सत्संग इतना प्रभावी साधन है कि इसमे श्रोता को कुछ भी नही करना पडता है लेकिन महालाभ पाता है…
.जैसे गाय दिन भर जंगल मे यहा वहा गुजर गुजर के घांस पत्ते खाकर शाम को जब बछडे को अपना दूध पिलाती है
तो बछडे को क्या करना होता है..बस खड़ा होना और सुकुर सुकुर…..
तैयार माल मिलता है गोमाता से…ऐसे ही बछडे स्वरुप होते है
श्रोता जब संत महात्माओ के आगे बैठकर सत्संग सुनते है..
संत महात्मा बहोत साधना करके जंगलों मे गुफाओ मे घूमकर..
सब मंदिर शास्त्र ढूंढ़ कर ..कितने कितने परिश्रम करके कड़ी साधना कर के ईश्वर को पाते है,
आत्मज्ञान पाते है..और यह ज्ञान रूपी दूध सत्संग मे श्रोता (बछडे) के आगे रखते है
तो सत्संगियो को तो तैयार माल मिलता है…संत महात्माओ ने कितने कितने योग से पाया हुआ ज्ञान
श्रोता के कान मे जाता है तो सत्संग सुनने वाले का बहोत हीत करता है….
और सत्संग सुनने के लिए ४ कदम चलकर आते है तो एक एक कदम एक एक यज्ञ करने का फल देता है…
सत्संग मे चलकर आते है , सुनते है , तो कर्म योग हो जाता है..
सत्संग से सुना हुआ समझते है तो ज्ञान योग हो जाता है और सत्संग मे ताली बजा लेते हो तो भक्ती योग हो जाता है….
सेवा करने वाले सेवा खोज लेते है..पंडाल मे कितने सेवाधारी कितनी प्रकार के सेवा दे रहे है..
यहा तो कुम्भ बन गया है , लेकिन सेवक नही थकते..
सब सुविधा कर दी..किसी ने देखा ना देखा सेवक अपने काम करते क्यो कि सेवा कराने से जो आनंद मिलता
वोह काम विकार से मिल सकता है क्या?
तो इस प्रकार पहला :- श्रद्धा से भगवान के नाम का जाप ,
दुसरा :- संत महात्मा का सत्संग का लाभ लेना और
तीसरा :- सेवा…!! ….
प्रार्थना..सेवा ..पुण्य….कल्याण….!ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ …
.ज्ञान का प्रकाश होता है.. आकर्षणो से बचाव कर लेते है
बापूजी के सत्संग परवचन से....
जय हो.....
जपते रहे तेरा नाम....जय बापू आशाराम
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