बुधवार, 2 जून 2010
सिन्धी सांइंयों का पंजा......
..एक सिन्धी साईं टोपणदास थे..
उन के चौथे बेटे की शादी हो गई..बहु ले आए..
नई बहु थी,तो बहु के हिस्से हल्की फुलकी सेवा थी…
टोपनदास थाली पर २ खटके लगावे तो माचिस ले जानी है..
३ खटके लगावे तो घी ले जाना है..
४ खटके लगावे तो रुई ले जाना है….
५ खटके लगावे तो माला ले जानी है..
ऐसा आपस में उन का समझोता था..ट्युनिंग थी…
उस जमाने में बेल नहीं थी..वो माला छोड़ के आई..
और कुछ चाहिए वो देके आई..इतने में कोई आया, “सेठ टोपणदास आहे?”
बहु बोलती है, ” वो रुई खरीद रहे दुकानपर…पेढ़ी पे है..”
टोपणदास को गुस्सा आया की अभी तो माला देकर गई..ऐसा कैसा करती है?
इतने में दूसरा आदमी आया, “सेठ टोपणदास आहे?”
बहु बोलती, “नहीं , वो अपनी बहु को डांट रहे..अभी नहीं मिलेंगे..”
(सेठ टोपणदास और भी नाराज हो गए बहु पर)
इतने में तीसरा आदमी आया, सेठ बड़े पेढीदार थे..
बहु बोली की, “वो मोची के पास गए है, चप्पल सिलने के लिए..”
अब तो टोपणदास की पुजाबुजा ऐसे ही हो गया..बार बार घड्याल को देखे..
सुबह ४ बजे से १० बजे तक पूजा में बैठते थे..लेकिन अभी तो टाइम नहीं हो रहा…बार बार घड्याल को लानत दे…
ये सिन्धी साईं का पंजा है ना वो मल्टी पर्पज है
प्रेम से , दोस्ती से करे तो “तू पांचो विकारों से तर जा !”
और गुस्से से, दुश्मनी से करे तो ,”तू पांचो विकारों में डूब मरो!”
ऐसा है पंजा ये सिन्धी सांइंयों का…
..तो टोपणदास बार बार घड्याल को लानत दे…‘लख ना लत ते….अभी १० नहीं बजता है..‘
तो झुलेलाल भगवान को ये दे..
गणपति को ये दे..
इस देव को पूजे..उस देव को पूजे….
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय…असी ना माना…‘ फिर घड्याल को देखे..
(टोपणदास का पूजा में मन नहीं लग रहा था..)मुश्किल से १० बजे! टोपनदास बाहर आए..
‘नंडी ओ नंडी‘ नंडी माना छोटी बहु..‘हेडा अच्‘ यहाँ आओ..
‘तेरी उमर घंडी आहे?’ तेरी उमर कितनी है?
बहु बोली, ‘मेरी उम्र का तो कोई पार नहीं..‘
‘अरे! तुजी उम्र का कोई पार नहीं?’
बहु बोली, ‘हजारो शरीर पैदा हुए , मरे..मई तो वो ही की वोही हूँ..
मेरी उमर का तो कोई पार नहीं …शरीर की उमर तो १८ साल २ महीने है!‘
टोपणदास बोले, ‘ठीक है लेकिन तू झूठ बोलना कब से सीखी?मैं तो पूजा के रूम में था..तुम झूठ क्यो बोली की पेढ़ी पर है‘
बहु बोली की, ‘गुस्ताखी माफ हो ससुर जी,
आप शरीर से तो पूजा के रूम में थे लेकिन आप का मन पेढ़ी पर था..
मैंने ऐसा बोल दिया तो आप मुझ पर नाराज हो गए..
और वो चप्पल वाली बात इसलिए कही की मेहमान के सामने मोची ने ज्यादा पैसे ले लिए तो
आप ने इज्जत बचने के लिए दे दिए..
लेकिन पूजा के रूम में विचार कर रहे थे की आज पोते की चप्पल सिला के मोची के बच्चे का हिसाब वसूल करूँगा..‘
टोपणदास बोले, ‘नंदी..ये सब कहा से जान गई?मैं ४० साल से साधना करता हूँ..
मेरे को पता नहीं चला..तू कैसे समज जाती ये‘
बोले, ‘ मनमानी भक्ति, श्रध्दा अपने ढंग की होती और गुरु की दीक्षा वाली साधना अपने ढंग की है..
श्रध्दा के साथ बुध्दी योग उपसिती..बुध्दी से भगवत तत्व की उपासना करनेवाली दीक्षा मिलनी चाहिए..‘
ऐसा भगवान ने गीता में भी कहा है..
टोपणदास उस के मुख से ऐसी सत्संग की बातें सुनकर दंग रहे गए…
मैं ४० साल से साधना में बैलगाडी में घूम रहा हूँ..
तू शादी के २ महीने पहिले दीक्षा ली समर्थ गुरु की और इतनी आगे निकल गई..!‘
जो समर्थ गुरु में भी दोष देखते वो बड़े साधू- साध्वी होने के बाद भी गिर पड़ते है..लेकिन सदगुरू में सदगुरू तत्व देखते है तो उस का बेडा पार हो जाता है..बड़े बड़े गिर जाते है..
गुरु को माने मानवी, देखे देह व्यवहार l
कहे प्रीतम संशय नहीं, पड़े नरक के झार ll
गुरु को अगर देह धारी मान कर गुरु में अगर मनुष्य बुध्दी किया तो गिर जाएगा..लेकिन गुरु से दीक्षा लेकर ईमानदारी से गुरु से वफादार रहा तो बेडापार हो जाता…
टोपणदास बहोत प्रभावित हुए..कुलमिलाकर गुरु की कृपा के बिना असंभव है..कितना भी आदमी कितना भी कुछ कमाए ..धन कमाए लेकिन आत्मसंतोष के बिना जीवन पशु जैसा है….
तो वे लोग धनभागी है जिन को सत्संग मिलता है..उस से दुगुने चौगुने वो धनभागी है जिन को ब्रम्हज्ञानी गुरु का सत्संग मिलता है और उस से १००० गुना वे धनभागी है जिन को ब्रम्हज्ञानी गुरु से दीक्षा मिलती है…
और करोड़ गुना वे धनभागी है जिन की गुरु में श्रध्दा टिकी है..
..नहीं तो कुछ अभागे दीक्षा तक पहुंचते लेकिन ऐसा वैसा सुनकर गिर पड़ते…
तो कबीर जी बोलते,
प्रभु रस ऐसा जैसे लम्बी खजूर l
चढ़े तो चखे प्रेमरस, पड़े तो चकनाचूर ll
bapuji k satsang parvachan se.....
अरे समझ रखने वालो अब तो समझ जाओ....
इतना सिखाते है मेरे बापू.....
इतना ज्ञान कही नही मिलेगा ....
आओ बापूजी की शरण में...
और पा लो सच्चा ज्ञान ....जय हो....
ॐ शान्ति.
हरि ॐ!सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!
गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे…
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sadhu sadhu
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