मंत्र दीक्षा से बहोत फायदे होते है..
1.चोरासी के फेरे से छूटते ..
2.आप की नाडियों पे गुरु मंत्र का प्रभाव पड़ता है…
कयादु के पेट मे प्रल्हाद को नारद जी से मंत्र मिला , सत्संग मिला तो ऐसा प्रभाव हुआ कि ,
बालक प्रल्हाद भक्त शिरोमणि हो गया…
3.गर्भस्त शिशु पे भी सत्संग का और गुरु मंत्र का बहोत अच्छा प्रभाव पड़ता है…
सत्संग का प्रभाव अपरम्पार है…
आत्मज्ञानी गुरु के मंत्र का जाप करे और गुरु ज्ञान का चिंतन करे तो क्या कहेना….!!
…जिन्होंने मंत्र दीक्षा ली है और नियम से साधना करते है
तो उनको सुख दुःख का प्रभाव पहले जैसा बहाता नही है..जरजरा बात मे इतनी अशांति नही होती…
ऐसे कई साधक है , जिनको बाईपास नही करनी पड़ी..
हाई लो बीपी की तकलीफ दूर हो गयी…पीलिया(जौंडीस) जैसे रोग ठीक हो जाते..
स्वास्थ्य ठीक रहता , आर्थिक समस्या मिटती ..
ऐसे अवांतर तो कई फायदे होते ही है…लेकिन पक्के ३३ प्रकार के फायदे तो होते ही है…
..शिव जी ने पार्वती को वामदेव गुरु से दीक्षा दिलाई
और माँ पार्वती को दीक्षा से बहोत फायदे महेसूस हुए ,
तो माँ पार्वती ने बहोत भारी स्तुति की है….
..कलकत्ता की काली माँ के रामकृष्ण परम हंस बहोत भक्त थे…
माँ को खिलाते तो पहले खुद चखते कि नमक आदि ठीक है कि नही.
.उनका सुंघा हुआ फूल माँ को चढाते…उनके सामने काली माँ साक्षात् प्रगट होती थी..…
लेकिन काली माँ ने रामकृष्ण को कहा कि “ ठाकुर , तोतापुरी गुरु से दीक्षा ले लो..”
रामकृष्ण बोले कि, “माँ , मुझे दीक्षा लेने की क्या जरुरत? मैं याद करता हूँ ,
तो आप साक्षात् प्रगट होती हो…!”
काली माँ ने कहा कि , “ तुम भाव के गहराई से याद करते तो मैं प्रगत होती हूँ..
लेकिन भाव बदलता तो अदृश भी हो जाती हूँ …..
भाव के गहराई मे जो तत्व है उसका ज्ञान तो तुम्हे गुरु कृपा से प्राप्त होगा…”
रामकृष्ण जी ने तोतापुरी गुरु जी से परम ज्ञान पाया….
..ऐसे ही महाराष्ट्र मे संत नामदेव को भी भगवान विठ्ठल ने प्रगट होकर बताया कि शिवबा खेचर से दीक्षा लो…
नामदेव ने शिवबा खेचर से दीक्षा ली और आत्म ज्ञान पाकर परम तत्व मे विश्रांति पाई..
..मुझे भी २२ साल की उमर मे लगता था कि मैंने बहोत कुछ पा लिया है..
लेकिन जब गुरु से मिला तो जाना कि अभी तक जो कुछ किया वो तो कुछ भी नही था…!
..गुरु कृपा से ही बहोत ऊँची स्थिति प्राप्त कर सकते है…
“गुरु कृपा ही केवलं , शिष्यस्य परम मंगलम !”
दीक्षा लेनी है तो २ शर्त माननी होती है कि , मुझे कुछ भी नही देना है ..
रुपिया, पैसा, फल, फूल कुछ भी नही ,
क्यो कि मुझे इसकी जरुरत नही और साल भर मे ४/५ बार ध्यान योग शिबिर लगते रहते है
तो एक शिबिर मे आना है ..शिबिर मे बौध्दिक जगत मे प्रवेश कराया जाता है…
विद्यार्थियोंको सारस्वत्य मंत्र दिया जाता है , जिससे उनकी बुध्दी चमक जाती है, ऐसे कई बच्चे तेजस्वी बने है….
..कल सुबह कुछ खाना पीना नही है , पानी पी सकते है..कल इतवार है ..
तुलसी के पत्ते इतवार को नही तोड़ते और अन्य दिन भी दोपहर के १२ बजे के बाद नही तोड़ना है..
कल तुलसी के पत्ते नही खाना है…
..दीक्षा से ही आधी साधना हो जाती है…
जब आत्मज्ञानी गुरु से चेतन मंत्र मिलता तो जैसे पॉवर होउस से कोंनेक्टर मिलता है..
कबीर जी को रामानंद स्वामी जैसे समर्थ गुरु मिले तो परम सिध्द तत्व मे जीते थे…
ध्रुव को नारद जी दीक्षा मिली थी…
..गुरु से जो मंत्र मिलता है वो किसी को बताया नही जाता…
..जाप करने कि भी ४ अवस्था होती है..
शुरू शुरू मे स्पष्ट रूप से बोला जाता है…
धीरे धीरे होठ बंद करके मंत्र का जाप होता है..
फिर कंठ मे जपना शुरू हो जाता है…
और मंत्र जाप से आनंद आने लगता है तो ह्रदय मे जप होने लगता है..
नारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ शांति…
देखा इतने महान है मेरे बापूजी जिनको दीक्षा में भी कुछ नही चाइए ...
ऐसा कोई गुरु देखा जो फूल तक से इंकार करे....
जी हा वो दीक्षा देते है हमारी भलाई के लिए...
तो फिर देर किस बात की इस बात से हे समज जाओ की जिनको आप से एक फूल तक नही चाइए दक्षिणा में ...
तो वो कितने महान होंगे ....
आओ दोस्तों अपनी जिन्दगी सवारे ....
आओ चले बापूजी से दीक्षा लेने....और अपने जीवन को दे बदल ....
पता नही ऐसा मौका फिर मिले न मिले...
सदगुरूदेव की जय हो!!!!!
(गलातियोंके लिए प्रभुजी क्षमा करे…..)
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