जीव मात्र के कल्याण हेतु गुरुवार ने पृथ्वी स्वीकारी ,
लखा पुत्र को गुरु रूप में माता मह्न्गीबा न्यारी
लाखो वर्ष बाद में देखि माता ऐसी सुविचारी
सांख्य शास्त्र के जनक कपिल मुनि की थी ऐसी महतारी
पुत्र को लाख गुरु रूप में ब्रह्म ज्ञान को पाया था
गिरते हुए मानव समाज के हित में लाल जनाया था
ब्रह्म रूप उन कपिल मुनि को पुत्र रूप में पाया था
देवहूति ने तज स्वार्थ को जनकल्याण कराया था
माँ की मंशा पूर्ण कपिल प्रभु ने ऐसे करवाई थी
नव कन्यो के के बाद में आकर नवधा भक्ति जगाई थी
त्रय बहनों के बाद में आकर गुरु ने ये दर्शाया है
द्वार भक्ति और ज्ञान कर्म का हमने खुल्ला पाया है
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