आ जायेगा।

जब तक ये पाठ पूरे न होंगे, तब तक गुफा का दरवाजा नहीं खुलेगा।

इस खिड़की से मैं भोजन रख दिया करूँगा।

 डिब्बा रखता हूँ, वह शौचालय का काम देगा। उसमें शौच करके रोज बाहर रख दिया करना,

 सफाई हो जायेगी।"

इस प्रकार वह वर्षों तक भीतर ही रहा। उसका देखना, सुनना, सूँघना, खाना-पीना आदि कम हो गया,

आत्मिक बल बढ़ गया, शान्ति बढ़ने लगी। नींद को तो उसने जीत ही लिया था।

इस प्रकार 11 साल हुए तब महात्मा ने जरा सा तात्त्विक उपदेश दिया और

दुनिया के सारे वैज्ञानिक और प्रधानमंत्री भी जिस धन से वंचित हैं,

ऐसा महाधन पाकर वह बिहारी लड़का महापुरुष बन गया।

महात्मा ने कहाः "अब तुम मुक्तात्मा बन गये हो, ब्रह्मज्ञानी बन गये हो।

मौज है तो जाओ, विचरण करो।"




तब वे महापुरुष बिहार में अपने गाँव के निकट कुटिया बनाकर रहने लगे।

 किंतु वे किसी से कुछ न कहते, शांति से बैठे रहते थे।

सुबह 6 से 10 बजे तक कुटिया का दरवाजा खुलता।

इस बीच वे अपनी कुटिया की झाड़ू बुहारी करते, खाना पकाते,

 किसी से मिलना-जुलना आदि कर लेते, फिर कुटिया का दरवाजा बंद हो जाता।



वे अपने मीठे वचनों से और मुस्कान से शोक, पाप, ताप हरने वाले, शांति देने वाले हो गये।

चार वेद पढ़े हुए लोग भी न समझ न पायें ऐसे ऊँचे अनुभव के वे धनी थे।

बड़े-बड़े धनाढ्य, उद्योगपति, विद्वान और बड़े-बड़े महापुरुष उनके दर्शन करके लाभान्वित होते थे।



ब्रह्मनिष्ठ स्वामी अखंडानंदजी सरस्वती, जिनके चरणों में इन्दिरा गांधी की गुरू, माँ आनंदमयी

 कथा सुनने बैठती थीं, वे भी उनके दर्शन करने के लिए गये थे।



ईश्वर के दर्शन के बाद भी आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार करना बाकी रह जाता है।

रामकृष्ण परमहंस,

हनुमानजी और

 अर्जुन को भी ईश्वर के दर्शन करने के बाद भी आत्मसाक्षात्कार करना बाकी था।

वह उन्होंने कर लिया था-महात्मा की कृपा, अपने संयम और एकांत से।

वह साक्षात्कार उस बिहारी युवक को ही नहीं, देश के किसी भी युवक को हो सकता है।

है कोई माई का लाल ???????????????



पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से................


hariom..................

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