शुक्रवार, 28 मई 2010

लफंगों के मेले




माँ हितैषी है उससे भी बच्चों को नफरत हो जाती है,

बाप से नफरत हो जाती है।


लोफरों से प्रीति होने लगती है तो समझो, छोरों का सत्यानाश है !


ऐसे ही परमात्मा से तो प्रेम नहीं है

और मनचले विकारों के साथ हम हो गये।


गुरु और ईश्वर या शास्त्र की बात में तो विश्वास नहीं,




उस पर चलते नहीं और काम, क्रोध, लोभ, मोह –

ये वृत्तियाँ जैसा बोलती हैं ऐसा ही हम करने लगे,


इसीलिए दुःख मिटता नहीं सुख टिकता नहीं।

नहीं तो सुखस्वरूप आत्मा है, फिर भी मनुष्य दुःखी !


और वह दाता..... दया करने में उसके पास कमी नहीं,

दूरी नहीं, देर नहीं, परे नहीं, पराया नहीं।

माँ परायी है क्या ?

फिर भी जब लोफरों की दोस्ती में आ गये

तो माँ ही परायी लग रही है, पिता ही पराये लग रहे हैं।

लफंगों के मेले में आ गये तो माँ बाप अपने नहीं लगते,

वे लफंगे ही अपने लगते हैं।

ऐसे ही अपन लोग भी लफंगों की दोस्ती में आ गये कि

'जरा इतन कर लूँ, जरा ऐसा कर लूँ....' मनचाही...

अब लफंगों के कहने से बचने के लिए क्या करें ?

कोई-न-कोई कसम खा लो कि भई !

इतनी लफंगों की बात नहीं मानूँगा

और इतनी माँ-बाप और सदगुरु की मानूँगा।

हितैषियों के पक्ष में थोड़ा निर्णय करो और

लफंगों के पक्ष के निर्णय तुरंत न करो,

जल्दी अमल में न लाओ, उनमें कटौती करते जाओ

– यही उपाय है।

तो खा लोगे कसम ?

कि हम आवाराओं की सब बातें नहीं मानेंगे।

माँ-बाप और संत हमारे हितैषी हैं,

उनकी बात मानेंगे। संत भी माई-बाप होते हैं।

तो रात को सोते समय भगवान का सुमिरन करके फिर सोना

और सुबह उठो तो चिंतन करो कि

'हम आवाराओं के प्रभाव में नहीं रहेंगे,

अब प्रभु तेरे प्रभाव में रहेंगे।

तू सम है, तू शांत है, तू नित्य है, सुख-दुःख अनित्य हैं।


हम अनित्य से प्रभावित नहीं होंगे,


नित्य की स्मृति नहीं छोड़ेंगे।


वाह-वाह !' तो दुःख के कितने भी पहाड़ आ जायें,


आप उनके सिर पर पैर रखकर ऊपर होते जाओगे।

जो जितना विघ्न बाधा और मुसीबतों से जूझते हुए

ऊपर जाता है

वह उतना महान हो जाता है।



bapuji k satsang parvachan se....


wah bapu wah ...........

aapka samjana ek dum nirala.......


mera jogi nirala...

wah sai wah.......

jai ho....

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