रविवार, 4 जुलाई 2010

साप-शिडि का खेल....

श्री सुरेशानन्दजी की अमृतवाणी ......




साप-शिडि का खेल खेलते है न..मैंने बचपन मे खेला था ,

आप ने भी खेला होगा…उस खेल मे साप के मुह मे आये तो निचे गिर जाते और शिडी मिलती तो ऊपर चले जाते….

ऐसे ही फिल्म के चक्कर मे पड़े ,

मैच देखने बैठ गए तो समझो साप के मुह मे आ गए…

साधना से निचे गिर गए…और ईश्वर प्रीति मे मन लगा ,

जप ध्यान हुआ तो समझो के ईश्वर के और पास आ गए..

माने शिडी मिल गयी , ऊपर उठ गए….



मंजिल आनेवाली है कि साप के मुह मे गिर जाते…तो सफलता से दूर हो जाते….

कभी कभी ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ भी आती है..जीवन मे विफलता भी आती है…

लेकिन डरे नही…ऊँचे शिखर के साथ हमेशा खाई होती है…

ये ध्यान मे रखे और गुरुदेव से प्रार्थना करे…”गुरुदेव मदद करो..आप की शक्ति का कोई पार नही…”

..एक बार सनकादी ऋषी विष्णु भगवानजी से मिलने गए तो जय विजय द्वार पाल थे ,

उन्होने मिलने से मना कर दिया…तो ऋषियोँ ने उन्हें श्राप दिया कि उन्हें ३ बार असुरों की योनी मे जाना पड़ेगा….

..भगवान आये , उन्होने सनकादी ऋषियोँ का श्राप सुना , तो बोले कि ,

“हे महापुरुषोँ..जय विजय जिनको आने देना चाहिऐ उनको आने नही दिए तो उनको आप ने सजा दे दी…

उनका ये ही अपराध है ना कि , आप को आने नही दिया?”

..सनकादी ऋषी बोले, ” हा , ये ही अपराध है…”

तो भगवान बोले कि , मेरे द्वारपाल इसलिए दोषी है कि ,

जिनको आने देना चाहिऐ उन्हें आने नही दिया…लेकिन मैं भी उतना ही दोषी हूँ..




क्यो कि मैं भी प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय का द्वारपाल हूँ…

और मुझ जैसे द्वारपाल के होते हुए भी आप के ह्रदय मे गुस्सा आ जाता है..

क्रोध आ जाता है…इसीलिए जय विजय को श्राप दिया आप ने…तो गलती तो मेरी भी है ,

मैं सही ढंग से काम नही कर सका..मेरे होते हुए भी मनुष्य के ह्रदय मे क्रोध आता है तो

मैं अपना काम सही ढंग से नही कर पाया…इसलिए जब जब जय विजय को असुर बनके धरती पे जाना पड़े

तब तब मैं भी इनका उद्धार करने के लिए ४ बार धरती पे जाऊंगा….!”

..कैसी है भगवान की करुणा…!

अपने आप को दंड देते है…ऐसे ही गुरुदेव अपना उध्दार करने के लिए कितना कष्ट सहते है…

इसलिए हम प्रार्थना करते है कि ,

“त्वमेव माता च , पिता त्वमेव

त्वमेव बंधुश्च , सखा त्वमेव”




गुरुदेव ही हमारी माता है और हमारे पिता है …

माता भी कभी ध्यान नही देंगी, लेकिन गुरुदेव अपने भक्तो पे सदैव करुना कृपा रखते….

भगवान की भगवत-ता कैसी है..जटायु के पंख कट गए तो भगवान उसे बोलते है..

“माफ करना , मैं समय से आ जाता तो तुम्हारे पंख नही कटते…!”

कैसी भगवान की भगवत-ता..!!ऐसे ही गुरुदेव से मंत्र मिलता,

नाम मिलता तो उसे श्रध्दा से जपे….गुरुदेव ऐसे करुणा के सागर है जैसे भगवान है…

कितना सुन्दर उत्तर दिया भगवान ने सनकादी ऋषियोँ को ..

मैं भी द्वारपाल हूँ..मुझ को भी सजा दो…!

गुरुदेव भी हमारे दोष मिटने के लिए ऐसे ही करुणा कृपा बरसते है…

ऐसा तेरा प्यार गुरुवर भूल न पाए..




आप ही हमारे दोष को मिटाए

तुझ मे ही प्रेम और प्रीति बढाये…

ऐसा तेरा प्यार गुरुवर भूल न पाए….

श्री सुरेशानन्दजी की अमृतवाणी .........

२३ नवम्बर २००७ , शुक्रवार ,
बरोडा ध्यान योग शिबिर,

वाह बापू वाह ..

बापू तो इतना अच्छा समजाते ही है....

उनकी राह पर चलकर सुरेशानंद जी भी उतना ही सरल समजाते है ..

धनभाग हमारे जो हमने ऐसा गुरु पाया ....

जय हो ....

जपते रहे तेरा नाम... जय बापू आशाराम ....

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