गुरुवार, 3 जून 2010
भगवान् नाचने लग गए...........
भगवान् को अपना मानेंगे तो प्रेम रस जागेगा..
.गोपियों को देखो,प्रेम रस था तो भगवान् नाचने लग गए...
भगवान् तो प्रेम के भूखे हैं...
प्रेम से कोई भी दे - पत्र, पुष्पम, भगवान् स्वीकार करते हैं...
जब भोजन करो तो कह दो - "ठाकुर जी! खा लियो"...
वास्तव में तो ठाकुर जी ही भोग लगावे...
मैं खा रिया हूँ, मैं खा रिया हूँ,
तेरा ठाकुर जी ना हो, तो तू खा के दिखा?
मुर्दे को बोलो - तू चबा के दिखा ,
बेटे...जीवन भर खा लिया, तो एक रोटी चबा के दिखा तेरे बाप कि ताक़त है तो?
ठाकुर जी खिलाये तभी खावे, फिर चाहे जाट हो चाहे उसका बाप हो, चाहे बनिया हो...:-)
तो जब भोजन करो ना, तो भगवान् को बोलो कि आपको भोग लगाऊं,
पोट तो थारो भरेगा, भक्ती कि भक्ती हो जायेगी और भोजन बन जायेगाप्रसाद..
.और भगवान् कहते हैं -प्रसादेय सर्व दुखानाम हानिरास्योप्जायेते।
॥बुद्धि में प्रसन्नता आएगी...भगवान् को भोग लगाओगे तो रस तो भगवत मय बनोगो ना,
ऐसा थोडे ही झगड़ा खोर रस बनोगो...
दीक्षा का महत्त्व बताते हे गुरुदेव ने कहा - भगवान् के नाम में बड़ी ताक़त है,
लेकिन दीक्षा के बाद वोह जागृत होता है...
हरि ॐ,
बापू जी ने यह भी पक्का करवाया था,
सदा दिवाली संत कि.........चारों पहर आनंद......अकल माता कोई उपजाया...... ...गिने इन्द्र को रंक...
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पूज्य बापूजी के सत्संग परवचन से....
वाह मेरे बापू केसे केसे समजाते हो ....
इतना सरल तरीका.....भक्ति करने का...
क्या कोई और इतनी सरलता से समजा सकता है...
वाह मेरे बापू आपकी लीला निराली...
जय हो...
हरिओम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्
नारायण नारायण नारायण नारायण
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wah prabhuji wah
जवाब देंहटाएंjai ho guruji ke gyan ki