सबके दिल में दिलबर है
सबका मंगल ,सबकी उन्नति ,
और सबके मंगल में अपना परम मंगल जगाना ..
ये पुरुषार्थ है … * पुरुषार्थ भी हो पर शास्त्र और संत सम्मत पुरुषार्थ हो …
अभी तो दुनिया के सरे लोग पुरुषार्थ कर रहे हैं ,
पर पहले से ज्यादा अशांति है , पहले से ज्यादा झगडे हैं ,
पहले से ज्यादा असुरक्षा है , पहले से ज्यादा बीमारी है ,
क्या झक मारा पुरुषार्थ कर के ?
दूसरे का दुःख हरने में लग जाओ ..
तो आपके दुःख दुखहारी हरी के आनंद से नन्हा हो जायेगा ,
दूसरे को सुखी देख कर आप सुखी रहे तो ,
आपको सुखी रहने की मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी
मुफ्त में आपका ह्रदय सुखी होगा इसका नाम पुरुषार्थ है ….
good bhaiya ji
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