शनिवार, 24 जुलाई 2010

गुरुपूर्णिमा २०१०

श्री सुरेशानन्दजी महाराज सत्संग
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मेरे गुरु सुई की नोक से सुमेरु चलाते है…

अमदावाद आश्रम मे सदगुरूदेव ने केवल संकल्प किया

तो दूसरे दिन अखबार मे आया कि कारगिल के सैनिक चोटी पे पहुंच गए है…








भक्ति होनी चाहिऐ..
तभी मेरे गुरु क्या है,

ये भक्त के समझ मे आएगा..
कायरता नही होनी चाहिऐ ,
वीरता होनी चाहिऐ !


फौलादी है बाहें मेरी
चट्टान को भी तोड़ सकती ..”


ऐसा विश्वास होना चाहिऐ…

सदगुरूदेव कौन है ये जानो…
महाभारत मे आता है,



कि अर्जुन युध्द के मैदान मे हथियार डालकर बैठ गए..
तो श्रीकृष्ण भगवन ने ऐसा नही कहा कि चलो ,


उठाओ धनुष….बलकि अर्जुन को युध्द के मैदान मे सत्संग सुनाया..

परिणाम ये आया कि अर्जुन युध्द जित गए…


अभी भी बापूजी आएंगे ,
हमे उनके आशीर्वचन सुनने को मिलेंगे तो हमारा भी कल्याण होगा…


गुरुदेव का आप के सर पे हाथ ....





प्रल्हाद कहते है अपने गुरु(नारद जी) को कि ,
अभी मुझ मे ९ दोष है , हे गुरुदेव.. मेरे सिर पे आप हाथ रख दो”….


आप भी एक प्रयोग करे ….मन से ही सदगुरूदेव के चरणों मे अपना सिर रख दो..
मन से ही ऐसी भावना करो….कि आप ने सदगुरु देव के चरणों मे अपना सिर रखा ….



और सदगुरूदेव ने आप के सिर पे हाथ रखा ,
तो आपकी शक्तिया जो अधोगामी हो रही थी,
उर्ध्वगामी होने लगेंगी…
भावना मे बड़ी शक्ति है…



आप यहा आते तो ऐसा कई बार आप के मन मे आता होगा
कि एक बार सदगुरूदेव के चरण छू लू..




लेकिन इतनी भीड़ मे ये कैसे संभव होगा ?



सेवाधारी तो आप को नजदीक भी नही आने देंगे…
लेकिन आप मन से भावना करो तो रोज सुबह अपने ही घर मे भी आप भावना कर के
सदगुरूदेव के चरणों मे सिर रखो
और उन्होने आप के सर पे हाथ रखा ऐसा अनुभव कर लो….



प्रेम की बोली


हमारे सदगुरू सुई की नोक से सुमेरु चलाते ये तभी जान पाते है जब भगवान को पहेचाने..
उसके लिए भक्ति हो ,
श्रध्दा हो..

और भक्ति कैसी हो
नामदेव जैसी हो..
गोरक्षनाथ जैसी हो…

तभी जान पाते है कि , मेरे सदगुरू कौन है?

(सुरेश बापजी श्लोक बोल रहे है..)












मेरे सदगुरू बिना पैरो के सारे जगत मे जाकर आये…
बिना कर(हाथ) के करम करे….
बिना कान के सब सुन लेते है..ऐसे मेरे सदगुरूदेव है…




हर राज्य की एक बोली होती है..
जैसे महाराष्ट्र की मराठी, पंजाब की पंजाबी ,
गुजरात की गुजराथी बंगाल की बंगाली..
है ना ?



ऐसे प्रेम राज्य की भी एक बोली होती है ,
जो कानो से नही सुनी जाती ..
ह्रदय के माध्यम से सुनी जाती है…मुँह से नही बोली जाती ,
आंखो से बोली जाती है….




जयश्री बहेन का अनुभव

एक घटना सुनाता हूँ..

स्कूल मे वार्षिक उत्सव था…कार्यक्रम चल रहा था,
अचानक आग लगी…
बाहर जाने के लिए एक ही दरवाजा और कम्पौंड की दीवार १० फ़ीट ऊँची…

एक बहेन अपने २ बच्चो को लेकर भाग रही इधर...उधर..
१० फ़ीट ऊँची दीवार ..दोनो बच्चो को लेकर कैसे जाये?

कैसे भी दोनो बच्चो को उठाकर दीवार के उसपार फेका..

लेकिन खुद कैसे दीवार से कुदे?..
बहेन का शरीर भारी था…जयश्री उस बहेन का नाम है

आग कंधे तक आ गयी ..लपेटे बढ़ने लगी ..
बहेन ने दीक्षा ली हुयी थी.. गुरुमंत्र का जप करती रही..

कोई बात नही भगवान रखे तो तेरी मर्जी..
उठा लो तेरी मर्जी..
जैसा नाच नचा ले प्रभु..

साडी जली ..चमडी जली..
बहेन गुरुमंत्र जप करती रही..

अचानक किसी अदृश्य शक्ति ने बहेन को उठाकर दीवार के उसपार फ़ेंक दिया..

बहेन को जरासी चोट आई और थोडी चमडी जली थी बस..

बापूजी ने अदृश्य शक्ति के रुप मे बचाया….




नास्तिक लोग नही मांगेंगे..
न माने तो उनकी मर्जी…

सीता माता के लिए साक्षात् अग्निदेव ने प्रगट होकर बताया था कि ,
सीता माता पवित्र है फिर भी धोबी नही माना…
साक्षात् अग्निदेव के प्रमाण को भी नही माना..

ऐसे ही उल्लू नही मानता कि सूरज उगा है..
नही मानता तो नही माने..आँख बंद करके बैठे
इस युग मे भी ऐसा हो रहा है..

जो लोग नही मानते तो ना माने ..
घाटा किसको हो रहा है?

आज आयोजन पुरा होगा...
जप-तप -सेवा मे लगे रहे..
साधन -भजन -सुमिरन करते रहे…


और अहमदावाद , सूरत आश्रम मे कही ध्यान योग शिविर लगा तो अवश्य अटैँड करे..
आश्रम की धरती पे बैठने मात्र से अद्भुत लाभ होते है…
साधना मे और भी उन्नत होंगे…

(सुरेश महाराज कोई श्लोक बोल रहे है…)


जिन्होंने अपनी आंखो से ईश्वर प्राप्त महापुरुषों का दर्शन नही किया
उसके आंखो मे क्षार पड़े
क्षार याने तेजाब ..
एसिड होता है.
मने व्यर्थ है ऐसी आँखे…


भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार........

भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार...........

कभी न होता किसी के लिए बंद तुम्हारा द्वार............


भूल न जाऊ तुम्हे कही ये बिनती बारं बार ............



हरी ओम…

कही कही ना सुनाओ

सोयी पुंज पाए है जो भक्ति करे चित्त लाये ...
जरामरण से छूटी पड़े अजर अमर हो जाये ...
जो तेरे घट प्रेम है, तो कही कही न सुनाओ ...
अंतर्यामी जाने है अंतर घट के भाव...


अपने अन्दर प्रेम है..

भक्ति है तो किसी को सुनाने से क्या मिलेगा?








अंतर्यामी है वो सब जानते है…



अन्दर के अंतर्यामी मे से अंतर कैसा रहेगा ?


ह्रदय की गहराई मे जो बैठे है उनसे अंतर कैसा रहेगा ?


वो अन्दर ही है सब जानते है..



इसलिए कही कही नही सुनाओ ..

मैंने ऐसा सुमिरन किया , अनुष्टान किया …इतना पाठ किया..


सुमिरन ऐसा कीजिए ...दूजा कहे न कोई...

होठ न प्रकट देखिए ...प्रेमे जपियो कोई ...

जहा जहा बछड़ा फिरे ...तहा तहा फिरे है गाय ...

कहे मल्लुक जहा संतन...तहा रामैय्या जाये....


मलूक जी कहते है कि जहा भक्त पुकारते वह संत चले जाते…
जैसे गाय अपने बछड़े के पीछे पीछे जाती..

अब पेतलावाद के साधक और रतलाम के साधको का खूब खूब प्रेम था
तो सदगुरूदेव यहा पधारे है…

सुरेश बापजी के सत्संग प्रवचन से...



गुरु पूर्णिमा पर्व की सभी साधक भाई-बहनों को खूब-खूब बधाई ...




हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्

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