सारे सम्बन्धी देवादारी समशान तक, पत्नी घर के दालान तक,बच्चे अग्निदान तक,और प्रभु दोनो जहाँ तक….
॥इसलिए प्रभु को प्रीति करो…कोई रोक नही सकता मृत्यु का दिवस…
उसके पहले जो मृत्यु के बाद भी तुम्हारे साथ रहेगा उस आत्मा का ज्ञान कर लो…
जीवन लाचार मोहताज हो जाये उसके पहले जीवन मे परमात्म सुख की पूंजी इकठ्ठी कर लो…।
जब तक सूर्य चमकता तब तक सब कहते सूर्य भगवान की जय…
ऐसे जब तक ये जीवन मे आत्मा का सूर्य चमक रह है
तब तक प्रभु को अपना मानकर प्रभु को प्रीति कर के ज्ञान पाना सिख लो…
ऐसा नही कि कही जाओगे वहा भगवान मिलेंगे॥वो आप के पास ही है…।
भगवान के पाने के लिए ही जनम मिला है…भगवान कहा मिलेंगे? खोज करो ॥
तो खोजते खोजते खुद ही में भगवान को पा लोगे॥
जैसे राजा भर्तृहरी ने देखा कि सोने की थाली मे खाना खाने से ,
चांदी के सिंहासन पे बैठने से सुख मिलता है क्या॥
तो खोजने से पहुंच गए गोरखनाथ के पास॥गुरु के चरणों मे बैठे तब लिखते है कि॥
जब सत्संग कीनो तब कुछ कुछ चीनो…तब लिखते है कि , अब कुछ कुछ जान पाया हूँ…
पुरा नही…कि चमचमाते गहने पहने सुन्दरिया चंवर डुलाये,चांदी के सिंहासन पे बैठा
तो अंहकार बढाया॥
ये राज गद्दी , ये भोग सब छुटनेवाला है॥
यहा ही पड़ा रहेगा…सोने की थाली मे खाना खाने वाला शरीर भी अग्नि मे जलाना है…
तो भर्तृहरी बोलते कि , “अभी कुछ कुछ जाना॥”
पड़ा रहेगा माल खजाना छोड़ त्रिया (स्त्री ) सूत (बेटे) जाना है
lकर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है
खिला पिला के देह बढाई वो भी अग्नि मे जलाना है…
कर सत्संग अभी से प्यारे नही तो फिर पछताना है॥
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