शनिवार, 25 सितंबर 2010

क्या झक मारा पुरुषार्थ कर के ?

सबके दिल में दिलबर है

सबका मंगल ,सबकी उन्नति ,

और सबके मंगल में अपना परम मंगल जगाना ..

ये पुरुषार्थ है … * पुरुषार्थ भी हो पर शास्त्र और संत सम्मत पुरुषार्थ हो …

अभी तो दुनिया के सरे लोग पुरुषार्थ कर रहे हैं ,

पर पहले से ज्यादा अशांति है , पहले से ज्यादा झगडे हैं ,

पहले से ज्यादा असुरक्षा है , पहले से ज्यादा बीमारी है ,

क्या झक मारा पुरुषार्थ कर के ?

दूसरे का दुःख हरने में लग जाओ ..




तो आपके दुःख दुखहारी हरी के आनंद से नन्हा हो जायेगा ,

दूसरे को सुखी देख कर आप सुखी रहे तो ,

आपको सुखी रहने की मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी

मुफ्त में आपका ह्रदय सुखी होगा इसका नाम पुरुषार्थ है ….

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